फिल्म मडगांव एक्सप्रेस को लेकर दिव्येंदु शर्मा ने कही ये बात
ओटीटी के पॉपुलर अभिनेता दिव्येंदु शर्मा की फिल्म मडगांव एक्सप्रेस इस शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है। अदाकार के तौर पर दिव्येंदु कॉमेडी जॉनर को अपने लिए बहुत चुनौतीपूर्ण करार देते हैं। कॉमेडी जॉनर की फिल्मों में उनका होमवर्क बढ़ जाता है। यह स्वीकारने से वह हिचकते नहीं है। उर्मिला कोरी से हुई बातचीत।
सिनेमाघरों में जब कोई फिल्म रिलीज होती है, तो क्या उत्साह के साथ – साथ प्रेशर भी ज्यादा होता है ?
थिएटर की फिल्मों को लेकर उत्साह रहता है। थोड़ा प्रेशर भी होता है। मैं बिलकुल इस बात को मानूंगा। अब देखिए प्रोड्यूसर होते हैं। जिनका पैसा लगा होता है। आप एक कलाकार के तौर पर सबसे पहले चाहते हैं कि उनके पैसे की रिकवरी हो। यह एक कॉमेडी फिल्म है , तो आप चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग आकर आपकी फिल्म देखें, क्योंकि हंसना साथ में बैठकर बहुत दिलचस्प हो जाता है। हमारी पूरी प्रयास और आशा यही है कि अधिक से अधिक लोग आये और इस कॉमेडी फिल्म को साथ में बैठकर एन्जॉय करें। काफी समय बाद इस तरह की कॉमेडी फिल्म आ रही है। अन्यथा हाल – अभी में ज्यादातर लार्जर देन लाइफ सिनेमा ही नजर आता है। हमारी फिल्म में गैग्स वाली कॉमेडी नहीं है बल्कि सिचुएशनल कॉमेडी है,जो हर एक उम्र के लोगों को अपील करेगी।
इस फिल्म में आपके लिए सबसे अधिक अपीलिंग क्या था ?
मैं बोलूंगा स्क्रिप्ट, जिसका श्रेय निर्देशक कुणाल खेमू को जाता है। उन्होंने शानदार ढंग से ये फिल्म लिखी। जिसको पढ़ते ही लग गया कि ये फिल्म करनी चाहिए। उसके बाद एक्सेल जैसा प्रोडक्शन हाउस बैक कर रहा है, तो आपको और विश्वास आ जाता है कि हां ये चीज अच्छे ढंग से होगी। मेरा मानना है कि एक फिल्म में जितना जरूरी अभिनेता की कास्टिंग होती है, उतनी ही जरूरी एक प्रोड्यूसर की भी कास्टिंग होती है। यदि वो प्रोड्यूसर उस फिल्म को ना बना पाए उसके बाद आपकी स्क्रिप्ट जितनी भी अच्छी क्यों ना हो, वो अधिक से अधिक दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती है। मेरी फिल्म इक्कीस तोपों की सलामी बेहतरीन फिल्म होने के बावजूद अधिक से अधिक दर्शकों तक नहीं पहुंच पायी।
फिल्म मड़गांव एक्सप्रेस दोस्तों की गोवा ट्रिप पर जाने की कहानी है , निजी जीवन में आप इससे कितना जुड़ाव महसूस करते हैं ?
हां वो एक यादें तो होती है दोस्तों के साथ ट्रिप की प्लानिंग करना। ये फिल्म की कहानी मैं आपको कैसे बताऊं कि ये इतनी अधिक यूनिक है कि आप निजी जिंदगीका कोई भी वाकया आप रिलेट नहीं कर सकते हैं। मैं प्रारम्भ के पांच दस मिनट मान लूंगा कि चलिए लोग प्लान बनाते हैं कि कहीं घूमने चले। ये कॉलेज ही नहीं कहीं भी होता है, लेकिन ऐन मौके पर कोई गुलटी मार देगा। मुझे लगता है कि हर उम्र के साथ ये चीज लगी रहती है। लेकिन उसके बाद जो चीज फिल्म में होती है। वो कोई भी नहीं यह कहेगा कि यार मेरे साथ ये हुआ है। इस फिल्म को लोग हंसते हुए तो देखेंगे लेकिन कई बार मुंह खुला रह जाएगा कि ये क्या हो रहा है।
फिल्म के ट्रेलर में आपलोग स्लीपर क्लास से गोवा जा रहे हैं , निजी जीवन में स्लीपर या बिना टिकट की यात्रा की है ?
मैं दिल्ली में पढता था। मुंबई में मूड इंडिगो फेस्टिवल के लिए आता था। यह सिनेमाघर का फेस्टिवल होता था। हम स्लीपर से ही आते थे। कॉलेज में उतने पैसे होते नहीं थे। वैसे ट्रेन की जर्नी स्लीपर, जनरल, एसी से नहीं बल्कि लोगों के साथ से खास बनती है। आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ ही आते हो तो वह हमेशा यादगार ही रहता है।
फिल्म में आपलोग गोवा जाना चाहते हैं , निजी जीवन में किसी स्थान को देखने की ऐसी विश रही है ?
मैं बहुत वर्षों से इटली जाना चाहता था, लेकिन रह जाता था। पिछले वर्ष जा पाया था और बहुत इत्मीनान के साथ घूमा था।
कॉमेडी करना कितना सरल रहा ?
