बिहार में मोटर ड्राइवर ट्रेनिंग सुविधाओं की है भारी कमी
पटना। बिहार में मोटर ड्राइवर ट्रेनिंग सुविधाओं की भारी कमी है। सूबे का एकमात्र सरकारी चालक प्रशिक्षण केंद्र औरंगाबाद जिले में स्थित है। यहां भी केवल सरकारी वाहनों के चालकों को ही प्रशिक्षित किया जाता है। इसके अतिरिक्त औसत चार से पांच मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केंद्र भिन्न-भिन्न जिलों में चल रहे हैं। अधिकांश चालक प्रशिक्षण केंद्रों पर सरकारी मानकों का पालन नहीं होता है या फिर बिना लाइसेंस के भी गाड़ी चलाने की ट्रेनिंग धड़ल्ले से दी जा रही है। यही कारण है कि आए दिन दुर्घटनाएं होते रहती है। आंकड़ों के अनुसार राज्य में लगभग 230 चालक प्रशिक्षण केंद्र हैं। राजधानी पटना में इसकी संख्या 40 के आसपास हैं।
प्रतिमाह जारी होता है औसतन 35700 ड्राइविंग लाइसेंस
आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में प्रतिमाह औसतन 35700 ड्राइविंग लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। इधर, वर्ष रेट वर्ष सूबे में वाहनों की बिक्री भी बढ़ रही है। साल 2022 में राज्य में जहां 10 लाख 20 हजार 460 नए वाहनों की बिक्री हुई थी।वहीं, साल 2023 में राज्य भर में 11 लाख 55 हजार 57 नए गाड़ी बिके। कुल मिलाकर एक वर्ष में राज्य भर में वाहनों की संख्या में एक लाख 597 की वृद्धि देखी गई।
टू व्हीलर सीखकर ले रहे फोर व्हीलर का लाइसेंस
यातायात प्रबंध और सड़क सुरक्षा पर नजर रखने वाले जानकारों का बोलना है कि सड़क पर असुरक्षा की स्थिति के कई कारण हैं। ड्राइविंग लाइसेंस जारी करते समय यदि मानकों का ध्यान कठोरतापूर्वक रखा जाए, तो प्रशिक्षित लोगों को ही लाइसेंस जारी होगा और सिर्फ़ वही गाड़ी लेकर सड़क पर निकलेंगे। कई मुद्दे ऐसे सामने आते हैं, जब चालक दोपहिया गाड़ी चलाने का प्रशिक्षण लिए होते हैं, जबकि किसी प्रकार से वे चारपहिया गाड़ी का लाइसेंस ले लेते हैं। ऐसे नौसिखिया चालकों से सड़कों पर खतरा अधिक रहता है।
लाइसेंस जारी करने में सख्ती
यातायात जानकारों का बोलना है कि पूर्व की अपेक्षा ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने में हाल के महीनों में हुई कड़ाई की वजह से अब बिना प्रशिक्षण के चालकों के लिए लाइसेंस बनवाना कठिन है। ऐसे चालक जो बिना प्रशिक्षण के लाइसेंस लेते हैं, वे न सिर्फ़ स्वयं के लिए बल्कि सड़क पर अन्य गाड़ी चालकों के लिए भी मुसीबत की स्थिति पैदा करते हैं। इसलिए कठोरता बरतने का निर्देश भी सभी जिला परिवहन पदाधिकारियों को दिया गया है।