‘भूख में कुत्ता बन जाता है इंसान’ :जावेद अख्तर
मशहूर कवि और हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर जब अपने पिछले कठिन के समय को लेकर दुखी नहीं होते बल्कि शुक्रगुजार हैं. उनका बोलना है कि उन्होंने जो झेला बहुत लोग झेलते हैं लेकिन जीवन बदले में हर किसी को इतना नहीं देती. जावेद ने वो समय याद किया जब उनके पास खाने के 2 दिन तक कुछ भी नहीं था. उस पल को सोचकर वह रो पड़े. साथ ही बोला कि डिनर के समय जब कोई खाना पूछता तो वह क्या उत्तर देते थे.
जावेद अख्तर ने वो समय भी देखा है जब उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं होता था. बरखा दत्त के साथ मोजो स्टोरी में उन्होंने उस दौर को याद किया. जावेद अख्तर ने कहा, मैं संघर्ष के दिनों को सोचकर दुखी नहीं होता. अब खिड़की के बाहर समुद्र देखता हूं एवं खाना खाता हूं तो सोचता हूं कि मैं किसी ड्रामा का भाग हूं. जब मैं डाइनिंग टेबल पर इतना सारा खाना लगा देखता हूं तो सोचता हूं कि इनमें से एक दाल या सब्जी ही उस रात मेरे पास होती जब मैं भूखा सोया था तो कितना मजा आया होता. मैं जीवन का शुक्रगुजार हूं क्योंकि कई लोगों ने मेरे जैसा दर्द झेला होगा मगर उनके जीवन में इसकी भरपाई नहीं हो पाई. जावेद से पूछा गया कि कितने दिन भूखे रहना पड़ा. उन्होंने उत्तर दिया, कई दिन. मान लीजिए मैंने प्रातः से कुछ नहीं खाया. शाम को किसी के घर पहुंचा एवं वे लोग डिनर कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, आइए खाना खा लीजिए. तब आप अपने आप बोलते हैं, नहीं मैं तो खाकर आया हूं, चाय पी लूंगा. जबकि मैं तो खाने के लिए मरा जा रहा हूं. मन ही मन आत्मग्लानि होती थी कि यदि पता चल गया कि खाने के लिए मर रहा हूं एवं बोल रहा हूं कि खा चुका तो बड़ी शर्मिंदगी होगी. जावेद अख्तर ने आगे कहा, अब किसी के घर जाता हूं एवं थोड़ी भूख लगती है तो आत्मविश्वास के साथ बोल देता हूं कि अरे भई मुझे बहुत भूख लग रही है, मुझे कुछ खाने को दो. लेकिन जब उस सिचुएशन में होते हैं तो थोड़े सेंसिटिव हो जाते हैं. 2-3 घटनाएं ऐसी थीं जिन्होंने मुझे ट्रॉमाटाइज्ड किया तथा ये ट्रॉमा अब तक है. जैसे मेरे पास 2 दिन तक खाने केलिए कुछ नहीं था. ऐसे में तीसरे दिन कुत्ते और मनुष्य में फर्क नहीं रहता. आपका सेल्फ रिस्पेक्ट, डिग्निटी सब कुछ धुंधला हो जाता है. बस आप इतना जानते हैं कि भूख लगी है.