स्वास्थ्य

आज ही के दिन मनाया जाता हैं विश्व मलेरिया दिवस, जानें इस दिन का इतिहास

  विश्व मलेरिया दिवस (अंग्रेज़ी: World Malaria Day) सम्पूर्ण विश्व में ’25 अप्रैल’ को मनाया जाता है. ‘मलेरिया’ एक जानलेवा रोग है, जो मच्छर के काटने से फैलती है. इस रोग से पीड़ित आदमी को यदि ठीक समय पर मुनासिब उपचार तथा चिकित्सकीय सहायता न मिले तो यह जानलेवा सिद्ध होती है. मलेरिया एक ऐसी रोग है, जो हज़ारों सालों से मनुष्य को अपना शिकार बनाती आई है. विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती है. पिछले दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया के उन्मूलन के लिए चलाए गए अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के बावजूद इस जानलेवा रोग के आंकड़ों में कमी तो आई है, लेकिन अभी भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है.

शुरुआत

हर दिन का अपना एक ख़ास महत्त्व होता है. फिर चाहे वह खुशी का दिन हो या दु:ख का. ‘विश्व मलेरिया दिवस’ एक ऐसा ही दिन है, जिसे पहली बार ’25 अप्रैल, 2008′ को मनाया गया था. यूनिसेफ़ द्वारा इस दिन को मनाने का उद्देश्य मलेरिया जैसे ख़तरनाक बीमारी पर जनता का ध्यान केंद्रित करना था, जिससे हर वर्ष लाखों लोग मरते हैं. इस मामले पर ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का बोलना है कि मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चलाने से बहुत-सी जानें बचाई जा सकती हैं.[1]

क्या है मलेरिया

‘मलेरिया’ एक प्रकार का बुखार है. इसमें बुखार ठण्‍ड (कंपकपी) के साथ आता है. इस बुखार के मुख्य लक्षण हैं- सरदर्द, उलटी और अचानक तेज सर्दी लगना. मलेरिया मुख्यत: संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्‍छर द्वारा काटने पर ही होता है. जब संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्‍छर किसी स्वस्थ व्‍यक्ति को काटता है तो वह अपने लार के साथ उसके रक्‍त में मलेरिया परजीवियों को पहुंचा देता है. संक्रमित मच्‍छर के काटने के 10-12 दिनो के बाद उस व्‍यक्ति में मलेरिया बीमारी के लक्षण प्रकट हो जाते हैं. मलेरिया के बीमार को काटने पर असंक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्‍छर बीमार के रक्त के साथ मलेरिया परजीवी को भी चूस लेते हैं और 12-14 दिनों में ये मादा एनाफ़िलीज मच्‍छर भी संक्रमित होकर जितने भी स्‍वस्थ मनुष्‍यों को काटते हैं, उनमें मलेरिया फैलाने में सक्षम होते हैं. इस तरह एक मादा मच्छर कई स्वस्थ लोगों को भी मलेरिया ग्रसित कर देता है.

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट

‘डब्ल्यूएचओ’ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2000 से अब तक मलेरिया से होने वाली मौतों में 25 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. इसमें बोला गया है कि मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित 99 में से 50 राष्ट्र 2015 तक मलेरिया के मामलों में 75 प्रतिशत तक की कमी लाने के रास्ते पर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक़, इस उपलब्धि के बावजूद हकीकत यह है कि आज भी दुनिया में मलेरिया से हर वर्ष क़रीब छह लाख 60 हज़ार लोगों की मृत्यु हो जाती है. इनमें से ज्यादातर बच्चे होते हैं. अफ़्रीका के उप सहारा क्षेत्र में आज भी मलेरिया की वजह से सबसे अधिक बच्चों की जान जा रही है. ‘डब्ल्यूएचओ’ का बोलना है कि दुनिया में हर वर्ष मलेरिया के क़रीब 20 करोड़ नए मुकदमा सामने आते हैं. साधनों की कमी के कारण इनमें से बहुतों को स्तरीय उपचार तक नहीं मिल पाता.[2]