सच कहूं तो मैं ड्रामा करने में सहज हूं, लेकिन कॉमेडी करते हुए मैं थोड़ा अधिक नर्वस रहता हूं। होमवर्क भी अधिक करता हूं। वैसे इस फिल्म में जो डोडो का भूमिका है, उसका सुर थोड़ा ऊंचा है, तो मैं और अधिक नर्वस हो गया था। मैंने फिल्म के निर्देशक कुणाल खेमू से शॉट के दौरान कई बार पूछता था कि मैं ठीक जा रहा हूं ना। अधिक तो नहीं कर रहा तो वो कहता कि सब अच्छा है।
निर्देशक के तौर पर कुणाल की यह पहली फिल्म है, किस तरह का निर्देशक उन्हें पाते हैं?
वह बहुत ही समझदार और टैलेंटेड है। कॉमेडी जॉनर में केवल अभिनेता ही नहीं, बल्कि निर्देशक के तौर पर भी उनकी बहुत अच्छी पकड़ी है। पहली फिल्म में हर चीज को लेकर इतनी क्लैरिटी होना सरल बात नहीं है, लेकिन कुणाल में वह दिखी। वैसे सेट पर मेरी, कुणाल, प्रतीक और अविनाश की खूब जमी है। हमने फिल्म की शूटिंग को बहुत एन्जॉय किया।
फिल्म का शेड्यूल क्या था और फिल्म की शूटिंग कहां – कहां हुई है ?
फिल्म की शूटिंग मुंबई और गोवा में हुई है। ज्यादातर शूटिंग गोवा के लाइव लोकेशन में हुई है। 40 से 42 दिनों का शूटिंग शेड्यूल था।
ओटीटी ने आपको लोकप्रिय चेहरा बना दिया है, ऐसे में रियल लोकेशन में शूटिंग करना कितना सरल होता है ?
एक्सेल जैसी प्रोडक्शन टीम होती है, तो वह व्यवस्था पहले से कर लेते हैं कि शूटिंग रुके नहीं। वैसे गोवा का बहुत ही चिल टेम्परामेंट है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में थोड़ा कठिन रहता है। वहां थोड़ी अच्छी फैन फोल्लोविंग मेरी है।
पहली बार कब एहसास हुआ था कि आपका काम लोगों को आपसे जोड़ रहा है ?
प्यार का पंचनामा रिलीज हुई थी। अपने एक दोस्त के साथ अंधेरी के इनफिनिटी मॉल में घूम रहा था। अचानक से एक आदमी आता है और कहने लगता है कि आपने अच्छा किया उसे थप्पड़ मारा। आपको और मारना था। मुझे समझ नहीं आ रहा है। मुझे लग रहा है कि क्या मैं इससे पहले भी मिल चुका हूं। थोड़ी देर बाद मुझे समझ आया कि वो प्यार का पंचनामा फिल्म के एक सीन की बात कर रहा है। मुझे शुरूआती समय से ही लोगों का प्यार मिल रहा है। इसके लिए मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा।
क्या कभी नहीं पहचाने जाते हैं , तो बुरा भी लगता है?
बिलकुल भी बुरा नहीं लगता है। असल में हम इन सब चीजों का अधिक महिमामंडन करते हैं। आपको साइड इफ़ेक्ट नहीं दिखता है। हकीकत ये है कि एक हद के बाद आप इसे एन्जॉय नहीं करते हैं। अभिनेता हैं तो क्या हमारा दिल भी करता है कि बाहर घूमे। दोस्तों के साथ चिल करें लेकिन हमेशा लोगों की निगाहें आप पर होती हैं। आपको न्यायधीश करने की प्रयास करती रहती है कि आप ऐसे बात करते हैं। ऐसे खा रहे थे। बस वो यही सब नोटिस करना चाहते हैं।
अब आपके लिए अब संघर्ष क्या है?
एक आर्टिस्ट की स्वयं से होती है। जो काम कर रहे हैं उसे लेकर खुश और सहज हो जाए या आगे और बेहतरीन के लिए बढे। बस बात इतनी है कि अब और क्या। अब नया कब मिलेगा। अब ऐसा प्रभावशाली भूमिका कब मिलेगा। अब हर चीज मिर्ज़ापुर, पंचनामा या रेलवे मैं जैसी फेमस नहीं हो सकती है। या हर प्रोजेक्ट वैसा बेहतर ढंग से लिखा हुआ नहीं हो सकता तो बस वही जद्दोजहद रहती है। अच्छा ये कितना अच्छा लिखा हुआ है। इसके साथ और कौन -कौन जुड़ने वाले हैं। कैसा बनेगा। इसमें एनर्जी लगनी चाहिए या नहीं। या कभी कभी ये सोचना कि ये सोचना भी ठीक है या नहीं। केवल काम करते रहना है। ये जो आंतरिक संघर्ष है वही है सबकुछ।
मिर्जापुर 3 जल्द ही आनेवाला है, आप मुन्ना त्रिपाठी को कितना मिस करेंगे?
मुन्ना त्रिपाठी को बिलकुल मिस नहीं करता क्योंकि लोग मुझे हर रोज याद दिलाते हैं। सोशल मीडिया हो या कहीं पर मुझसे मिलते हैं। तो वो अच्छी बात है कि कभी भी मुझे भूलने नहीं देते हैं। नए सीजन के लिए मैं भी उत्साहित हूं। मैं भी देखूंगा शौक से।