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जगदीप की 85वीं बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए उनकी जिंदगी के कुछ अनकहे किस्से…

शोले में सूरमा भोपाली का भूमिका अमर करने वाले जगदीप की आज 85वीं बर्थ एनिवर्सरी है. 7 दशक के अभिनय में उन्होंने करीब 400 फिल्मों से लोगों को हंसाने का काम किया, लेकिन असल में जीवन में संघर्ष से अछूते नहीं रहे.

भारत-पाक बंटवारे में हुए दंगों में उनके पिता मारे गए. फिर मां ने अनाथाश्रम में काम करके उन्हें पाला. मां की सहायता करने के लिए 7-8 वर्ष की उम्र से ही सड़कों पर गुब्बारे बेचे, टिन, पतंग और साबुन की फैक्ट्री में काम किया. इसी दौरान उनका रिश्ता फिल्मों से जुड़ा. फिर चाइल्ड आर्टिस्ट से आरंभ कर उन्होंने फिल्मों में लीड भूमिका निभाने तक का यात्रा तय किया.

फिल्मों के जैसे ही जगदीप की व्यक्तिगत जीवन भी फिल्मी रही. बेटे को देखने आई लड़की की बड़ी बहन को ही दिल दे बैठे और विवाह भी की.

भारत-पाकिस्तान विभाजन के दंगे में पिता की मृत्यु हुई
जगदीप का जन्म मध्य प्रदेश के दतिया में 29 मार्च 1939 को एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनकी परवरिश बहुत ठाट-बाट से हुई, लेकिन ये खुशियां बस चंद दिनों की ही थीं.

दरअसल, ये दौर भारत-पाकिस्तान विभाजन का था. जगदीप के परिवार को भी विभाजन का दंश झेलना पड़ा. इसी दंगे ने उनके सिर से पिता का साया छीन लिया. इस घटना के बाद परिवार में तंगी का आलम प्रारम्भ हो गया. नतीजतन, मां को छोटे जगदीप के साथ काम की तलाश में मुंबई का रुख करना पड़ा.

पढ़ाई छोड़ टिन के कारखाने में काम किया
मुंबई पहुंचने के बाद कुछ दिनों तक जगदीप की मां को कोई काम नहीं मिला. खाने-रहने हर चीज की परेशानी लगी रही. हालांकि जल्द ही उनका यह संघर्ष समाप्त हो गया. जगदीप की मां को अनाथालय में खाना बनाने का काम मिल गया. इस वजह से सुबह से शाम तक उन्हें वहां काम करना पड़ता था.

मां की यह हालत जगदीप को बहुत परेशान करती थी. एक दिन उन्होंने हमउम्र बच्चों को गुब्बारे बेचते देखा. वहीं उन्होंने कुछ बच्चों को टिन के कारखानों में काम करते हुए देखा. यह देख उनके मन में भी काम करने की ख़्वाहिश जगी. उन्होंने ठान लिया कि वो भी इसी तरह कमाई करके अपनी मां की सहायता करेंगे. इसके लिए उन्होंने पढ़ाई भी छोड़ने का मन बना लिया.

जब यह बात मां को पता चली तो वह बहुत गुस्सा हुईं. हालांकि बहुत मनाने के बाद मान भी गईं. इसके बाद जगदीप एक टिन की फैक्ट्री में काम करने लगे. बाद में साबुन बेचने से लेकर पतंग बनाने तक का काम किया.

इस दौरान एक होटल का मालिक उन्हें और उनके दोस्तों को सूखे पाव के साथ हरी मिर्च खाने के लिए दे दिया करता था. जगदीप अपने दोस्तों के साथ मिलकर उस मिर्च को पीस कर सूखे पाव के साथ चाव से खा लेते थे.

यह सीन फिल्म अफसाना का है, जो जगदीप के करियर की पहली फिल्म थी. फिल्म में उन्होंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया था.

