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सरफरोश के लिए निर्माताओं की पहली पसन्द आमिर नहीं बल्कि थे ये एक्टर

साल 1999 में 30 अप्रैल को आमिर खान की फिल्म
‘सरफरोश’ रिलीज हुई थी. आमिर
खान और सोनाली बेंद्रे
की इस फिल्म के
गाने, कहानी और भूमिका सब
सुपरहिट थे. सरफरोश फिल्म
ने आमिर खान के
करियर को आगे बढ़ाने
में सहायता भी की
थी. हालांकि, इस फिल्म के लिए निर्माताओं की पहली
पसन्द शाहरुख खान थे, आमिर खान नहीं.

इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक
इंटरव्यू में ‘सरफरोश’ के
निर्देशक जॉन मैथ्यू मथान ने बताया
कि फिल्म मेकर्स आमिर खान की
जगह शाहरुख खान को फिल्म
में लेना चाहते थे.
उन्होंने कहा कि मनमोहन शेट्टि
जो कि Adlabs के मालिक हैं,
उन्होंने शाहरुख की दो फिल्में,
‘कभी हां कभी ना’
और ‘इंग्लिश बाबू’ को फंड किया
था. उन्होंने ही फिल्म में
शाहरुख को लेने की
बात कही थी.

जॉन ने कहा कि
मनमोहन शेट्टी ने उनसे पैसे
बचाने कि लिए फिल्म
में शाहरुख को लेने की
बात कही थी. उन्होंने
कहा था कि हम
तीनों के बीच एक
अच्छी डील हो सकती
है. इसलिए फिल्म में शाहरुख को
कास्ट करना बेहतर आइडिया
है. हालांकि, जॉन ने इस
बात को नहीं सुना
और बोला कि शाहरुख खान मेरी फिल्म में
फिट नहीं बैठते हैं, इस भूमिका के लिए मुझे आमिर खान ही चाहिए.

वह बताते हैं, ”मैं बहुत सारी
हिंदी फिल्में देखता था. जब मैं 8वीं कक्षा में था तब मैंने फिल्में देखना प्रारम्भ कर
दिया था. मैंने उससे पहले
हिंदी फिल्में नहीं देखी थीं, लेकिन जब मैं
कॉलेज में था, तब तक मैंने अब तक बनी हर हिंदी फिल्म देखी थी. लेकिन फिर 1980 के
दशक में फिल्में इतनी खराब हो गईं कि मैंने हिंदी फिल्में देखना ही बंद कर दिया. मैंने लंबे समय तक
इसे देखना बंद कर दिया, और फिर मैंने अपनी फिल्म के बारे में सोचना प्रारम्भ कर दिया और
प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने और विषय पर अध्ययन करने के लिए राजस्थान और दिल्ली चला गया. मैंने वहां बहुत
सारी चीजें सीखीं. लगभग इसी समय, मैं दिल्ली के एक
छोटे से गेस्टहाउस में रह रहा था. वहां टेलीविजन पर मैंने आमिर की एक फिल्म का एक छोटा सा
दृश्य देखा जहां उनका भूमिका माधुरी दीक्षित के भूमिका के साथ दुष्कर्म करने वाला
था. और मुझे लगा कि यह
लड़का निष्ठावान दिखता है, वह इस लड़की का दुष्कर्म नहीं करेगा और यह केवल एक कृत्य
था. लेकिन मुझे लगा कि
वह इस किरदार के लिए उपयुक्त हैं.‘ असल में वह तब कोई बड़े स्टार नहीं थे. इसलिए जब मैं
मुंबई वापस आया और आमिर को ध्यान में रखते हुए सरफरोश पर काम प्रारम्भ किया.

जॉन मैथ्यू मैथन ने साझा किया कि उनके फिल्म निर्माता मित्र
चाहते थे कि वे सरफरोश में आमिर खान के बजाय शाहरुख खान को कास्ट करें ताकि वे
“अधिक पैसा कमा सकें”. “मैं अपने दोस्त मनमोहन शेट्टी से मिला, जो एडलैब्स के मालिक थे, और उनसे बोला कि
मैं एक फिल्म बनाना चाहता हूं. लगभग इसी समय, शेट्टी ने फीचर
फिल्मों के निर्माण के लिए एंटरटेनमेंट वन की आरंभ की थी. उन्होंने मेरे
दोस्तों की दो फिल्मों को फंड किया था, जिनमें दोनों में
शाहरुख खान थे. एक थी विक्रम
मेहरोत्रा की कभी हां कभी ना, जिसका निर्देशन
कुंदन शाह ने किया था और दूसरी थी प्रवीण निश्चल की इंग्लिश बाबू देसी मेम, दोनों में एसआरके ने एक्टिंग किया था. तो उस समय, उन सभी ने सुझाव दिया कि मैं शाहरुख को ले लूं. मैंने कहा, ‘सुनो, मुझे नहीं लगता कि
शाहरुख मेरे रोल में फिट बैठते हैं. मेरे दिमाग में वह नहीं है,’ लेकिन उन्होंने बोला कि हम अधिक पैसे बचा पाएंगे क्योंकि हम
तीनों को एक सौदा मिल सकता है, लेकिन मैं ऐसा
नहीं करना चाहता था.

