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Hansal Mehta Exclusive: रिलीज फिल्म ‘शाहिद’ ने हिंदी सिनेमा में बनाया एक नया रास्ता

तीन दशक से भी अधिक समय से कैमरे के पीछे एक्टिव निर्देशक हंसल मेहता की 11 वर्ष पहले रिलीज फिल्म ‘शाहिद’ ने हिंदी सिनेमा में एक नया रास्ता बनाया. उसके बाद से हंसल की बनाई फिल्में मसलन ‘सिटीलाइट्स’, ‘सिमरन’, ‘ओमर्टा’, ‘छलांग’ और ‘फराज’ राष्ट्र दुनिया में खूब सराही गईं. वेब सीरीज में भी ‘स्कैम’ और ‘स्कूप’ के जरिये हंसल ने कथा कथन के नए मापदंड बनाए हैं. और, अब उनकी नयी वेब सीरीज ‘लुटेरे’ ने क्राइम कथाओं को कहने का एक नया धरातल खोजा है. हंसल मेहता से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक एक्सक्लूसिव मुलाकात.



 

बतौर अदाकार तो आपने भी कोशिश किए हैं कैमरे के सामने?

हां, मैंने कई बार प्रयास की है अदाकार बनने की. लेकिन, मुझे अगले दिन ही निकाल देते थे कि नहीं इनको आता नहीं है. एक्टिंग की कोशिशों ने मेरा जितना दिल तोड़ा है, उतना तो मेरी फ्लॉप फिल्मों ने भी नहीं तोड़ा. और, फिल्म से अधिक टेलीविजन धारावाहिकों ने मेरा दिल तोड़ा है. स्टार टीवी ने दिल तोड़ा है मेरा. पूरा दिन शूटिंग करने के बाद अगले दिन धारावाहिक से निकाल दिया. मुझे लगता था कि मैं खाना पका सकता हूं, चार बच्चों का बाप बन सकता हूं, निर्देशन कर सकता हूं तो एक्टिंग भी कर सकता हूं. लेकिन ये मेरा काम नहीं है. मैं बहुत बुरा अदाकार हूं.

 

 


आपकी वेब सीरीज अधिकांश क्राइम विषयों पर आधारित होती हैं, इसकी कोई खास वजह?

नहीं, फिल्मों में भी है. ‘अलीगढ़’ का जो विषय है, वह उस समय सेक्शन 377 के चलते क्राइम ही था. शाहिद में जो था, वह भी एक तरह का सामाजिक क्राइम ही था. मेरा मानना है कि कहानी के विषय की बजाय उसके भूमिका उस विषय को रोचक बनाते हैं. हर भूमिका आम ही होता है, लेकिन कोई बात होती है उसके जीवन में, कोई ऐसा उत्प्रेरक आता है उसके जीवन में जिसकी वजह से वह


आपको अपनी सारी वेब सीरीज के लिए पुरस्कार मिले और अब बारी बेटे की है, बेटे का नाम परदे पर बतौर निर्देशक देखना कैसा एहसास रहा?

मैं केवल ये कह सकता हूं कि मुझ पर, जय पर, हमारे माता पिता का आशीर्वाद है. उन्होंने जो सपना देखा, वह आज पूरा हो रहा है. मुझे से अधिक उन्हें जय का नाम परदे पर देखने की ख्वाहिश थी. लेकिन, इसे देखे बिना ही वह इस दुनिया से चले गए. मुझे लगता कि कहीं न कहीं वह मुस्कुरा भी रहे होंगे. कहीं से तो देख पा रहे होंगे कि उनका जो लाडला है उसका नाम परदे पर निर्देशक के तौर पर आ रहा है. 15 वर्ष की उम्र तक उनके साथ सोता था जय. ये हम सबके लिए पूरे परिवार के लिए एक बहुत भावुक क्षण है.

 


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