मनोरंजन

जब देव आनंद ने बनाई सियासी पार्टी…

हिंदी फिल्मों के सदाबहार अदाकार देव आनंद भी पूरे जोशो खरोश से राजनीति में उतरे थे उन्होंने बाकायदा पार्टी बनाई, मुंबई के शिवाजी पार्क में जोरदार जनसभा की पार्टी का घोषणा पत्र भी जारी किया उस समय की बंबई (आज मुंबई) में हुई इस जनसभा में उमड़ी भीड़ की धमक दिल्ली तक पहुंची बोला जाता है कि जनसभा की ताकत देख इंदिरा गांधी ने उनसे साथ मिलकर काम करने का संदेशा भी भिजवाया लेकिन अपनी रौ में चलने वाले देव आनंद ने उनके प्रस्ताव को कठोरता से ठुकरा दिया उन्होंने उस समय साफ कह दिया था, “एक निरंकुश नेता के साथ हाथ मिलाने का प्रश्न ही नहीं उठता

इमरजेंसी में सरकारी मीडिया पर रोक
अपनी झलक भर से लड़कियों-महिलाओं का दिल चुरा लेने वाले देव आनंद को आशा थी कि जब एमजीआर यानी एम जी रामचंद्रन राजनीति में सफल हो सकते हैं तो वे क्यों नहीं हालांकि ये भी अहम बात थी कि देव आनंद ने राजनीति की ओर कदम अपनी मनमौजी प्रतिक्रिया में बढ़ाया था सबसे पहले तो उनसे संजय गांधी और उनकी मंडली के बारे में प्रशंसा के कुछ शब्द कहने की निवेदन की गई थी इसे देव आनंद ने फौरन ठुकरा दिया मनमौजी कलाकार का ये कदम उस दौर की गवर्नमेंट को बहुत नागवार गुजरा आपातकालीन के दौर में उनकी फिल्मों और गानों पर सरकारी मीडिया में पाबंदी लगा दी गई टीवी ने उनकी फिल्में और गाने बजाने बंद कर दिए इससे हुआ ये कि देव आनंद स्वाभाविक रूप से जनता पार्टी की तरफ हो गए

जनता पार्टी से राम जेठमलानी का न्योता
1977 में नामी वकील रामजेठमलानी ने देव आनंद को जनता पार्टी के शामिल होने का न्योता दिया उन्होंने अनेक सोच विचार के बाद आखिरकार जनता पार्टी के अधिकार में प्रचार करने की अपनी सहमति दे दी जनता पार्टी के नेताओं के साथ मंच साझा किया कुछ भाषण भी दिए लेकिन जब ढाई वर्ष में ही मोरारजी देसाई को पद छोड़ना पड़ा फिर कांग्रेस पार्टी के समर्थन से चरण सिंह पीएम बने तो उन्हें झटका लगा बोला जाता है कि यहीं से उन्होंने नेताओं को सबक सिखाने के लिए अपनी पार्टी बनाने का विचार बनाया

आदर्श समाज की कल्पना की थी देव आनंद ने
उनका मकसद समतामूलक समाज की स्थापना थी अपने ही तबीयत की फिल्में बनाने वाले इस कलाकर ने अपनी आत्मकथा में जो लिखा है, उससे उनके विचार साफ जाहिर होते हैं वे लिखते हैं,  “प्राचीन सभ्यता को आधुनिक हिंदुस्तान से जोड़ने के लिए एक बड़ी छलांग लगाने की जरूरत है यदि सभी गांव बिजली-पानी की सुविधा से लैस छोटे शहरों में परिवर्तित हो जाएं, तो कैसा रहेगा… यदि सभी को अंग्रेजी सिखाई जाए, तो कैसा रहेगा… और यदि किसान, मजदूर, कुली और अभिजात्य वर्ग के लोग कारों में घूमते समय सौहार्द की भावना से एक-दूसरे की तरफ हाथ लहराते दिखें, तो कैसा रहेगा एक आदर्श समाज को लेकर यह एक दूरदर्शी सोच है, और यदि मैंने राजनीति में कदम रखा, तो मैं इसे पूरा करना चाहूंगा

पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी पुस्तक ‘नेता, राजनेता, नागरिक: भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली 50 हस्तियां’ में लिखा है, “उनके समर्थकों में पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित भी थीं हालांकि उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था देव आनंद के एक और मजबूत समर्थक नानी पालकीवाला ने भी चुनावी राजनीति में उतरने से इंकार कर दिया इसके अलावा, कुछ संपन्न लोगों की तरफ से भरोसा दिलाए जाने के बावजूद चंदा मिलने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी यही नहीं, 500 से अधिक लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवार तलाशना भी मुश्किल साबित हो रहा था देव आनंद के शब्दों में, “शुरुआत में उत्साह दिखाने वाले लोगों में धीरे-धीरे नजर आने वाली जड़ता ने मेरा जोश ठंडा कर दिया… और यही (नेशनल) पार्टी के अंत का कारण बना यह एक बहुत अच्छा विचार था, जिसे उसके शुरुआती चरण में ही नष्ट कर दिया गया

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