सिर्फ 3 रुपए के लिए फिल्म में काम करने को राजी हुए
1950 के दशक में बीआरचोपड़ा फिल्म अफसाना बनाने की तैयारी कर रहे थे. फिल्म के लिए उन्हें कुछ चाइल्ड आर्टिस्ट की आवश्यकता थी. इसी खोज में कास्टिंग टीम कई दिनों से परेशान थी. एक दिन उनकी नजर जगदीप पर पड़ी. सीन के हिसाब से जगदीप एकदम ठीक मालूम पड़े.

चोपड़ा की कास्टिंग टीम ने उनसे फिल्मों में काम करने के लिए पूछा. भोले जगदीप ने इससे पहले ना फिल्मों के बारे में सुना था और ना ही कोई फिल्म देखी थी. फिर उन्होंने पूछा कि यदि वो काम के लिए राजी हो जाते हैं, तो उन्हें कितना मेहनताना मिलेगा. उत्तर मिला- 3 रुपए. इतना सुनते ही जगदीप ने फिल्म में काम करने के लिए हां कर दी.

हुनर की बदौलत पहली फिल्म में 3 नहीं बल्कि 6 रुपए मिले
पहले दिन जगदीप मां के साथ सेट पर गए. जिस सीन में उन्हें काम करना था, उसमें बच्चों के चल रहे नाटक में बच्चों के साथ ही बैठकर ताली बजाना था. उस नाटक में एक बच्चे को उर्दू की एक लंबी लाइन बोलनी थी, लेकिन वो लड़का बार-बार अटक जा रहा था.

यह काम जगदीप को बहुत सरल लगा. उन्होंने बगल में बैठे लड़के से पूछा- यदि यह मैं कर दूं, तो इस काम के लिए कितने पैसे मिलेंगे.

लड़के ने कहा कि बहुत पैसे मिलेंगे. पैसों की आवश्यकता की वजह से उन्होंने जाकर वो लाइन बोल दी. उर्दू अच्छी थी इसलिए उन्होंने एक टेक में पूरी लाइन बोल दी. फिर इस काम के लिए उन्हें 6 रुपए मिले. फिल्म अफसाना के रोल से जगदीप को पॉपुलैरिटी मिली जिसके बाद उन्होंने लैला मजनू, फुटपाथ जैसी फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया.

रोने की बदौलत बिमल रॉय की फिल्मों में काम मिला
फिल्म धोबी चिकित्सक में जगदीप ने किशोर कुमार के बचपन का रोल निभाया था. फिल्म के एक सीन में उन्होंने रोने का शॉट दिया था. इस सीन में जगदीप की परफॉर्मेंस इतनी कमाल की थी कि डायरेक्टर बिमल रॉय उनके काम के फैन हो गए.

फिर उन्होंने जगदीप से मुलाकात की. मुलाकात के दौरान जगदीप ने बातों से भी उन्हें लुभा लिया. फिर क्या था, बिमल रॉय ने उन्हें दो बीघा जमीन में काम करने का ऑफर दे दिया. इसके बाद दोनों ने साथ में कई फिल्मों में काम किया.

पं जवाहरलाल नेहरू ने गिफ्ट में अपनी छड़ी दी थी
जगदीप ने मुन्ना, अब दिल्ली दूर नहीं है, हम पंछी एक डाल के जैसी फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर काम किया था, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था. इन फिल्मों को तत्कालीन पीएम पं जवाहरलाल नेहरू ने भी देखा और फिल्म में काम कर चुके सभी चाइल्ड आर्टिस्ट को नाश्ते पर बुलाया.

पं नेहरू ने बच्चों को नाश्ते के साथ गुलदस्ता भी दिया, लेकिन जब जगदीप का नंबर आया तो गुलदस्ते समाप्त हो गए. इस पर पीएम ने उनसे कहा- जगदीप फिल्मों में तुम्हारी अभिनय बहुत बढ़िया थी, मुझे बहुत पसंद आई. अभी तो गुलदस्ते समाप्त हो गए हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम मेरी छड़ी इस सम्मान के तौर पर रख लो. पीएम नेहरू की दी हुई छड़ी को जगदीप ने ताउम्र संभाल कर रखा.

