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वीर सावरकर बन एक्टिंग में छा गए रणदीप हुड्डा

वीर सावरकर को लेकर काफी टकराव है और ऐसे में उनकी बायोपिक बनाना सरल काम नहीं है. इसके बावजूद रणदीप हुड्डा ने चुनौती को स्वीकार किया और वीर सावरकर की जीवन की अहम घटनाओं को बताने की प्रयास की है. करीब 3 घंटे लंबी फिल्म आपको बांधे रखने के लिए संघर्ष करती है. इसकी कहानी 1857 से लेकर 1966 के दौर के बीच की है. फिल्म में उन्हें एक ऐसे आदमी के रूप में दिखाया जाता है जिनसे प्रारम्भ में कई लोग सहमत नहीं होते लेकिन आखिर में उन्हें स्वीकार करना पड़ता है. इसका नतीजा यह होता है कि स्वातंत्र्य वीर सावरकर वन साइडेड कहानी बनकर रह जाती है.

क्या है फिल्म की कहानी

नेता, कार्यकर्ता और लेखकर वीर सावरकर ने हिंदुत्व और अखंड हिंदुस्तान की विचारधारा का प्रचार किया. वह ब्रिटिश शासन से मुकाबला करने के लिए महात्मा गांधी की अहिंसा की विचारधारा से अलग सशस्त्र क्रांति में विश्वास करते थे. हालांकि फिल्म अत्याचार के विचार का समर्थन या प्रचार नहीं करती, जो कि राहत की बात थी. फिल्म सशस्त्र क्रांतिकारियों के सहयोग और बलिदान पर रोशनी डालती है जिन्हें अक्सर हेय दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि सिर्फ़ अहिंसा से ही हिंदुस्तान को स्वतंत्रता मिली थी.

सावरकर के उत्थान और पतन को अखबारों की बोल्ड हेडलाइन से दिखाया जाता है. फिल्म का साफ उद्देश्य उनकी शुरुआती जिंदगी, इंग्लैंड में बिताया गया समय, उनकी गिरफ्तारी और ब्रिटिश ऑफिसरों के सामने उनकी अनगिनत दया याचिकाओं से रूबरू करवाना है.

रणदीप का बहुत बढ़िया काम

फिल्म में कई कमियों और अच्छाइयों के बीच रणदीप हुड्डा ने कमाल का एक्टिंग किया है. उनका ट्रांसफॉर्मेशन अविश्वसनीय लगता है और यह देखना कठिन भी है. अंडमान निकोबार की कारावास में कैद के दौरान उनकी बेरहमी से पिटाई और फिर काला पानी की सजा के दौरान कई सीन परेशान करने वाले हैं. यह देखकर दिल दहल जाता है. एक वीर नेता से लेकर निर्बल कैदी की किरदार में रणदीप हुड्डा प्रभावित करते हैं. बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी से वह सावरकर की इमेज में एकदम घुस गए. एक बार फिर से उन्होंने अपनी एक्टिंग क्षमता से प्रभावित किया है.

ट्रेलर आने के बाद ऐसे कयास लग रहे थे कि फिल्म में गांधी और सावरकर की विचारधाराओं के बीच विवाद को दिखाया जाएगा लेकिन शुक्र है कि पूरी तरह ऐसा ऐसा नहीं है. दरअसल सावरकर और गांधी के बीच के दृश्यों को परिपक्वता और गरिमा के साथ दिखाया गया है.

डायरेक्शन में रह गई कमी

फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी लंबाई है. अभिनेता के रूप में रणदीप हुड्डा छा गए हालांकि डायरेक्टर के रूप में उनके पास इतना कुछ था इसके बावजूद वह आपका ध्यान बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं.

कलाकार: रणदीप हुड्डा, अंकिता लोखंडे, अमित सियाल और राजेश खेड़ा

डायरेक्टर: रणदीप हुड्डा

 

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