स्वास्थ्य

बिना तकिया के सोने के फायदे जानिए

इंसान की जो रचना उस रचयिता ने बनाई हैं उसमें हमारी रीढ़ की हड्डी जिस तरह से बनी है उसमें उसने शरीर के आकार के मुताबिक सीधापन रखा हैं . इस अनेक छोटे छोटे टुकड़ों के जोड़ों के बीच में से हमारी संवेदी सूचनाएं शरीर में सरलता से प्रवाहित होती हैं .

यह हड्डी की विशेष संरचना हमारी सीट से लेकर हमारी दिमाग प्रणाली तक जुड़ी होती हैं . इसकी रचना इंसानी शरीर की जरूरतों मुताबिक ही होती हैं . जो सूचनाओं को एक सीधे मार्ग से पहुँचा सकें.

जब हम सिर के नीचे तकिया लेना प्रारम्भ कर देतें हैं तब इस रचना में काफी परिवर्तन आने लगता हैं . और यह परिवर्तन तब अधिक रहता हैं जब शरीर को उसका सारा तनाव दूर करने की सबसे अधिक जरूरत हों . अर्थात जब हम रात में सो रहें होते हैं तब शरीर सबसे शिथिल हालत में होता हैं. दिन भर हम पैरों के ऊपर खड़े हालत में अधिक होते हैं जिसमें बैठे रहना भी शामिल हैं .

इस हालत में हमारे शरीर के सारे अवयवों का तनाव पैरों की ओर होता हैं . और जब सोतें हैं तब वह तनाव से मुक्त हो कर अपनी ठीक हालत को प्राप्त कर रहें होते हैं , जिससे हमारे थकान का सारा भार रीढ़ की हड्डियों पर आता है , जिससे वह सभी सूचनाएं ठीक ढंग से फैला सकें . जब हमारी गर्दन तकिए पर आ जाती हैं तब गर्दन से दिमाग तक कि इन नस नाड़ियों को पीठ की सीध न प्राप्त होते हुए ऊंचाई मिलती हैं जिससे उसका तनाव हल्का होने में कठिनाई होने लगती हैं .

जब यह तनाव बढ़ता जाता है तब हमें सर्वाइकल की परेशानी होनी प्रारम्भ होती है . इतना हीं नहीं बल्कि सिर में ठीक तरह से रक्त का आवागमन भी बाधित होने लगता है जिससे सिर दर्द, आंखे कमजोर हो जाना, सो कर जागते ही सिर भनभनाना, कुछ सेकंड के लिए चक्कर आना, सिर भारी रहना, शीघ्र से कोई बात न समझ आना, सूझबूझ में कमी आदि की परेशानी से भी रूबरू होना पड़ सकता हैं .

इतना ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक शास्त्र के मुताबिक जब हम सो रहे होते हैं तब हमारे दिमाग में अल्फा, बीटा, और गामा तरंग बनते हैं इन तरंगों में इंसानी बुध्दि ही नहीं बल्कि इंसानी आध्यात्मिक मानसिक शक्ति की उन्नति होती है . इन्ही तरंगों से हमारी एकाग्रता शक्ति भी बढ़ती है . इन तरंगों के चलते समय हम प्रकृति से उस अकाट्य अद्भुत शक्ति को समझने और पाने की भी प्रयास कर सकते है .

यह सारी अतीन्द्रीय सूचनाएं हमें मूलाधार स्थित कुंडलीनी शक्ति से प्राप्त होती हैं जो उस समय मूलाधार से उन चमत्कारी सूचनाओं को सहस्त्रार में अर्थात दिमाग में पहुंचाता हैं .

अब ऐसे में यदि हम सिर के नीचे तकिया लेते हैं तो हम इस स्वर्णिम लाभ से भी वंचित हो जाते हैं.

जब चिकित्सक कोई आपरेशन करता है फिर वह कोई भी हो तब जिसका आपरेशन हुआ होता है उसे तकिया न लेने देते हैं क्योंकि उससे रोगी को सिर दर्द की जीवन भर परेशानी होने लगती है ऐसा उनका मानना हैं .

तो बात साफ हैं इन सारी परेशानी की जड़ तकिया लगा लेना ही है तो उन सारे लाभों को पाने का तरीका भी तकिया न लेना ही है.

डा पीयूष त्रिवेदी आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी राजस्थान विधान सभा जयपुर.  

 

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