बिहार

आस्था का चार दिवसीय पर्व चैती छठ, इन घाटों पर अभी मल-मूत्र और गंदगी का अंबार

मुजफ्फरपुर आस्था का चार दिवसीय पर्व चैती छठ. इसकी आरंभ 12 अप्रैल को नहाय-खाय से होनी है. पहले दिन से ही घाटों पर व्रती और श्रद्धालु जुटेंगे. लेकिन, आज भी उन घाटों पर मल-मूत्र और गंदगी का अंबार लगा है. चारों तरफ शौच और कचरा बिखरे पड़े हैं. बूढ़ी गंडक के घाटों की स्थिति तो यह है कि उसके आसपास रुकना तो दूर गुजरना कठिन होता है. जबकि, शहर के अन्य घाटों की भी कमोबेश यही स्थिति है. चैती छठ के िलए 12 अप्रैल को नहाय-खाय, 13 को खरना, 14 को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 15 को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य िदया जाना है. 14 और 15 को तो हजारों श्रद्धालु इन घाटों पर जुटेंगे, लेकिन उन घाटों पर कैसे सूर्योपासना होगी और लोग कहां खड़े होंगे यह बड़ा प्रश्न है. इस पर्व में िवशेष रूप से पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है. इसके बावजूद जहां एक तरफ प्रशासन घाटों की सफाई नहीं करा रहा है, वहीं दूसरी तरफ आस्था के इस पर्व के निकट आने पर भी लोग गंदगी फैलाने से बाज नहीं आ रहे. आइए जानते हैं शहर के 4 प्रमुख घाटों की असली स्थिति- यहां नमामि गंगे के अनुसार घाट तो बना दिया गया, मगर वर्ष में कभी कभार ही पर्व-त्योहार पर सफाई होती है. यहां भी चारों तरफ मल-मूत्र का फैलाव है. घाट से पानी की दूरी भी बढ़ गई है. इससे सटे नदी के पूर्वी भाग में भी हजारों लोग छठ व्रत करने आते हैं, लेकिन अब भी गंदगी ही गंदगी है. प्रतिमा विसर्जन के लिए बने अस्थाई तालाब से बदबू आती है. रास्ते में धूल ही धूल है. घाट से सटे माटी कटाव के कारण इतने गड्ढे हैं िक घाट पर पहुंचना टेढ़ी खीर है. यहां समतल में घाट नहीं होने से व्रतियों को अर्घ्य देने में कठिनाई होगी. मेन रोड और नदी के पास जाने में सौ मीटर से अधिक का रास्ता धूल और गड्ढों से भरा है. लोगों ने कहा कि पर्व से पहले स्वयं घाट बना लिया जाता है. यहां मोहल्लों के करीब दो सौ से अधिक परिवार छठ व्रत करते हैं. तीनपोखरिया शहर के प्रमुख जलाशयों में से एक है. इसके सौंदर्यीकरण के 6 माह भी नहीं हुए, चारांे तरफ के घाट मल-मूत्र और कचरे से भर गए. खास बात तो यह है िक यहां कार्तिक और चैती दोनों छठ में शहर के हजारों लोग सूर्योपासना के िलए पहुंचते हैं. लेकिन, पोखर के मेन गेट से प्रवेश करने के साथ ही गंदगी और बदबू आगे बढ़ने से रोक देते हैं. तालाब के बीच में ईश्वर भोलेनाथ की प्रतिमा भी है. लेकिन, उसके आसपास भी कचरा फैला है और पोखर का पानी काला पड़ गया है. बूढ़ी गंडक का आश्रमघाट : नमामि गंगे के अनुसार घाट बने, पर गंदगी फैलानेवाले नहीं मान रहे तीनपोखरिया : छह महीने पहले ही सौंदर्यीकरण हुआ था, अभी चारों तरफ है मल-मूत्र और गंदगी का अंबार

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