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पुरबाशा घोष ने एनाटॉमी ऑफ ए हाफ ट्रुथ” में अपनी भाषा और कल्पना से बुना एक अद्भुत तानाबान

लीडस्टार्ट द्वारा प्रकाशित पुरबाशा घोष की “एनाटॉमी ऑफ ए हाफ ट्रुथ” एक मास्टरपीस हैं, जो इंसानी सोच, जीवन, और प्रेम की जटिलताओं की परते खोलती हैं और हमारा सामना सच से करवाती हैं. घोष ने अपनी भाषा और कल्पना से एक अद्भुत तानाबान बुना हैं, जिसमे भूमिका अपने भीतरी तनाव, रिश्तो की जटिलता और सामाजिक अपेक्षाओं की उथल पुथल से जूझ रहे होते हैं.

इस उपन्यास की सबसे बड़ी ताकत है इसकी भाषा या कहे बात को कहने का तरीका, जिससे रीडर्स ना केवल कहानी और पात्रो से रिलेट कर पाते हैं, बल्कि वह इसके बारे में सोचने पर भी विवश हो जाते हैं घोष अपने शब्दों के साथ एक ऐसी दुनिया को जीवंत करती हैं, जिसके बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन कभी उसके बारे में कभी सोचा नहीं हैं, कहानी का हर भूमिका अपने आंतरिक संघर्ष से जूझ रहा हैं, और कुछ पन्ने पढ़ने के बाद हम भी उसी संघर्ष का हिस्सा बन जाते हैं, और यही इस बुक की विशेषता हैं, इसकी आसानी और सच्चाई!

इस उपन्यास का प्लाट बहुत रोमांचक हैं, जो परत-दर-परत खुलता चला जाता हैं, प्रत्येक पृष्ठ के पलटने के साथ कुछ नया और रहसमयी खुल कर सामने आता हैं, घोष अपने शब्दो  के साथ ना केवल हमारे प्रेजेंट बल्कि अतीत के बारे में कुछ खुलासे करती हैं, जिससे हम अपनी और किरदारों की पीड़ा, हमारे अस्तित्व और माता-पिता के असर को हमारे जीवन पर समझ पाते हैं, बुक में दो अहम् भूमिका जिनका नाम कृति और चाहेक हैं, और हम इन दोनों के जरिये अनाचार और मानसिक रोग जैसे कलंकित विषयों के बारे में अच्छे से जान पाते है.

यह उपन्यास कॉर्पोरेट और सामाजिक नीतियों पर भी ताकतवर व्यंग्य करता है, जो शिष्ट समाज के पाखंड और धोखे पर प्रकाश डालती हैं, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर जाते हैं लेकिन घोष ने इन कठिन विषय को बहुत चतुराई, कुशलता और सटीकता के साथ अपनी कहानी में बुना है.

“एनाटॉमी ऑफ ए हाफ ट्रुथ” कहानी की एक शुरुवात हैं, यह एक मनोरंजक और विचारोत्तेजक उपन्यास है जो पाठकों को उनकी सोच पर प्रश्न उठाने को विवश करती हैं!

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