बिहार

रामनवमी पर सीताकुंड धाम मेला में 50 हजार से अधिक दर्शको का लगा जमा

मंकेश्वर कुमार पांडेय| पीपरा चैत्र रामनवमी को लेकर सीताकुंड धाम परिसर में प्रत्येक साल की भांति इस साल भी सप्तमी तिथि मंगलवार से ही भव्य मेला लगा है. मेला में 50 हजार से अधिक दर्शक रोज पूजा-अर्चना एवं मेला देखने के लिए जमा हो रहे हैं. काफी दूर-दराज के लोग इस मेले में आते हैं. मेले में खेल-खिलौने, वस्त्र, फर्नीचर, औषधीय फल आदि की बिक्री होती है. यहां दर्शकों के लिए खेल-तमाशे की भी प्रबंध है.

यहां तेजपत्ता, लाल मिर्च, बेल आदि की बिक्री प्रमुख है. यहां के बारे में एक भोजपुरी स्लोगन प्रचलित है : सीताकुंड के बेल-हाथे हाथे गेल. मेला के ठेकेदार मैनेजर सिंह ने कहा कि सीताकुंड मेला में दो दर्जन से अधिक केवल फर्नीचर की दुकानें सजी है. अभी शादी आदि का लग्न काल चल रहा है. ऐसे में काफी लोग यहां से विभिन्न प्रकार के पलंग, दिवान, टेबल, कुर्सी सहित अन्य फर्नीचर की खरीदारी के लिए पहुंचते है. फर्नीचर की दुकानें 15 दिन तक सजी रहती है. प्रभु श्रीराम एवं माता जानकी की विवाह के बाद बारात जनकपुर नेपाल से अयोध्या लौटने के क्रम में एक रात सीताकुंड में रुकी थी. अगले दिन यहीं बेदिबन गढ़ पर चौठारी की रश्म हुई थी. उस समय यह क्षेत्र राजा जनक के भाई कुशध्वज के साम्राज्य में था. कुछ साल पहले तक यहां एक आम का पेड़ था, जिसके पत्ते कंगन की तरह लिपटे-चिपटे होते थे. यहां के बुजुर्ग उस पेड़ के बारे में बताते हैं. यह स्थल बेदिबन गढ़ के रूप में विख्यात है. माता सीता के स्नान के लिए इस कुंड का निर्माण किया गया था. इसमें जलस्रोत के लिए सात कुआं का निर्माण कराया गया था. माता सीता ने स्नान के बाद कुंड के दक्षिण-पूर्व की दिशा में महादेव गिरिजानाथ की स्थापना कर उनकी पूजा-अर्चना भी की थी. यह पौराणिक स्थल सीताकुंड बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण जिलान्तर्गत चकिया प्रखंड के मधुबन बेदिबन पंचायत में अवस्थित है. इस पंचायत में सीताकुंड नामक गांव में लगभग 18 एकड़ में फैले एक किलानुमा खंडहर के बीच यह पवित्र कुंड (तालाब) है. सीताकुंड स्थित गिरिजानाथ मंदिर के बारे में लोक आस्था है कि जब कभी आसपास के क्षेत्र में सुखाड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. उस समय समीपवर्ती गांवों के लोग गिरजानाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर कुंड का जल चढ़ाते हैं. जब शिवलिंग जल में डूब जाता है तो 24 घंटे के अंदर बरसात हो जाती है. इसे कई बार क्षेत्रीय लोगों ने आजमाया है. चकिया एसडीएम शिवानी शुभम ने कहा कि सीताकुंड के विकास के लिए अनुमंडल प्रशासन प्रतिबद्ध है. लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद सीताकुंड धाम परिसर में सीताकुंड महोत्सव के आयोजन के लिए बिहार गवर्नमेंट के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग से बेहतर समन्वय कर इसी साल स्वीकृति लेने का कोशिश किया जाएगा. इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए भी पर्यटन विभाग, बिहार गवर्नमेंट से समन्वय किया जाएगा. संस्कृति मंत्रालय, हिंदुस्तान गवर्नमेंट पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य और चंपारण महोत्सव के प्रणेता प्रसाद रत्नेश्वर ने कहा कि सीताकुंड का पौराणिक महत्व है. रामायण परिपथ में पीपरा स्थित सीताकुंड धाम 18 एकड़ क्षेत्र में करीब 15 फीट ऊंचे टीलेनुमा क्षेत्र में अवस्थित है. जो किसी प्राचीन किले का ध्वंसाशेष है. यहां बने प्राचीन मंदिर, पुरातात्विक शिलालेख, कई प्राचीन प्रतिमाएं, खंडहर और भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण में मिली सामग्रियां चीख-चीख कर इसके पौराणिकता का प्रमाण देती हैं. साल 1346 ईस्वी में एक शिलालेख कॉर्निंघम ने पाया था. साल 1990 में पुरातत्ववेत्ता डॉ पीके मौन को एक पंचमार्क तांबे का सिक्का मिला था. वहीं साल 1995 में मोतिहारी सदर एसडीओ को पांच मौर्यकालीन पंचमार्क सिक्के मिले. जिनमें चार तांबे का एवं एक कांसा का तक्षशिला प्रजाति का सिक्का था. पहचान के लिए इन सिक्कों को पुरतत्ववेता एसवी सोहनी को भेजा गया. कुंड के शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपी के पूर्व के कई संकेताक्षर अंकित हैं. यहां मिली मौर्यकालीन मूर्तियां इसकी प्राचीनता की गवाही देती हैं. राज्य गवर्नमेंट द्वारा प्रकाशित चंपारण गजेटियर में इसका उल्लेख है. कृषि कार्य के दौरान प्राप्त सामग्री पौराणिक होने का दे रही प्रमाण

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