मनोरंजन

तंग गलियां, घुंघरुओं की खनक और मुजरा, ये थी हीरामंडी की पहचान

संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी आजकल चर्चा में है. क्या भंसाली ने जो हीरामंडी दिखाई, वो ओरिजिनल में वैसी ही थी. इसका उत्तर है, शायद नहीं. हालांकि सीरीज के डिस्क्लेमर में पहले ही बोला जा चुका है कि यह एक फिक्शनल शो है, इसलिए वहां से सच्चाई पता चलनी थोड़ी कठिन है. हम आपको हीरामंडी से जुड़े कुछ ओरिजिनल फैक्ट्स बताते हैं-

  • सीरीज में दिखाया गया है कि हीरामंडी का एरिया काफी स्पेस वाला था. हालांकि सच्चाई इससे उलट है. वहां तंग गलियां हैं, एरिया काफी कंजेस्टेड है.
  • मुगल बादशाह अकबर ने 1584 में अपना ठिकाना फतेहपुर सीकरी से बदलकर लाहौर कर लिया था. वहां उसने स्वयं के और दरबारियों के मनोरंजन के लिए एक क्षेत्र बसाया. यह क्षेत्र शाही दरबार के निकट था, इसलिए इसे शाही मोहल्ले का नाम दिया गया.
  • मुगलों के मनोरंजन के लिए यहां अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से स्त्रियों को लाया जाता था. वो यहां संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करती थीं. इस विधा को मुजरा बोला जाता था. मुजरा करने वाली स्त्रियों को तवायफ बोला गया. ध्यान दीजिएगा, शुरुआती दौर में इन तवायफों का मुख्य काम शरीर व्यापार नहीं था. उनका मुख्य कार्य नाच-गाना कर अतिथियों का मनोरंजन करना ही था.
  • तवायफों को शास्त्रीय संगीत और नृत्य सिखाने के लिए बाकायदा लोग भी रखे जाते थे, जिन्हें उस्ताद बोला जाता था.
  • तवायफों को अपनी संस्कृति और सभ्यता की अच्छी समझ थी. इसी वजह से लाहौर के इर्द-गिर्द के नवाब और रईस लोग अपने बच्चों को अदब और तमीज सिखाने के लिए इनके पास भेजते थे.
  • मुगलों के बाद लाहौर पर अहमद शाह अब्दाली और नादिर शाह ने धावा कर दिया. यहीं से धीरे-धीरे इन तवायफों का अस्तित्व मिटने लगा.
  • अब्दाली के बाद यहां सिखों का राज हुआ. उस समय महाराजा रणजीत सिंह की सेना में एक जनरल हुआ करते थे- हीरा सिंह डोगरा. उन्होंने ही शाही मोहल्ले के इर्द-गिर्द एक अनाज का बाजार बसा दिया. उस समय इसे हीरा सिंह दी मंडी का नाम दिया गया. बाद में शॉर्ट फॉर्म में इसे हीरामंडी बोला जाने लगा. सिखों के दौर में तवायफों की स्थिति थोड़ी अच्छी हो गई. उन्हें दरबारी संरक्षण मिला हुआ था.
  • इस समय तक अंग्रेजों ने हिंदुस्तान में पैर पसारने प्रारम्भ कर दिए थे. सिखों और अंग्रेजों में दो युद्ध हुए और लाहौर पर अंग्रेजी हुकूमत हो गई.
  • अंग्रेजों के आ जाने से हीरामंडी के तवायफों की वास्तविक परेशानी प्रारम्भ हो गई. उन्हें न अब संरक्षण था और न ही कोई भत्ता मिलता था. विवशता में पेट पालने के लिए तवायफें वेश्यावृत्ति का हिस्सा बन गईं. यहीं से हीरामंडी में वेश्यालय खुलने लगे.
  • कुछ दिनों बाद अंग्रेजों ने हीरामंडी से दूर अपनी छावनी बदल दी. हीरामंडी के इर्द-गिर्द के महलों को यहां के रईसों ने खरीद लिया, इसलिए मुजरा जारी रहा. सारे रईस इन्हीं महलों में आकर मुजरा देखते थे. भंसाली की सीरीज की कहानी थोड़ी इसी कालखंड से मिलती जुलती है.
  • आजादी के बाद लाहौर पाक का हिस्सा बन गया. वहां की सरकारों का इन तवायफों को लेकर रुख विरोधी था. धीरे-धीरे तवायफें समाप्त होने लगीं. जो हीरामंडी पहले तवायफों के घुंघरुओं की खनक से गूंजती रहती थी, वो रात के समय में जिस्मफरोशी का सबसे बड़ा अड्डा बन गई.
  • वर्तमान समय की बात करें तो हीरामंडी लाहौर के सबसे बिजी इलाकों में से एक है. यह स्थान खाने-पीने के लिए काफी फेमस है. इसके अतिरिक्त यहां म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की लाइन से कई दुकानें हैं.

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