यह साझा करते हुए कि कैसे आमिर की सहज स्क्रीन उपस्थिति ने
उन्हें विश्वास की छलांग लगाई और स्क्रिप्ट के साथ उनसे संपर्क किया, वे कहते हैं, “फिर मैं आमिर से
मिला. उन्होंने
स्क्रिप्ट पढ़ी और हाँ कह दी. तो फिर मैंने आमिर का शोध करना प्रारम्भ किया कि उन्होंने
क्या किया है और उन्होंने सिर्फ़ प्रेम कहानियां बनाई हैं. मुझे लगा कि यह
अच्छा है क्योंकि वह विनम्र था. उदाहरण के लिए, यदि आप स्पाइडरमैन
को देखते हैं, तो जब आप पहले उस आदमी को देखते हैं, तो आप जानते हैं कि वह कुछ नहीं कर पाएगा, लेकिन वह स्पाइडरमैन बन जाता है और आपको विश्वास होने लगता
है कि वह यह कर सकता है. इसलिए मुझे एक ऐसे हीरो की आवश्यकता थी जो बदल जाए, तो आप उसके साथ हैं, उसका समर्थन कर
रहे हैं क्योंकि आपको लगता है कि यह लड़का बहुत कमज़ोर है. सरफरोश जैसी
यथार्थवादी फिल्म में, मैं चाहता था कि दर्शक उस आदमी को महसूस करें. इन तीनों बातों को
ध्यान में रखते हुए, मुझे विश्वास था कि मैं आमिर को चाहता हूं.

सरफरोश से पहले आमिर खान कई रोमांटिक कॉमेडी और कॉमेडी
फिल्मों का हिस्सा रह चुके हैं. सरफरोश के बाद उन्होंने लगान जैसी फिल्मों में एक्टिंग किया. सरफ़रोश को यकीनन
उनके करियर का “टर्निंग पॉइंट” बोला जा सकता है. मैथन कहते हैं, “सरफ़रोश से पहले, आमिर एक अलग आदमी
थे. वह केवल प्रेम
कहानियां कर रहे थे.‘ किसी ने भी उन्हें
एक्शन फिल्म में लेने की हौसला नहीं की, जबकि दिल से वह
ऐसी फिल्में करना चाहते थे जो अलग हों, अधिक यथार्थवादी
हों और इसीलिए उन्होंने मेरी फिल्म करने के लिए हामी भरी. हालाँकि, जब उन्होंने मेरी फिल्म की, तो उन्हें कुछ आशंकाएँ थीं. उन्हें नहीं लगा
कि यह कोई व्यावसायिक फिल्म है. मैं जानता था कि फिल्म हलचल नहीं मचाएगी, लेकिन लहर जरूर पैदा करेगी. यदि मुझे पता होता
कि फिल्म पैसे वसूल नहीं करेगी तो मैं किसी फिल्म में अपना पैसा नहीं लगाऊंगा. मुझे नहीं पता था
कि मैं कितना पैसा कमाऊंगा, लेकिन मुझे भरोसा
था कि फिल्म अपनी लागत वसूल कर लेगी.

उन्होंने कहा, सरफरोश बनने के बाद और क्योंकि उन्हें लगा कि
यह व्यावसायिक नहीं है, वह चाहते थे कि यह कुछ व्यावसायिक फिल्मों के बाद आए, जिसके कारण फिल्म में देरी हुई. लेकिन आख़िरकार जब
सरफ़रोश रिलीज़ हुई तो बाकी कमर्शियल फ़िल्मों से ज़्यादा चली. यह गुलाम के बाद
आया. तब उन्हें एहसास
हुआ कि उन्हें ऐसी फिल्में करने की आवश्यकता है जिनमें मौलिक कहानियां हों. तो फिर उन्होंने
लगान की. सरफ़रोश के बाद
उनके रवैये में साफ़ परिवर्तन देखने को मिला. फिल्म के बाद, वह ऐसी फिल्में कर
रहे हैं जो नियमित पॉटबॉयलर से ‘अलग’ हैं और यही कारण है कि वह इन सभी सालों में प्रासंगिक बने
रहे हैं.

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