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कानन देवी: 110वीं बर्थ एनिवर्सरी पर जानिए उनके बनाए 5 सबसे बड़े ट्रेंड की कहानी

30-40 के दशक की एक प्रसिद्ध सिंगर और अदाकारा हुआ करती थीं, नाम था कानन देवी. आवाज में वो गूंज थी कि फिल्ममेकर्स उन्हें फिल्मों में लेने के लिए हर मूल्य चुकाने के लिए तैयार रहते थे.

ये वो दौर था जब फिल्में महज 15 से 20 हजार में बनती थीं और टिकट की मूल्य महज 30 पैसे हुआ करती थी, लेकिन उस दौर में भी कानन देवी एक गाने के 1 लाख रुपए और फिल्म के लिए 5 लाख रुपए लेती थीं.

यही वजह है कि उन्हें हिंदुस्तान की पहली फीमेल सुपरस्टार बोला जाता है. ये हिंदुस्तान के साथ-साथ बंगाल की भी पहली स्टार हैं. दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड जीतने वालीं चौथी स्त्री कानन देवी ने अपने हुनर से हिंदी सिनेमा में कई ट्रेंड बनाए.

जेंडर पे गैप आज भी हिंदी सिनेमा में बड़ा मामला है, लेकिन कानन देवी उस समय मर्दों से अधिक फीस लिया करती थीं. ये उन शुरुआती कलाकारों में हैं, जिन्हें चाहने वालों से बचाने के लिए कड़ी सिक्योरिटी में रखा जाता था. साथ ही उन्हें हिंदुस्तान की पहली बायकॉट की जाने वाली अदाकारा भी बोलना गलत नहीं होगा.

 

22 अप्रैल 1916 को कोलकाता में जन्मीं कानन देवी का बचपन बहुत भयावह था. कानन देवी की ऑटोबायोग्राफी सबारे अमी नामी के अनुसार, कानन देवी जिन्हें अपना पेरेंट्स मानती थीं, असल में उस पति-पत्नी ने उन्हें गोद लिया था.

कम उम्र में ही जब उन्हें गोद लेने वाले रतन चंद्र दास का मृत्यु हो गया, तो उन्हें बहुत गरीबी का सामना करना पड़ा. जिन संबंधियों ने उन्हें घर में आसरा दिया था, वो उनसे नौकरों की तरह सलूक किया करते थे.

फिल्म विद्यापति के पोस्टर में कानन देवी. 1937 की ये फिल्म बड़ी हिट रही थी, जिसमें कानन देवी के साथ पृथ्वीराज कपूर और पहाड़ी सान्याल अहम किरदारों में थे.

7 वर्ष की उम्र में कानन देवी ने उन संबंधियों का घर छोड़ दिया और मां के साथ हावड़ा रहने आ गईं. यहां जान-पहचान के शख्स और सिनेमाघर आर्टिस्ट तुलसी बनर्जी ने उनका परिचय मदन सिनेमाघर से करवाया. सिनेमाघर से जुड़कर छोटे-मोटे काम करने के बाद कानन देवी को हुनर की बदौलत 5 रुपए की तनख्वाह पर फिल्म जयदेव (1926) में साइन किया गया.

आगे उन्होंने शंकराचार्य (1927), रिशिर प्रेम (1931) जैसी कुछ साइलेंट फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए. वर्ष 1931 में कानन देवी पहली बार रंगीन फिल्म बल बारात में नजर आईं, जिससे रातोंरात उन्हें स्टारडम मिल गया. ये वो दौर था जब फिल्मों के लीड एक्टर्स ही फिल्म में आवाज दिया करते थे.

न्यू सिनेमाघर से जुड़कर कानन देवी ने कई बेहतरीन गानों को आवाज दी और सुपरहिट सिंगर के रूप में उभरीं. कानन देवी अकेली फिल्मों की कमान संभाला करती थीं और उनकी ज्यादातर फिल्में हाउसफुल हुआ करती थीं.

यही वजह रही कि उन्हें भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार सिंगर का दर्जा दिया गया था.

पूर्व डिफेंस मिनिस्टर वीके मेनन के साथ कानन देवी.

कानन देवी की पॉपुलैरिटी ऐसी थी कि जहां जाती थीं, देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. यही कारण रहा कि न्यू सिनेमाघर वाले उन्हें कड़ी सिक्योरिटी में रखते थे. कानन देवी पहली अदाकारा हैं, जिन्हें सिक्योरिटी दी गई थी.

उनकी पॉपुलैरिटी बढ़ती देख UK की सबसे बड़ी रिकॉर्डिंग कंपनी ग्रामोफोन ने उन्हें साइन किया. कानन देवी के गाने विदेश में भी काफी पसंद किए जाते थे.