भारत में मलेरिया की स्थिति

यदि गौर किया जाए तो हिंदुस्तान की स्वतंत्रता के बाद से अब तक हज़ारों लोग इस रोग की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं. मलेरिया एक जटिल रोग है. मानव गतिविधियाँ और प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- अत्यधिक वर्षा, बाढ़, अकाल और अन्य आपदाएं इस रोग की संक्रमण क्षमता को तेज़ीसे बढ़ाती हैं. ‘स्वास्थ्य मंत्रालय’ के ‘राष्ट्रीय मच्छर जनित बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम’ (एनवीबीडीसीपी) राष्ट्र में प्रतिवर्ष क़रीब 15 लाख मलेरिया के रोगियों की संख्या दर्ज करता है. इनमें से 50 फीसदी मलेरिया प्लाज्‍मोडियम फैल्सीपरम मच्छर के काटने से फैलता है. ‘एनवीबीडीसीपी’ द्वारा जारी पिछले 10 साल के आकंड़ों पर यदि गौर करें तो मलेरिया से राष्ट्र में साल 2001 में 1005, 2002 में 973, 2003 में 1006, 2004 में 949, 2005 में 963, 2006 में 1707, 2007 में 1311, 2008 में 1055, 2009 में 1144 और 2010 में 767 लोगों की जान गई.

राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम

स्वतंत्रता के बाद मलेरिया पर रोकथाम के लिए ‘भारत सरकार’ ने साल 1953 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम’ (एनएमसीपी) चलाने के साथ ही डीडीटी का छिड़काव प्रारम्भ किया था, जबकि ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के निवेदन पर साल 1958 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम’ (एनएमईपी) और आगे चलकर ‘मोडिफ़ाइड प्लान ऑफ़ ऑपरेशन’ (एमपीओ) नाम से नयी योजना प्रारम्भ की गई.

भारत गवर्नमेंट के प्रयत्न

हाल के सालों में उड़ीसा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ से मलेरिया के मामलों में तेज़ीसे वृद्धि हुई है. इनके अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी इस महामारी का खतरा बना हुआ है. पिछले दशकों में शहरी इलाकों में भी मलेरिया के मुद्दे तेज़ीसे सामने आए हैं. मलेरिया के कारगर रोकथाम और उपचार तक पहुंच के सीमित साधन होने की वजह से जनजातीय लोगों और ग़रीबों में इस रोग का खतरा अधिक बना रहता है. गवर्नमेंट ने एमपीओ कार्यक्रम के अनुसार मलेरिया फैलने की पूर्व सूचना, प्रारम्भ में ही इस रोग की पहचान और त्वरित कार्रवाई के लिए कदम उठाने की प्रबंध की है. पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को सौ फीसदी सहायता देने का भरोसा और लोगों को सतर्क करने के लिए देशभर में ‘मलेरिया विरोधी महीना’ की आरंभ की गई है. इसके अतिरिक्त राष्ट्र के सात राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में मलेरिया पर नियंत्रण के लिए गवर्नमेंट ने विश्व बैंक की सहायता से सितम्बर, 1997 से ‘परिष्कृत मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम’ की आरंभ की है.[3]

