बिहार

पप्पू यादव ने किया अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में

पप्पू यादव कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए अपनी पार्टी जाप के साथ. इससे बिहार कांग्रेस पार्टी में उफान दिख रहा है. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह मिलन कार्यक्रम के दौरान दिल्ली में नहीं दिखे. ना अखिलेश ने इस पर कुछ कहना महत्वपूर्ण समझा. पटना में मीडिया से किनारा करते दिखे.

पप्पू यादव को पता था कि अखिलेश नहीं चाहते कि वे कांग्रेस पार्टी में आएं. इसलिए पप्पू यादव ने अखिलेश का नाम नहीं लिया. कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व बिहार प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने बुधवार और गुरुवार को दोनों दिन सोशल मीडिया पर अपनी तीखी नाराजगी जाहिर की.

पप्पू यादव एक एग्रेसिव यादव नेता हैं और उससे बिहार कांग्रेस पार्टी के नेताओं में उल्लास नहीं दिख रहा. समाचार में जानिए कब पप्पू यादव की एंट्री के प्रश्न पर ही कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और बिहार प्रदेश प्रभारी हटाए गए थे.

20 मार्च को पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में किया है.

लालू प्रसाद के लाइन अप के बाद ही कांग्रेस पार्टी में गए पप्पू- प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस में खटपट पर सियासी विश्लेषक प्रवीण बागी कहते हैं कि पप्पू यादव ने लालू प्रसाद के प्रतिनिधि के तौर पर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन किया. कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के पहले पप्पू यादव, लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव से मिले. लालू प्रसाद के लाइन अप के बाद ही वे कांग्रेस पार्टी में गए.

कांग्रेस नेतृत्व या पप्पू यादव को अखिलेश से बात करनी चाहिए थी. इसका असर चुनाव में दिखेगा और कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी होगी. हालांकि पूर्णिया के क्षेत्र में असर होगा, पर पप्पू के विरुद्ध वाले कांग्रेसी घर बैठ जाएंगे. कांग्रेस पार्टी उलझन में थी. लालू प्रसाद के दबाव में आ गई पार्टी. लालू प्रसाद ने पप्पू यादव को आरजेडी में शामिल नहीं करवाया, कांग्रेस पार्टी में शामिल करवा दिया.

बिहार में कांग्रेस पार्टी के सुपर बॉस लालू यादव ही

प्रवीण बागी आगे कहते हैं कि बिहार कांग्रेस पार्टी के सुपर बॉस लालू प्रसाद आज से नहीं बल्कि पिछले 20 सालों से हैं. वही प्रदेश अध्यक्ष बनवाते हैं, सीटें तय करते हैं. एक बार सोनिया गांधी ने रिश्ता तोड़ लिया था. लेकिन कोई रास्ता नहीं दिखा तो साथ आए. सांसदों की विधायकी वाले बिल को राहुल गांधी ने फाड़ दिया था. लालू प्रसाद के प्रति ही वह गुस्सा था.

मंत्रिमंडल ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को बदलने का निर्णय भी ले लिया था. राहुल के नकारने की वजह से कानून सदन में नहीं बन सकता. नतीजा लालू को जैसे रांची CBI न्यायालय से सजा हुई तो उनकी सांसदी चली गई. अब तो राहुल, लालू से मटन बनाने की रेसिपी सीख रहे हैं. बदला हुआ माहौल है.

प्रवीण बागी, सियासी विश्लेषक

अनिल शर्मा बताते हैं कैसे लालू प्रसाद कांग्रेस पार्टी को कमजोर करते गए

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा कहते हैं कि पप्पू यादव की पहचान किस रूप में है यह सभी लोग जानते हैं. केवल एक क्षेत्र से राजनीति नहीं चलती. 2010 में जब जगदीश टाइटर अध्यक्ष थे उस समय पप्पू यादव को कांग्रेस पार्टी में वे एंट्री करवाना चाहते थे, लेकिन मैंने विरोध कर दिया. काफी टकराव हुआ और मैं (बिहार कांग्रेस पार्टी प्रदेश अध्यक्ष) और जगदीश टाईटलर (बिहार कांग्रेस पार्टी प्रभारी) दोनों पद से हटाए गए थे.