2015 में राइटर मेखला सेन गुप्ता की लिखी बुक कानन देवी- फर्स्ट सुपरस्टार ऑफ भारतीय सिनेमा के मुताबिक कानन देवी हिंदुस्तान की पहली करोड़पति अदाकारा हैं. 30 के दशक में वो मर्दों से कई गुना अधिक फीस लिया करती थीं.

रिसर्च में पता चलता है कि पृथ्वीराज कपूर जैसे कद्दावर कलाकार को 30 के दशक में 70 रुपए फीस दी जाती थी, हालांकि कानन देवी 30 के दशक में महज 1 गाने के लिए 1 लाख रुपए चार्ज करती थीं. वहीं यदि उन्हें फिल्म में कास्ट किया जाना होता था तो उन्हें 5 लाख रुपए तक फीस दी जाती थी.

ये धनराशि इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि उस दौर में ज्यादातर फिल्में 10-15 हजार में बन जाया करती थीं, जिनकी टिकट भी महज 30 पैसे होती थी. ऐसे में कानन देवी ने 5 लाख रुपए फीस लेकर इतिहास रच दिया था.

आज भी हिंदी सिनेमा में स्त्रियों को मर्दों से काफी कम फीस दी जाती है, लेकिन करीब 70 वर्ष पहले कानन देवी ये रिवाज तोड़ चुकी थीं.

स्क्रॉल इण्डिया की रिपोर्ट के मुताबिक कानन देवी 30-40 के दशक की सबसे बड़ी भारतीय अदाकारा थीं. उनके पहने हुए कपड़ों से फैशन का नया दौर आ जाया करता था. फैशन आइकन रहीं कानन देवी पहली अदाकारा हैं, जिनके पोस्टर बिका करते थे.

उनके पोस्टर खरीदने की होड़ मचा करती थी. कई नौजवान कानन देवी के पोस्टर अपने कमरों में लगाया करते थे.

कानन देवी ने लक्स साबुन के ऐड के लिए पहली बार मॉडलिंग की थी.

वो ज्यादातर ट्रेडिशनल लिबास में हुआ करती थीं, लेकिन उनके ब्लाउज बहुत डिजाइनर होते थे. हर फिल्म में उनकी हेयरस्टाइल और हेयर एक्सेसरीज अलग होती थी. ज्वेलरी भी भिन्न-भिन्न और डिजाइनर पहना करती थीं.

जब भी उनकी फिल्में रिलीज होती थीं, तो महिलाएं उनके कपड़े और गहने देखने पहुंचा करती थीं और फिर उन्हीं की तरह कपड़े बनवाती थीं.

कानन देवी ने 1973 में पब्लिश हुई अपनी बंगाली बुक सबारे अमी नामी में निजी जीवन के एक टकराव का जिक्र किया था. बुक के अनुसार, कानन देवी ने 1940 में 11 वर्ष बड़े अशोक मैत्रा से विवाह की थी. दोनों की विवाह का पूरे कोलकाता में विरोध हुआ था. दरअसल, अशोक मैत्रा, कोलकाता के ब्रह्म समाज के लीडर और एजुकेशनिस्ट हेरम्बा मैत्रा के बेटे थे.

हेरम्बा चंद्र मैत्रा, ब्रह्म समाज के प्रचारक थे. बतौर स्पीकर और लेक्चरर उन्होंने इंग्लैंड, न्यूयॉर्क और शिकागो में ब्रह्म समाज का प्रचार किया था.

समाज में आला मुकाम रखने वाले हेरम्बा मैत्रा, फिल्मी दुनिया में काम करने वालीं कानन देवी को बहू बनाने के विरुद्ध थे, लेकिन उनके मृत्यु के बाद उनके बेटे अशोक मैत्रा और कानन देवी ने विवाह कर ली. जैसे ही दोनों की विवाह की समाचार अखबारों में छपी तो ब्रह्म समाज ने इसका कड़ा विरोध किया. पूरे कोलकाता में कानन देवी के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन होने लगा.

कानन देवी जहां भी जाती थीं, वहां उनके विरुद्ध नारेबाजी होती थी. ब्रह्म समाज के लीडर, अशोक मैत्रा और कानन देवी पर विवाह तोड़ने का दबाव बनाते थे, जबकि उस दौर में तलाक को कानूनी मान्यता तक नहीं मिली थी.

सामाजिक दबाव के चलते कानन देवी ने घर से निकलता लगभग बंद कर दिया था. इस तरह कानन देवी हिंदुस्तान की पहली अदाकारा रहीं, जिनकी विवाह का विरोध हुआ और उनका बायकॉट किया गया.

