मां मुंडेश्वरी धाम में चमत्कार पर चमत्कार, ‘रक्तहीन’ बलि का रहस्य जान रह जाएंगे हैरान
कैमूर। बिहार में एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल हैं जो अपने अंदर ऐसे ऐसे कई रहस्य छुपाए हुए हैं जिसकी सच्चाई समय-समय पर दुनिया के सामने आती है तो दुनिया दंग हो जाती है। इन्हीं में से कुछ ऐसे भी हैं धार्मिक स्थल हैं जिनके रहस्य को कोई अब तक समझ नहीं पाया है। ऐसा ही एक बिहार का कैमूर जिला पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। इन्ही पहाड़ों के बीच पंवरा पहाड़ी के शिखर पर उपस्थित है माता मुंडेश्वरी धाम मंदिर। अपने आप में अद्भुत इस मंदिर का संबंध मार्कंडेय पुराण से जुड़ा है। कहते हैं कि माता के द्वार पर आकर जो भक्ति का प्रसाद मिलता है वो अनोखा अहसास है। मंदिर में तो ऐसे वर्षों भर भक्त आते रहते हैं, लेकिन नवरात्र के मौके पर मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और माता की भक्ति में डूब जाते हैं।
बिहार के कैमूर जिले में स्थित है रहस्यमय मंदिर मां मुंडेश्वरी धाम। आश्चर्यजनक बात यह है कि यहां बिना रक्त बहाए ही बकरे की बलि चढ़ जाती है। इसके साथ यह भी कि आप माता की मूर्ति पर अधिक देर तक अपनी दृष्टि टिकाए नहीं रख सकते हैं। इसी मंदिर परिसर में एक पंचमुखी शिवलिंग भी है जो दिन के तीन पहर अपना रंग बदल लेता है। आखिर कैसे होता है ये करिश्मा और क्या है इस मंदिर का रहस्य? इस मंदिर को शक्ति पीठ भी कहते हैं जिसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं जो इस मंदिर के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाता है। यहां कई ऐसे रहस्य भी हैं जिसके बारे में अब तक कोई नहीं जान पाया। यहां बिना रक्त बहाए बकरे के बलि दी जाती है और पांच मुख वाले ईश्वर शंकर की प्राचीन मूर्ति की जो दिन में तीन बार रंग बदलती है।
लगभग 608 फीट की होती चढ़ाई
पहाड़ों पर उपस्थित माता के मंदिर पर पहुंचने के लिए लगभग 608 फीट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है। यहां प्राप्त शिलालेख के मुताबिक यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं जिनको देखकर लगता है कि उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण हैं। जैसे ही आप मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पहुंचेंगे वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय लगने लगता है। सीढ़ियों के सहारे मंदिर के दरवाजे पर पहुंचने के साथ ही पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी मंदिर की नक्काशी अपने आप में मंदिर की अलग पहचान दिलाती है।
इस कारण मशहूर है मां मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी मंदिर कितनी प्राचीन है और मंदिर में रखी मूर्ति कब और किस तरह के पत्थर से बनी है, ये सब बातें मंदिर में प्रवेश करने के पहले एक शिलालेख में अंकित है। इसपर साफ-साफ लिखा है की मंदिर में रखी मूर्तियां उत्तर गुप्त कालीन हैं और यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है। मंदिर बहुत प्राचीन है साथ ही बहुत धार्मिक भी। कहते हैं कि इस मंदिर में माता के स्थापित होने की कहानी भी बड़ी रोचक है। मान्यता के मुताबिक इस क्षेत्र में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे। जिनकी पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं थीं और इनका वध करने के लिए जब यहां पहुंचीं तो सबसे पहले चंड का वध किया उसके मृत्यु के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था। लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया था। इसी के बाद ये स्थान माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से मशहूर हुआ।
मां वाराही के रूप में विराजमान भवानी
मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुंडेश्वरी की पत्थर से भव्य और प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जहां मां वाराही रूप में विराजमान हैं। जिनका गाड़ी महिष है। माता की मूर्ति ऐसी भव्य है जिस पर नजर अधिक देर तक टिक नहीं सकती है। वहीं मंदिर के भीतर भी ऐसी भव्यता और बनावट है जो मंदिर को और भी सुन्दर बना देती है। भीतर मंदिर चार पायों पर टिका हुआ है। मंदिर के अंदर दो ऐसे रहस्य है जिसकी सच्चाई आज तक कोई नहीं जान पाया जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। अपनी आंखों से देखते भी हैं, लेकिन समझ नहीं पाते हैं कि आखिरकार ये होता कैसे है?
रक्तहीन बलि प्रदान की अनोखी परंपरा
मंदिर के पुजारी ने हमें कहा कि इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है। माता से मांगी हुई इच्छा पूरी हो जाती है वे इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं। लेकिन, यहां की बलि दूसरी किसी भी स्थान की बलि प्रथा से अलग है। यहां माता के चरणों में बलि भी चढ़ जाती है, लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है। पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है। बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी ने बकरे के चारों पैरो को मजबूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है। बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किया हुआ चावल छिड़कता है। जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है।
पुजारी के मंत्र पढ़ते ही जग जाता है बकरा
कुछ देर तक बकरा अचेत रहता है। जब पुजारी कुछ मंत्र पढ़ते हैं और माता के चरण में पड़े फूल को फिर से बकरे पर फेंकते हैं तो बकरा ऐसा जगता है मानो वो नींद से जागा हो। इस प्रकार बकरे की बलि की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। यही इस बलि की अनोखी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है। इस बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसकी जान नहीं ली जाती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत पशु बलि की सात्विक परम्परा है जिसे देख भक्त माता का बल बल से जयकारा लगाने लगते हैं। श्रद्धालु इसे माता का करिश्मा मानते हैं।
हर प्रहर में बदल जाता है शिवलिंग का रंग
चमत्कार यहीं समाप्त नहीं होता है। मंदिर के अंदर एक और ऐसा करिश्मा है जिसे देख आप दंग रह जाएंगे। मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी ईश्वर शिव का शिवलिंग है जिसकी भव्यता अपने आप में अनोखी है। भोलेनाथ की ऐसी मूर्ति हिंदुस्तान में बहुत कम पायी जाती है , इसी मूर्ति में छुपा हुआ है ऐसा रहस्य जिसके बारे में कोई नही जान या समझ पाया , मंदिर के पुजारी की मानें तो ऐसी मान्यता है कि इसका मूर्ति का रंग सुबह, दोपहर और शाम को भिन्न-भिन्न दिखाई देता है। कब शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता।
सोमवार को शिवलिंग दर्शन को उमड़ते श्रद्धालु
मां मुंडेश्वरी मंदिर के बीचोंबीच गर्भगृह में यह शिवलिंग स्थापित है और बहुत प्राचीन है। सुबह में जब लोगों की दृष्टि पड़ती है तो इसका रंग अलग रहता है, दोपहर में रंग अलग और शाम होते होते रंग फिर से बदल जाता है। मंदिर धार्मिक लिहाज के साथ साथ रहस्य के लिए भी राष्ट्र और दुनिया में मशहूर है जिसकी चर्चा सुन लोग खिंचे चले आते हैं। सोमवार को बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है यहां मंदिर के पुजारी द्वारा ईश्वर भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह श्रृंगार करके रुद्राभिषेक किया जाता है