स्वास्थ्य

बांझपन से जूझ रहा हर छठा कपल: शरीर में बढ़ा निगेटिव हॉर्मोन घटा देता है प्रेग्नेंसी दर

भारत में हर छठा कपल बच्चे की चाहत में दर-दर भटकने को विवश है. ‘इंडियन सोसायटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन’ की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्र में 2.75 करोड़ कपल बांझपन से जूझ रहे हैं. यही वजह है कि राष्ट्र में ‘बेबीमेकर्स’ यानी आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) का कारोबार तेजी से बढ़ा है.

देशभर में ढाई हजार से अधिक प्रजनन क्लिनिक खुल चुके हैं. अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे अधिक आईवीएफ ट्रीटमेंट हिंदुस्तान में लिया जा रहा है, लेकिन उपचार के बावजूद 40 से 50 प्रतिशत स्त्रियों को ही IVF के जरिए गर्भ ठहरता है.

आखिर स्त्रियों में कंसेप्शन दर क्यों घट रहा है, IVF प्रक्रिया भी क्यों फेल हो जाती और प्रजनन क्षमता क्यों कम होती जा रही है, जानिए ऐसे ही और कई प्रश्नों के जवाब…

सेहत बिगाड़ने वाली आदतों से प्रेग्नेंसी मुश्किल
NCBI पर उपस्थित एक रिपोर्ट के अनुसार नेचुरल ढंग से गर्भधारण करने की प्रयास करने वाले कपल्स पर 1 वर्ष तक रिसर्च की गई. जिसमें हेल्दी लाइफस्टाइल जीने वाले 83 प्रतिशत कपल एक वर्ष के अंदर गर्भधारण में सफल रहे.

वहीं, जिन कपल में लाइफस्टाइल बिगाड़ने वाली केवल एक बुरी आदत भी उपस्थित थी, उनमें 71% महिलाएं ही प्रेग्नेंट हुईं. स्वास्थ्य बिगाड़ने वाली 4 बुरी आदतों की शिकार स्त्रियों में केवल 38 प्रतिशत ही प्रेग्नेंसी को लेकर सफल रहीं. नशा, जंक फूड, मोटापा, बीमारियां और उम्र बढ़ने के साथ प्रेग्नेंसी कठिन हो जाती है.

ये 8 बुरी आदतें बच्चे को जन्म देने की क्षमता छीन लेती हैं…
1. स्मोकिंग:
तंबाकू में पाए जाने वाले कैडमियम और कोटिनिन जैसे जहरीले तत्व डीएनए डैमेज करते हैं, जिससे प्रजनन घटती है. स्मोकिंग करने वाली स्त्रियों का एग प्रोडक्शन घट जाता है, उनके एग में ‘जोना पेलूसिडा’ नाम की दीवार मोटी हो जाती है, जिससे स्पर्म उसके अंदर नहीं जा पाता. इन स्त्रियों का मेनोपॉज भी 3 से 4 वर्ष पहले हो जाता है.

2. एल्कोहल: ड्रिंक करने की आदत स्त्रियों के लिवर, दिल और नवर्स सिस्टम के साथ ही प्रजनन क्षमता घटाती है. इस आदत से शरीर में विटामिन बी, जिंक, आयरन, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व कम हो जाते हैं, जो प्रेग्नेंसी के लिए महत्वपूर्ण हैं. इन स्त्रियों के लिए प्रेग्नेंसी 3 गुना कठिन हो जाता है. यदि वे प्रेग्नेंट हो भी जाएं तो अबॉर्शन का रिस्क 2.21 गुना बढ़ जाता है.

3. रिस्की सेक्शुअल बिहेवियर: नशे की लत सेक्शुअल बिहेवियर को भी बिगड़ सकती है. एक से अधिक पार्टनर के साथ असुरक्षित संबंध बनने के मौके बढ़ जाते हैं. जिससे क्लैमाइडिया और एड्स जैसी बीमारियां हो सकती हैं. असुरक्षित संबंध बनाने से फैलने वाली इन रोंगों से इनफर्टिलिटी को बढ़ावा मिलता है.

4. गर्भनिरोधक: असुरक्षित संबंध बनाने के बाद गर्भधारण से बचने के लिए लड़कियां गर्भनिरोधक दवाएं यूज करती हैं. आमतौर पर गर्भनिरोधक गोलियां सेफ होती हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी से बचने के लिए इंजेक्शन के जरिए ली जाने वाली दवा से स्त्रियों की प्रेग्नेंट होने में एक वर्ष तक का समय लग सकता है.

5. चाय-कॉफी की लत: 2 कप से अधिक चाय, कॉफी पीना, रोज एनर्जी ड्रिंक्स लेना प्रेग्नेंसी के आड़े आता है. यदि प्रेग्नेंसी ठहर भी जाए, तो इस दौरान बॉडी में कैफीन की मात्रा अधिक होने से मिसकैरेज और स्टिलबर्थ का खतरा होता है.