शीर्ष नेतृत्व को कार्यकर्ताओं सहित बिहार के वरिष्ठ नेताओं की जनभावना देखनी चाहिए थी. वे कहते हैं कि लालू प्रसाद कांग्रेस पार्टी के पॉलिटिकल सहयोगी नहीं हैं, बल्कि बेसहारा और रहमो करम के रूप में ट्रीट कर रहे हैं. पार्टनर के साथ कोई ऐसा व्यवहार नहीं करता है.

अनिल शर्मा, कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष

अनिश शर्मा क्रमवार यह बताते हैं कि 98 में सीताराम केशरी ने कांग्रेस पार्टी से अलायंस किया था. तब भी मैंने विरोध किया था. 99 में पार्टी में रिज्युलेशन लाया कि निर्णय गलत है. 2000 में जब कांग्रेस पार्टी ने 23 विधायकों के साथ समर्थन दिया तब भी विरोध किया. उपचुनाव में भी मेरा विरोध प्रभारी गोहिल जी के सामने रहा. दो तिहाई मेंबर ने अलायंस का विरोध किया था.  

1. 98 में कांग्रेस पार्टी को पटाने के लिए लालू प्रसाद ने संयुक्त बिहार में 54 में 21 सीटें दीं.

2. वर्ष 1999 में घटाकर 16 सीटें कर दीं. जबकि तब कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति शासन का विरोध कर उनकी पत्नी राबड़ी देवी को पुनर्स्थापित किया था.

3. 2000 में कांग्रेस पार्टी और आरजेडी ने विधानसभा का भिन्न-भिन्न चुनाव लड़ा. आरजेडी अल्पमत में आ गई. 23 विधायकों के समर्थक से कांग्रेस पार्टी ने लालू प्रसाद की गवर्नमेंट बनवा दी. तब लोकसभा चुनाव 2004 में 16 से घटाकर केवल चार सीटें दीं. चार में तीन सीट कांग्रेस पार्टी जीती.

4. 2009 में जब मैं (अनिल शर्मा) अध्यक्ष था तो बोला तीन सीट से अधिक नहीं देंगे. तब लालू प्रसाद ने सार्वजनिक बयान दिया कि कांग्रेस पार्टी को उसकी हैसियत मुताबिक मैंने सीटें दीं, सोनिया गांधी का बिहार में क्या है. तब आरजेडी-कांग्रेस का एलायंस टूटा. लालू प्रसाद की 22 सीटें घटकर बिहार में चार हो गई और कांग्रेस पार्टी अकेले दो सीटें जीती. साथ ही साढ़े छह प्रतिशत वोट बढ़ा.

5. 2010 में भी कांग्रेस पार्टी अलग लड़ी. लालू प्रसाद की पार्टी को विधानसभा चुनाव में महज 22 सीटें मिलीं. राबड़ी देवी राघोपुर और सोनपुर दोनों सीटों से चुनाव हार गईं. एक बार फिर लालू प्रसाद ने कांग्रेस पार्टी को पटाया और केवल 12 सीटें दी.

6. 2015 में महागठबंधन में नीतीश, कांग्रेस पार्टी और आरजेडी सब साथ आई तो 22 से बढ़कर 81सीटें लालू प्रसाद की हो गई. तब कांग्रेस पार्टी की सीटें घटाकर नौ कर दीं. राज्यसभा का कमिटमेंट करके भी नहीं दिया. हाल के उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी की सीटों पर भी उम्मीदवार उतार दिया.

7. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में कह रहे हैं कि चार-पांच सीट देंगे.

बोलने से कतरा रहे नेता

पप्पू यादव या उनके निकट के लोग इस पर बोलने से कतरा रहे हैं. यही हाल आरजेडी का है. आरजेडी के प्रवक्ता भी इस पर बोलने से किनारा कर रहे हैं.

 

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