 

बुक के अनुसार, रवींद्रनाथ के लिखे कई गीतों में कानन देवी ने आवाज दी थी. ऐसे में दोनों परिचित थे. जब रवींद्रनाथ टैगोर ने कानन देवी को विवाह की शुभकामना दी तो उन्होंने ऑटोग्राफ के साथ टैगोर को एक तस्वीर भेज दी. यह समाचार सामने आते ही रवींद्रनाथ टैगोर को धमकी भरे कॉल आने लगे.

मेमॉयर में कानन देवी ने लिखा था कि इस घटना के बाद जब भी उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के गीतों को गाने का ऑफर मिलता था, वो ये सोचकर दुख से भर जाती थीं कि एक ऑटोग्राफ देने पर एक महान कवि को तकलीफ का सामना करना पड़ा था.

कानन देवी कोलकाता में ए-11, कबीर रोड स्थित घर पर रहती थीं. उनके पति अशोक मैत्रा भी उन्हीं के घर में रहते थे. एक समय ऐसा भी रहा जब फिल्मों के सेट पर लोग कानन देवी के साथ बदसलूकी करने लगे.

कई लोग उनसे निजी प्रश्न किया करते थे, जिसके चलते उन्होंने कई फिल्मों में काम करना छोड़ दिया था. विरोध का असर उनकी शादीशुदा जीवन पर भी पड़ा. एक समय बाद अशोक मैत्रा भी कानन देवी के फिल्मों में काम करने के विरुद्ध हो गए.

समय के साथ कानन देवी पर पाबंदियां लगने लगीं. उन्हें टेलीफोन इस्तेमाल करने की भी इजाजत नहीं थी. विवादों का असर उनकी प्रोफेशनल जीवन पर भी पड़ा.

विवादों के बीच वर्ष 1943 में रिलीज हुई कानन देवी की फिल्म हॉस्पिटल बुरी तरह फ्लॉप हो गई थी.

आखिरकार पति के बदले रवैये से परेशान होकर कानन देवी ने 1945 में उनसे रिश्ता समाप्त कर लिया. कानन देवी पति से अलग होने के बाद 1947 की फिल्म चंद्रशेखर में अशोक कुमार के साथ नजर आईं. जब ये फिल्म भी फ्लॉप हो गई तो कानन ने बतौर अदाकारा फिल्में साइन करनी बंद कर दीं.

साल 1949 में कानन देवी ने बंगाल के गवर्नर के ADC हरिदास भट्टाचार्या से दूसरी विवाह की.

  

पति हरिदास भट्टाचार्या के साथ कानन देवी बेटे सिद्धार्थ को गोद लिए हुए.

जब कानन ने फिल्मों में काम करना छोड़कर अपना प्रोडक्शन हाउस श्रीमति प्रोडक्शन की आरंभ की तो उनके पति ने सरकारी जॉब छोड़कर उनकी सहायता की. दोनों ने कई फिल्में बनाईं, लेकिन जब हरिदास भट्टाचार्या से अधिक नाम कानन देवी को मिलने लगा, तो दोनों में झगड़े बढ़ने लगे.

पत्नी को अधिक तवज्जो मिलने से तंग आकर हरिदास भट्टाचार्या ने 1987 में कानन देवी का घर छोड़ दिया. दोनों के संबंध इतना बिगड़ गए थे कि जब 17 जुलाई 1992 को कानन देवी का मृत्यु हुआ तो हरिदास भट्टाचार्या शहर में होने के बावजूद उन्हें अंतिम बार देखने भी नहीं पहुंचे. इस विवाह से उन्हें बेटा सिद्धार्थ था.

विद्यापति, स्ट्रीट सिंगर, सपेरा, जवानी की रीत, पराजय, लगान, परिचय, उत्तर जैसी करीब 57 फिल्मों में नजर आईं और 40 गानों की आवाज बनीं कानन देवी को वर्ष 1968 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

साल 1976 में ये दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड जीतने वालीं चौथी स्त्री रहीं. नयी जनरेशन भले ही कानन देवी के नाम और फिल्मों में उनके सहयोग से अनजान है, लेकिन अपने दौर में उन्होंने बतौर सिंगर, अदाकारा और सशक्त स्त्री के रूप में गहरी छाप छोड़ी थी. वो केएल सहगल, पीसीबरुआ, पहाड़ी सन्याल, अशोक कुमार जैसे दिग्गजों की पहली पसंद हुआ करती थीं.

फिल्म चंद्रशेखर के पोस्टर में अशोक कुमार के साथ कानन देवी.

कानन देवी के मृत्यु के बाद लता मंगेशकर ने वर्ष 1994 में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एल्बम श्रद्धांजलि 2.0- माय ट्रिब्यूट टू इमोर्टल्स लॉन्च किया था. इस एल्बम में उन्होंने कानन देवी के गानों ऐ चांद छुप न जाना और जीवन तूफान मेल को आवाज दी थी.

 

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