क्या आप भी अपने बच्चों को बेबी फूड्स के नाम पर भर-भर के ऐडेड शुगर खिला रहे हैं? जबकि स्वास्थ्य जानकारों का साफ रूप से बोलना है कि छोटे बच्चों एकदम भी शुगर नहीं दिया जाना चाहिए. एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका सहित कई हिस्सों में अग्रणी खाद्य और पेय ब्रांड नेस्ले के बेबी फूड्स में ऐडेड शुगर की मात्रा पाई गई है. हालांकि इसी ब्रांड के यूरोप में बेचे जाने वाले उत्पादों में शुगर की मात्रा नहीं थी. इतना ही नहीं भारतीय बाजार में बिकने वाले उत्पादों में ऐडेड शुगर की मात्रा तीन ग्राम से अधिक पाई गई है, जिसके सेवन से बच्चों की स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
स्विस संगठन, पब्लिक आई ने इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क (आईबीएफएएन) के योगदान से पेश की रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों को दिए जाने वाले कई उत्पादों में ऐडेड शुगर की मात्रा पाई गई है, जिसका यदि लंबे समय तक सेवन किया जाता है तो स्वास्थ्य पर कई प्रकार से नकारात्मक असर हो सकता है.
बचपन में शुगर वाली चीजों का सेवन करने से मोटापे से लेकर मेटाबॉलिज्म, पाचन सहित मस्तिष्क से संबंधित कई प्रकार की दिक्कतें हो सकती हैं.
ऐडेड शुगर वाले उत्पाद हानिकारक
स्वास्थ्य जानकार कहते हैं, कई खाद्य पदार्थ की प्रोसेसिंग के दौरान उसमें ऐडेड शुगर की मात्रा मिलाई जाती है. इसके अधिक सेवन से मोटापा बढ़ने का खतरा देखा जाता रहा है. कई अध्ययनों में वयस्कों को उन चीजों से दूरी बनाकर रखने की राय दी जाती रही है जिनमें शुगर-ऐडेड शुगर ककी अधिकता होती है. बच्चों की स्वास्थ्य पर इसके और भी कई प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
शिशु उत्पादों की गुणवत्ता में पाई गई कमी पर केंद्र ने कठोरता जताई है. अधिक चीनी मिलाने की रिपोर्ट के बाद CCPA ने एफएसएसएआई को नोटिस जारी किया है.
क्या है विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन?
पब्लिक आई ने कहा कि कई राष्ट्रों में इन ब्रांड्स के ऐडेड शुगर वाले बेबी फूड्स को राष्ट्रीय कानून के अनुसार अनुमति है, बावजूद इसके कि ये विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के विरुद्ध हैं.वर्ष 2015 में डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश में सिफारिश की गई थी कि वयस्क और बच्चे को अपने दैनिक शुगर का सेवन, कुल ऊर्जा सेवन के 10% से कम रखना चाहिए. ऐडेड शुगर को डायबिटीज, हार्ट की बीमारियों, आर्टरी की परेशानी सहित कई प्रकार की क्रोनिक रोंगों का कारक कहा गया है.
बच्चों की स्वास्थ्य पर क्या हो सकते हैं इसके दुष्प्रभाव
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) के नए दिशानिर्देशों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दो से 18 साल की उम्र के बच्चों के लिए रोजाना 25 ग्राम (6 चम्मच) से कम चीनी का सेवन करना चाहिए. वहीं दो वर्ष से छोटे बच्चों को एकदम भी चीनी नहीं देनी चाहिए.
चीनी का मतलब केवल चीनी से नहीं बल्कि चॉकलेट, कैंडी, बिस्कुट या फिर उन बेबी फूड्स से भी है जिनमें ऐडेड शुगर की मात्रा होती है.अधिक मात्रा में चीनी वाली या मीठी चीजों का सेवन करने वाले बच्चों को मोटापा, उच्च रक्तचाप और टाइप-2 डायबिटीज हो सकता है. अध्ययनों में शुगर वाली चीजों को बच्चों और वयस्कों में दिल रोगों का खतरा बढ़ाने वाला भी पाया गया है.
गड़बड़ हो सकता है ब्रेन कैमिकल
स्वास्थ्य जानकारों ने बताया, बच्चों के शुगर वाली चीजों के अधिक सेवन के कारण मस्तिष्क से संबंधित कई प्रकार के विकारों के विकसित होने का भी खतरा रहता है. हमारे मस्तिष्क का अपना रासायनिक संतुलन होता है. शोधकर्ताओं ने कहा कि कम गुणवत्ता वाले या असंतुलित आहार जैसे हाई प्रोसेस्ड फूड्स, चीनी वाली चीजों का अधिक सेवन मस्तिष्क के रासायनिक संतुलन को बिगाड़ सकता है. ऐडेड शुगर मस्तिष्क को ओवरड्राइव मोड में डाल देती है. जब मस्तिष्क अत्यधिक उत्तेजित होता है, तो यह अतिसक्रियता और मूड में परिवर्तन का कारण बन सकता है. इससे बच्चों में चिड़चिड़ापन, मूड विकार, चिंता और मावनिकिसत विकास का भी खतरा रहता है.