मैगी नूडल्स मामले में सरकार को झटका: नेस्ले से ₹640 करोड़ हर्जाना की याचिका खारिज
मैगी नूडल्स ब्रांड की ओनर कंपनी नेस्ले की एक तरह से जीत हुई है. शीर्ष उपभोक्ता कम्पलेन निपटान संस्था एनसीडीआरसी ने ‘मैगी’ मुद्दे में रोजमर्रा के सामान बनाने वाली कंपनी नेस्ले से 640 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगने वाली गवर्नमेंट की याचिका खारिज कर दी है. भाषा की समाचार के मुताबिक, गवर्नमेंट ने साल 2015 में राष्ट्रीय उपभोक्ता टकराव निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) के समक्ष इल्जाम लगाया था कि नेस्ले घातक और दोषपूर्ण मैगी नूडल्स के उत्पादन और सार्वजनिक बिक्री की अनुचित व्यापार व्यवहार में लिप्त थी.
दो याचिकाओं को खारिज कर दिया
एनसीडीआरसी ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की तरफ से दाखिल दो याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें 284.55 करोड़ रुपये के मुआवजे और 355.41 करोड़ रुपये के दंडात्मक हर्जाने की मांग की गई थी. नेस्ले के लोकप्रिय नूडल्स उत्पाद मैगी पर जून, 2015 में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कथित तौर पर स्वीकार्य सीमा से अधिक सीसा होने पर प्रतिबंध लगा दिया था. उसके बाद गवर्नमेंट ने एनसीडीआरसी का रुख किया था, जिससे नेस्ले को बाजार से उत्पाद वापस लेने के लिए विवश होना पड़ा था.
आदेश के अनुसार कंपनी के पक्ष में खारिज
उपभोक्ता आयोग से मिली राहत की नेस्ले ने शेयर बाजारों को सूचना दी है. उसने बोला कि हिंदुस्तान सरकार, उपभोक्ता मुद्दे विभाग की एनसीडीआरसी के समक्ष 2015 में दाखिल कम्पलेन को आयोग ने 2 अप्रैल, 2024 के अपने आदेश के अनुसार कंपनी के पक्ष में खारिज कर दिया. गवर्नमेंट ने मैगी मुद्दे में पहली बार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12-1-डी के अनुसार कार्रवाई की थी.
जानें क्या था मामला
इस धारा के अनुसार केंद्र और राज्य दोनों को ही कम्पलेन दर्ज करने की शक्ति मिली हुई है. खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआई ने मैगी नूडल्स के नमूनों में सीसे की अधिक मात्रा पाए जाने के बाद इसे मानव उपभोग के लिए ‘असुरक्षित और खतरनाक’ बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि, पांच महीने बाद ही मैगी नवंबर, 2015 में बाजार में दोबारा आ गई थी.