ये फिल्म ब्रह्मचारी (1968) का पोस्टर है. इसमें जगदीप ने पहली बार कॉमेडी रोल किया था, जिसके बाद से उन्हें कॉमेडी फिल्में ऑफर होने लगी थीं.

सहारा बने के आसिफ, स्वयं के पास नहीं थे पैसे, फिर भी सहायता की
फिल्म इंडस्ट्री में डायरेक्टर के आसिफ की दरियादिली के किस्से बहुत फेमस थे. उन्होंने एक बार जगदीप को फिल्म ऑफर की. लोगों ने जगदीप से उनकी दरियादिली का हवाला देते हुए बोला कि वो डायरेक्टर से अधिक फीस की ही डिमांड करें.

जगदीप ने उनसे मुलाकात की.

के आसिफ ने उनसे पूछा- फिल्म में काम करने के लिए कितनी फीस लेंगे?

जवाब में जगदीप ने कहा- 2500 रुपए.

इस पर आसिफ बोले- तुम्हें अपनी ठीक मूल्य नहीं पता है. इस रोल के लिए तुम्हें मैं 3500 रुपए दूंगा.

इसके बाद के आसिफ ने उन्हें 500 रुपए देकर भेज दिया और कहा- जब बाकी पैसों की आवश्यकता हो, तो आकर मांग लेना.

आसिफ की इस हरकत से जगदीप को बहुत खुशी मिली. फिर शूटिंग प्रारम्भ हुई. इस दौरान जब भी उन्हें पैसे की आवश्यकता होती थी, वो के आसिफ से जाकर मांग लेते थे. उनकी इस हरकत से आसिफ का नौकर बहुत गुस्सा होता था. एक दिन उसने जगदीप को रोक कर कहा- तुम बार-बार क्यों चले आते हो पैसे मांगने. क्या तुम्हें पता नहीं कि फिल्म की बाकी शूटिंग अब कभी नहीं होगी. किसी वजह से उसे रोक दिया गया है.

के आसिफ एकमात्र ऐसे डायरेक्टर थे, जिन्होंने अपने करियर में 2 फिल्में डायरेक्ट की थीं. हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक मुगल-ए-आजम भी इन्हीं की देन है.

ये सुनकर जगदीप को बहुत बुरा लगा कि फिल्म बंद हो जाने के बावजूद के आसिफ उनकी सहायता करते रहे. इसके बाद उन्होंने निर्णय किया कि वो दोबारा कभी भी पैसे मांगने नहीं आएंगे. हालांकि एक दिन उन्हें कुछ पैसों की कठोर आवश्यकता थी. आखिरकार उन्हें विवशता में के आसिफ के पास जाना पड़ा क्योंकि उन्हें पता था कि इस मुसीबत के समय में वहीं उनकी सहायता करेंगे.

वो गए और के आसिफ ने उन्हें 50 रुपए दे दिए. फिर उनके नौकर ने जगदीप को टोका और कहा- तुम फिर आ गए. के आसिफ और उनकी पत्नी के पास यही 50 रुपए थे, जो उन्होंने तुम्हें दे दिए. इस बात का पछतावा जगदीप को ताउम्र रहा. इस घटना को याद करते हुए वो अक्सर कहते थे कि के आसिफ जैसा महान और दिलदार डायरेक्टर ही मुगल-ए-आजम जैसी फिल्म बना सकता था.

किस्सा सूरमा भोपाली बनने का
फिल्म शोले में जगदीप सूरमा भोपाली के रोल में दिखे थे. ये रोल इतना पसंद किया गया कि जगदीप को लोग सूरमा भोपाली के नाम से जानने लगे. वहीं उनको ये रोल मिलने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. दरअसल, ‘सूरमा भोपाली’ का भूमिका भोपाल के फॉरेस्ट ऑफिसर नाहर सिंह पर आधारित था.