मलेरिया का वाहक, मच्छर

  • मलेरिया के मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव और जैव पर्यावरण तरीकों को अपनाने पर बल दिया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के कुल 53,544 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर 53,500 पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने का फैसला लिया है. पूर्वोत्तर राज्यों में ख़ासकर मेघालय के शिलांग में कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को मलेरिया के प्रति सतर्क करने के लिए उनके बीच कॉमिक पुस्तकों का वितरण किया गया है.
  • उल्लेखनीय तथ्य
  • ’25 अप्रैल’ ‘विश्व मलेरिया दिवस’ का दिन है, जब मलेरिया को जड़ से मिटाने के लिए कारगार कदम उठाने के भरसक प्रयासों को हरी झंडी दी गई थी. साथ ही जनता को मलेरिया के प्रति सतर्क करने और इस बीमारी पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की पहल की गई थी.
  • मलेरिया पूरे विश्व में महामारी का रूप धारण कर चुका है. ख़ासकर विकासशील राष्ट्रों में मलेरिया कई रोगियों के लिए मृत्यु का पैगाम बनकर सामने आया है. मच्छरों के कारण फैलने वाली इस रोग में हर वर्ष कई लाख लोग जान गवाँ देते हैं. ‘प्रोटोजुअन प्लाज्‍मोडियम’ नामक कीटाणु मादा एनोफिलीज मच्छर के माध्यम से फैलते है. ये मच्छर एक संक्रमित आदमी से दूसरे तक कीटाणु फैलाने का काम भी करते है.
  • यूनिसेफ़ का मलेरिया को लेकर बोलना है कि अफ़्रीका के कुछ राष्ट्रों सहित अन्य राष्ट्रों में मच्छर के कारण हो रही मौतों को रोकने के और अधिक तरीका करने होंगे. इसके अतिरिक्त ग्रामीण एवं ग़रीब लोगों वाले ऐसे क्षेत्रों तक अधिक पहुँच बढ़ानी होगी, जहाँ मलेरिया एक बड़े खतरे का रूप ले चुका है. यूनिसेफ़ के मुताबिक़ मलेरिया को सरलता से मात दी जा सकती हैं, बस आवश्यकता है विश्व को मलेरिया के ख़िलाफ़ एकजुट होने की.
  • मलेरिया एक अंतरराष्ट्रीय जन-स्वास्थ्य परेशानी है. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का बोलना है कि हर वर्ष मलेरिया के कारण विश्व में हो रही मौतों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए ’25 अप्रैल’ को ‘विश्व मलेरिया दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है.
  • गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) इस दिन को ‘अफ़्रीका मलेरिया दिवस’ के तौर पर मनाता था, लेकिन दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी जागरूकता लाने के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन का रूप दिया गया.
  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में हर साल क़रीब 50 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं; जिनमें क़रीब 27 लाख बीमार जीवित नहीं बच पाते, जिनमें से आधे पाँच वर्ष से कम के बच्चे होते हैं.
  • मच्छर मलेरिया के रोगाणु का सिर्फ़ वाहक है. रोगाणु मच्छर के शरीर में एक परजीवी की तरह फैलता है और मच्छर के काटने पर उसकी लार के साथ मनुष्य के शरीर में पहुँचता है. रोगाणु सिर्फ़ एक कोषीय होता है, जिसे ‘प्लास्मोडियम’ बोला जाता है.
  • रोगाणु की क़िस्म के मुताबिक मलेरिया के तीन मुख्य प्रकार हैं- ‘मलेरिया टर्शियाना’, ‘क्वार्टाना’ और ‘ट्रोपिका’. इनमें सबसे ख़तरनाक है- ‘मलेरिया ट्रोपिका’, जो ‘पीफ़ाल्सिपेरम’ नामक रोगाणु से फैलता है और हिंदुस्तान में भी चारों और फैला हुआ है.
  • मलेरिया का संक्रमण होने और रोग फैलने में रोगाणु की प्रजाति के आधार पर 7 से 40 दिन तक लग सकते हैं. मलेरिया के शुरूआती दौर में सर्दी-जुकाम या पेट की गड़बड़ी जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं, इसके कुछ समय बाद सिर, शरीर और जोड़ों में दर्द, ठंड लग कर बुख़ार आना, नब्ज़ तेज़ हो जाना, उबकाई, उल्टी या पतले दस्त होना इत्यादि होने लगता है. लेकिन जब बुखार अचानक से बढ़ कर 3-4 घंटे रहता है और अचानक उतर जाता है, इसे मलेरिया की सबसे घातक स्थिति माना जाता है.

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