Do Aur Do Pyaar Review: फिल्म की कास्टिंग है खास
फिल्म- दो और दो प्यार
निर्माता- एप्लॉज
निर्देशक- शीर्षा गुहा ठाकुरता
कलाकार- विद्या बालन, प्रतीक गांधी, सेंधिल, इलियाना डिक्रूज और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग- तीन
Do Aur Do Pyaar Review: लार्जर देन लाइफ सिनेमा पिछले कुछ समय से सिनेमा की नयी परिभाषा बन चुका है, जिस वजह से रिश्तों की कहानियां बड़े पर्दे से बीते कुछ समय से गायब सी हो गयी थी। खासकर वैवाहिक रिश्तों की जटिल कहानियां लेकिन नवोदित निर्देशिका शीर्षा गुहा ठाकुरता ने अपनी फिल्म दो और दो प्यार के लिए उलझे रिश्तों की इसी कहानी को चुना है। विदेशी फिल्म लवर्स की हिन्दी रिमेक वाली इस फिल्म की खास बात है कि विवाह में समाप्त हो रहे प्यार और प्यार की विवाह से बाहर तलाश के संवेदनशील कहानी को बहुत ही हल्के फुल्के अन्दाज में बोला गया है और विद्या बालन और प्रतीक गांधी का बहुत बढ़िया एक्टिंग फिल्म को और मनोरंजक बना गया है।
जटिल रिश्तों की है कहानी
डेंटिस्ट काव्या (विद्या बालन) और उसका बिजनेसमैन पति अनी (प्रतीक गांधी) अपनी शादीशुदा जीवन से खुश नहीं हैं और वह एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स में अपनी अपनी खुशी ढूंढ़ने की प्रयास कर रहे हैं। काव्या, फोटोग्राफर विक्रम (सेंथिल राममूर्ति) के साथ है, जबकि अनी अदाकारा नोरा (इलियाना डीक्रूज) से जुड़ा हुआ है। काव्या और अनी के ये दोनों ही अफेयर्स उनके साथ नई जीवन प्रारम्भ करना चाहते हैं, इसलिए दोनों ही काव्या और आदि पर विवाह को समाप्त करने का दबाव डाल रहे हैं। दोनों को अपनी विवाह को समाप्त करने को लेकर कन्फ्यूजन में हैं। इसी बीच काव्या के दादाजी की मृत्यु हो जाती है और काव्या के साथ अनी को भी उसके घर बैंगलोर जाना पड़ता है। वहां पर मालूम पड़ता है कि दोनों का रिश्ता 15 वर्ष का है। 12 वर्ष की विवाह और तीन वर्ष की डेटिंग। दोनों ने एक-दूसरे से लव मैरिज परिवार के विरुद्ध जाकर की थी। एक समय था जब दोनों एक दूसरे से प्यार में पागल थे। बीते दिनों को सामने पाकर यह पति पत्नी की जोड़ी एक बार फिर से एक दूसरे के करीब आ जाती है। जिसके बाद हालात ऐसे बनते हैं कि यह अपने-अपने एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर्स से दूरी बनाने लगते हैं। क्या काव्या और अनी अपनी विवाह को बचा पाएंगे। क्या होगा जब दोनों को एक दूसरे के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के बारे में मालूम पड़ेगा। क्या इनके संबंध में फिर से दूरी आ जाएगी। यह सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
फिल्म की खूबियां और खामियां
निर्देशिका शीर्षा की यह पहली फिल्म है और उन्होंने जटिल रिश्तों की कहानी को चुना है। यह फिल्म आधुनिक समय के रिश्तों की जटिलताओं और उनसे जुड़ी दुविधाओं को सामने लाती है, जिसमें प्यार, बेवफाई, विश्वासघात शामिल है, जो विवाह जैसे संबंध का मजबूत आधार हैं। ख़ास बात है कि उन्होंने किसी भी भाषणबाजी और ठीक गलत के दो दायरे में कहानी को स्क्रीनप्ले को नहीं रखा है। वे जटिल संबंध की इस कहानी को बहुत ही हल्के – फुल्के अन्दाज़ में बयां किया है, जो इस फिल्म को खास बना गया है। यह फिल्म पूरे समय आपको एंगेज करके रखती है। फिल्म में पिता और पुत्री के संबंध को भी दर्शाया गया है। खामियों की बात करें तो फिल्म का फर्स्ट हाफ जबरदस्त है। सेकेंड हाफ में कहानी लड़खड़ाती है। फिल्म का क्लाइमेक्स जल्दीबाजी में निपटा दिया गया है। क्या जटिल संबंध इतनी सरलता से समाप्त हो जाते हैं और सबकुछ सामान्य हो जाता है। फिल्म में विक्रम और नोरा की बैकस्टारी को भी स्थान नहीं दी गयी है। काव्या और आदि के एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर्स के साथ जुड़ने की बैक स्टोरी को फिल्म में रखने की आवश्यकता थी। डायलॉग की बात करें तो यह भारी भरकम नहीं है, लेकिन फिल्म के विषय के साथ इन्साफ करते हुए गहरा असर छोड़ते हैं। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है, तो फिल्म का गीत संगीत कहानी में अलग रंग जोड़ता है खासकर बिन तेरे सनम गीत का इस्तेमाल।
फिल्म की कास्टिंग है खास
इस फिल्म की कास्टिंग इस फिल्म की यूएसपी है। विद्या बालन एक बार फिर से अपनी किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभा गयी हैं। वह हंसाती हैं और इमोशनल सीन भी वह भावुक भी कर जाती हैं। अपने असहज भूमिका को उन्होंने बहुत सहजता के साथ जिया है। प्रतीक गांधी एक मंझे हुए कलाकार हैं ,यह बात वे इस फिल्म से साबित करते हैं। उन्होंने विद्या का भली–भाँति साथ दिया है | सेंधिल अपनी टूटी फूटी हिन्दी से मुस्कान बिखेरते हैं, तो इलियाना को पर्दे पर काफ़ी समय बाद देखना अच्छा रहा। वह अपने भूमिका को मासूमियत और ईर्ष्या दोनों ही तरह से निभाया है। फिल्म में विद्या के परिवार की कास्टिंग की भी प्रशंसा करनी होगी। हर भूमिका पूरी तरह से अपनी-अपनी किरदार के साथ इन्साफ करता है।