भोपाल में अरसे तक रहे जावेद अख्तर ने नाहर सिंह के किस्से सुन रखे थे, इसलिए जब उन्होंने सलीम के साथ फिल्म ‘शोले’ लिखना प्रारम्भ किया, तो कॉमेडी के लिए नाहर सिंह से मिलता-जुलता भूमिका ‘सूरमा भोपाली’ तैयार कर दिया.

फिल्म शोले में जगदीप सूरमा भोपाली के रोल में दिखे थे. उन्होंने अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र के साथ स्क्रीन शेयर किया था.

एक दिन जावेद अख्तर ने उन्हें फिल्म शोले की कहानी सुनाई. जगदीप को लगा कि दोस्ती की वजह से उन्हें काम मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

फिल्म की लगभग पूरी शूटिंग हो गई, तब एक दिन अचानक उन्हें डायरेक्टर रमेश सिप्पी का टेलीफोन आया. उन्होंने जगदीप को फिल्म में सूरमा भोपाली का रोल ऑफर किया. इस पर जगदीप ने बोला कि फिल्म की शूटिंग तो पूरी हो गई. तब सिप्पी ने बोला कि अभी कुछ सीन्स की शूटिंग बाकी है. इसके बाद उन्होंने सूरमा भोपाली का रोल निभाया, जो आज भी अमर है.

शोले और सूरमा भोपाली का रोल, दोनों ही हिट रहे. इस सक्सेस के बाद जगदीप ने इसी भूमिका पर फिल्म सूरमा भोपाली बनाने के बारे में सोचा. उन्होंने ये फिल्म बनाई भी, जो 1988 में रिलीज हुई थी. ये हिंदुस्तान के बहुत से राज्य में फ्लॉप रही, लेकिन मध्य प्रदेश में इस फिल्म के प्रशंसक बड़ी तादाद में रहे.

3 शादियां कीं, 6 बच्चों के पिता बने
जगदीप की व्यक्तिगत जीवन भी कम फिल्मी नहीं है. उन्होंने 3 शादियां की थीं, जिससे उन्हें 6 बच्चे हुए थे. पहली पत्नी नसीम बेगम, दूसरी सुघ्र बेगम और तीसरी नजीमा थीं. तीसरी पत्नी से विवाह करने का किस्सा भी अलग ही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, जगदीप के बेटे को लड़की वाले देखने आए थे, लेकिन बेटे नावेद को विवाह नहीं करनी थी.

जिस लड़की का रिश्ता आया, उसकी बड़ी बहन जगदीप को पहली नजर में ही पसंद आ गई. उन्होंने उस लड़की को प्रपोज भी किया, जिसके बाद दोनों की विवाह हो गई. इस विवाह से उन्हें बेटी मुस्कान जाफरी है.

जगदीप के अधिक शराब पीने से परेशान रहते थे बेटे जावेद जाफरी
जगदीप के दूसरे बेटे जावेद जाफरी भी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स का दावा था कि जाफरी और जगदीप के बीच संबंध अच्छे नहीं थे. वजह ये थी कि एक समय ऐसा था कि जगदीप बहुत अधिक शराब पीने लगे थे और उन्हें जुए की भी लत लग गई थी. उनकी ये आदत जाफरी को एकदम भी पसंद नहीं थी, जिस वजह से आए दिन उनके बीच बहस होती रहती थी. उन्होंने जगदीप को बहुत बार इंकार भी किया था. हालांकि कुछ समय बाद दोनों के संबंध पहले से बेहतर हो गए.

81 वर्ष की उम्र में दुनिया को बोला अलविदा
81 वर्ष की उम्र में जगदीप रोंगों से जूझ रहे थे. कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान वो काफी कमजोर हो गए थे. आखिरकार 8 जुलाई 2020 को वो अपने पीछे 6 बच्चों और नाती-पोतों से भरा परिवार छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गए.

 

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