6. मोटापा: बॉडी वेट बढ़ने से हॉर्मोनल इम्बैलेंस होता है. आईवीएफ के दौरान अधिक दवाएं खानी पड़ती हैं. अधिक बॉडी वेट से मिसकैरेज के खतरे बढ़ जाते हैं. इसलिए मां बनने के लिए BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स 30 से अधिक नहीं होना चाहिए.

7. खानपान: हेल्दी डाइट से स्त्री शीघ्र कंसीव करती है. फल, हरी सब्जियां और एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाना तन और मन दोनों को स्वस्थ रखता है. जबकि, जंक फूड स्पर्म और एग दोनों को हानि पहुंचाता है.

8. एक्सरसाइज: लाइफस्टाइल खराब हो और एक्सरसाइज भी न की जाए तो रिप्रोडक्शन सिस्टम तेजी से बिगड़ने लगता है. जबकि, योग, ध्यान और एक्सरसाइज से इसमें सुधार आता है, स्वास्थ्य अच्छी रहती है. जिससे कंसीव करने में सहायता मिलती है.

इन वजहों के अतिरिक्त विवाह और मां बनने में देरी का निर्णय भी मुश्किलें बढ़ा देता है…

20 से 25 की उम्र में प्रजनन क्षमता सबसे ज्यादा, 35 की उम्र तक एग में 200 गुना कमी
बिड़ला प्रजनन एंड आईवीएफ सेंटर में कन्सल्टेंट डाक्टर मीनू वशिष्ठ आहूजा के अनुसार जन्म के समय नवजात बच्ची में 40 से 50 लाख एग्स होते हैं. वह अपनी पूरी लाइफ में 400-500 बार एग रिलीज कर पाती है. बाकी एग्स बॉडी के अंदर ही समाप्त हो जाते हैं. कभी-कभी 35 की उम्र तक स्त्रियों के पास करीब 25 हजार एग्स ही बचते हैं.

मुंबई स्थित नानावटी मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में सीनियर कन्सल्टेंट डाक्टर सुरुचि देसाई कहती हैं कि 20 से 25 वर्ष की उम्र में स्त्रियों की प्रजनन क्षमता सबसे अधिक होती है. लेकिन, 25 से 30 वर्ष की उम्र तक कंसीव कर लेना बेहतर है. उम्र बढ़ने के साथ शरीर कमजोर होने लगता है. स्पर्म और एग्स की संख्या और क्वालिटी में कमी आने लगती है. रोंगों और मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है.

खराब मेंटल हेल्थ और समस्याओं के बुरे चक्र से बढ़ती परेशानी
साइकोलॉजिस्ट डाक्टर अमिता पुरी बताती हैं कि लड़के-लड़कियों पर पहले से करियर का प्रेशर रहता है. इसी बीच परिवार भी विवाह का दबाव बनाता है. विवाह के बाद जब तक वे एक-दूसरे को समझते हैं, उनके ऊपर परिवार बढ़ाकर सेटल होने का दबाव भी बढ़ जाता है.

ऐसी अफरा-तफरी में बार-बार प्रयास के बाद भी प्रेग्नेंसी नहीं ठहरती. तब स्त्रियों को स्ट्रेस, एंग्जाइटी, डिप्रेशन, इरिटेशन, एग्रेशन और फ्रस्ट्रेशन सभी एक साथ होने लगता है. प्रेग्नेंसी प्लान को लेकर स्ट्रेस इतना बढ़ जाता है जो स्त्री की स्वास्थ्य पर नेगेटिव असर डालता है.

शरीर में बढ़ा निगेटिव हॉर्मोन घटा देता है प्रेग्नेंसी रेट
इंडियन प्रजनन सोसायटी की रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि इन मानसिक समस्याओं की वजह से कंसीव करने की क्षमता कम होती है. दरअसल, स्ट्रेस के दौरान शरीर में डोपामाइन, सेरोटोनिन, एंडोर्फिन और ऑक्सीटोसिन जैसे हैप्पी हॉर्मोन रिलीज होने बंद हो जाते हैं और निगेटिव हॉर्मोन ‘कॉर्टिसोल’ का लेवल बढ़ता है. जिन स्त्रियों के बालों के सैंपल में कॉर्टिसोल का स्तर अधिक मिला, उनका प्रेग्नेंसी दर उतना ही कम पाया गया.

बच्चा न होने पर स्त्रियों को आते हैं खुदकुशी के ख्याल
बांझपन से जूझने वाली अधिकांश महिलाएं भीतर ही भीतर घुटती हैं और बाहर झूठी मुस्कान ओढ़े रहती हैं. NCBI पर उपस्थित रिपोर्ट्स बताती हैं कि मां न बन पाने वाली स्त्रियों में डिप्रेशन लेवल कैंसर रोगियों के बराबर पहुंच जाता है.

मां-बाप न बन पाने से 32 प्रतिशत पुरुष और 56 प्रतिशत महिलाएं डिप्रेशन की चपेट में आ जाती हैं. 61 प्रतिशत पुरुष और 76 प्रतिशत महिलाएं एंग्जायटी का शिकार हो जाती हैं. करीब 10 प्रतिशत महिलाएं खुदकुशी करने के बारे में भी सोचने लगती हैं.

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