लालू यादव का दांव और सियासत में ‘धड़ाम’ हुए पप्पू यादव
पटना। महागठबंधन ने सीटों के बंटवारे की घोषणा कर दी और इसके अनुसार कई ऐसी सीटें जो कांग्रेस पार्टी के दावे वाली थीं, वह राजद के खाते में चली गई। ऐसे सीट शेयरिंग के हिसाब से वाम दलों को 5, राजद को 26 और कांग्रेस पार्टी को 9 सीटें मिली हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी को 9 सीटें मिलना भी कम नहीं है। साफ है कि पार्टी के तौर पर कांग्रेस पार्टी खुश हो सकती है। लेकिन राजनीति के जानकार प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या कांग्रेस पार्टी को खुश होना चाहिए? वहीं, सीट शेयरिंग को कांग्रेस पार्टी में नये-नये शामिल हुए पप्पू यादव के लिए बहुत बड़ा झटका बताया जा रहा है, क्योंकि यह सीट राजद के खाते में चली गई है। इसी तरह बेगूसराय की सीट पर कांग्रेस पार्टी के कन्हैया कुमार के लड़ने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन यह सीपीआई को दे दी गई है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि लालू यादव ने अपने दांव से पप्पू यादव, कन्हैया कुमार के साथ ही कांग्रेस पार्टी पार्टी का कद भी छोटा ही किया है।
दरअसल, लालू यादव ने महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी को किशनगंज, कटिहार, मुजफ्फरपुर, सासाराम, पटना साहिब, समस्तीपुर, भागलपुर, पश्चिम चंपारण और महाराजगंज की सीटें दी हैं। ये सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस पार्टी के लिए प्रत्याशी तलाशने से लेकर उसकी कैंपेनिग और उन्हें जिता ले जाना, मुश्किल चुनौती है। वहीं, राजद जिन 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगा वह सीधा माय समीकरण के मजबूत आधार वाली हीं। राजद की सीटों पर एक नजर डालिये जिमें- गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, वाल्मीकिनगर, पाटलिपुत्र, मुंगेर, जमुई, बांका, अररिया, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, वैशाली, सारण, सीवान, गोपालगंज, उजियारपुर, दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, हाजीपुर और पूर्णिया शामिल है।
लालू यादव के दांव के आगे धरी रह गई पप्पू यादव की तैयारी!
राजनीति के जानकारों की नजर में महागठबंधन की सीट शेयरिंग में सबसे बड़ी बात जो निकलकर आई है वह है पप्पू यादव की सियासी रसूख पर आघात। दरअसल, पप्पू यादव ने बार-बार बोला कि वह दुनिया छोड़ देंगे, लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। राजद ने पप्पू यादव के लिए पूर्णिया सीट छोड़ने से साफ इंकार ही नहीं किया उन्हें किनारे करते हुए बीमा भारती को पहले ही राजद का सिंबल भी दे दिया। इतना ही नहीं पप्पू यादव के लिए तो लालू यादव ने पूर्णिया ही नहीं, मधेपुरा और सुपौल तक का रास्ता भी नहीं छोड़ा, क्योंकि ये सीटें भी राजद के खाते में चली गई हैं।
लालू यादव को इनकार करना पप्पू यादव को पड़ा बहुत भारी
राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि लालू यादव को ‘ना’ करना पप्पू यादव को भारी पड़ गया है। दरअसल, लालू यादव ने जन अधिकार पार्टी का विलय राजद में करने का ऑफर दिया था। लेकिन, पप्पू यादव ने तब उनकी बात नहीं मानी और अपनी पार्टी का कांग्रेस पार्टी में विलय कर लिया। कहा जा रहा है कि उस समय से ही लालू यादव नाराज थे और मौके की ताक में थे। पहले मधेपुरा और फिर सुपौल से उनको लड़ने का ऑफर दिया, लेकिन अब तो ये पूर्णिया, मधेपुरा और सुपौल सीट ही राजद के खाते में चली गई।
बेगूसराय में भी लालू का दांव और किनारे हो गए कन्हैया कुमार
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि सबसे दिलचस्प तो बेगूसराय सीट को लेकर लालू यादव का दांव रहा जिसने तेजस्वी यादव के लिए आगे की राजनीति सुगम बनाने के लिहाज से जरूरी है। एक बार फिर लालू यादव ने कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के बहुत करीबी माने जाने वाले कन्हैया कुमार को एक बार फिर किनारे कर दिया है। दरअसल, कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस पार्टी बेगूसराय सीट मांग रही थी, लेकिन सीट शेयरिंग से पहले ही सीपीआई ने बेगूसराय से अवधेश राय को अपना उम्मीदवार बना दिया। ऐसे में कन्हैया कुमार के लिए कोई विकल्प ही नहीं बचा कि वह बिहार की राजनीति में अपना जलवा दिखा पाएं।
कन्हैया कुमार हुए किनारे तो तेजस्वी यादव का रास्ता हो गया साफ
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि पिछली बार भी जब कन्हैया कुमार ने बेगूसराय से लोकसभा चुनाव सीपीआई के टिकक पर लड़ा था तो राजद ने वहां से अपना उम्मीदवार उतार दिया था। बावजूद इसके कन्हैया को ढाई लाख से अधिक मत मिले थे। यदि राजद के प्रत्याशी का मत भी मिल जाता तो गिरिराज सिंह से उनकी हार का अंतर बहुत ही कम रह जाता। इस बार तो समीकरण भी बदले हुए हैं ऐसे में कन्हैया कुमार की जीत की आसार भी हो सकती थी। लेकिन, बोला जाता है कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में तेजस्वी के मुकाबिल खड़े हो पाने का दम रखते हैं ऐसे में लालू यादव के दांव से कन्हैया किनारे हो गए।
दरअसल, राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि लालू यादव के लिए लोकसभा चुनाव से अधिक जरूरी 2025 का विधानसभा चुनाव है। इसकी प्लानिंग वह अभी से ही कर रहे हैं और तेजस्वी यादव को सीएम बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। एक ओर जहां पप्पू यादव को किनारे करके उन्होंने यादवों का एक मात्र नेता तेजस्वी यादव को बताने की प्रयास की है, वहीं कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में एंट्री नहीं देने का दांव भी चल दिया है। साफ है कि लालू यादव अपनी राजनीतिक गोटी चल रहे हैं और तेजस्वी के लिए रास्ता साफ करते जा रहे हैं।