स्वास्थ्य

भारत में लिवर रोगों का खतरा और इसके कारण मौत के मामले बढ़ते जा रहे साल-दर साल

लिवर की बीमारियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य के लिए बड़ा बोझ रही हैं. पिछले एक दशक के आंकड़े उठाकर देखें तो पता चलता है कि भारत में भी लिवर रोगों का खतरा और इसके कारण मृत्यु के मुद्दे साल-दर वर्ष बढ़ते जा रहे हैं. लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी के कारण कम उम्र के लोग भी लिवर रोगों के शिकार हो रहे हैं, जिससे न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव बढ़ रहा है साथ ही लिवर रोगों से होने वाले मृत्यु के मामलों में भी बढ़ोत्तरी देखा जा रहा है.

लिवर की बढ़ती समस्याओं को लेकर लोगों को सतर्क करने और युवाओं को इस बीमारी के जोखिमों से बचाने को लेकर शिक्षित करने के उद्देश्य से हर वर्ष 19 अप्रैल को वर्ल्ड लिवर डे मनाया जाता है.

स्वास्थ्य जानकार बताते हैं, लिवर सिरोसिस, लिवर फेलियर और कैंसर जैसी समस्याएं बड़े खतरे के रूप में उभरती हुई देखी जा रही हैं. वर्ष 2017 में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, हिंदुस्तान में लिवर बीमारी (सिरोसिस) से होने वाली मौतें 2.60 लाख से अधिक हो गई हैं जो कुल मौतों का करीब तीन फीसदी हैं. इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिरोसिस से होने वाली मौतों के लिए हिंदुस्तान पांचवां (18.3%) हिस्सा है.

लिवर की बीमारियां हो सकती हैं जानलेवा

अमर उजाला से वार्ता में पुणे स्थित लिवर बीमारी जानकार चिकित्सक नरोत्तम सिंह बताते हैं, अब हम कम उम्र के लोगों में भी लिवर की बढ़ती समस्याएं देखे रहे हैं. फैटी लिवर जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं. इसके अतिरिक्त आहार और लाइफस्टाइल की समस्याएं भी लिवर से संबंधित रोंगों का कारण बनती जा रही हैं.

ज्यादातर मामलों में देखा जा रहा है कि लिवर की दिक्कतों और इसके लक्षणों पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है जो गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती हैं. लिवर की कई रोंगों को जानलेवा भी माना जाता है इसलिए महत्वपूर्ण है कि समय रहते इसके लक्षणों की पहचान कर उपचार प्राप्त किया जाए.

लिवर सिरोसिस के बढ़ रहे हैं मामले

लिवर सिरोसिस की परेशानी का मतलब लिवर में स्थाई रूप से घाव हो जाना है, जो न केवल लिवर के सामान्य कामकाज को प्रभावित कर देती है साथ ही यदि इसका समय रहते इलाज न किया जाए तो इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. लिवर फेलियर के लिए इसे बड़े कारण के रूप में देखा जाता है. आमतौर पर शराब-नशीली दवाओं, वायरस के संक्रमण और मेटाबॉलिक समस्याओं के कारण लिवर में सिरोसिस की परेशानी हो सकती है.

अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि हेपेटाइटिस बी और सी के संक्रमण वाले लोगों में लिवर सिरोसिस की परेशानी विकसित होने का खतरा अधिक देखा जाता रहा है.

लिवर में संक्रमण की समस्याएं 

लिवर की जानलेवा समस्याओं में लिवर संक्रमण भी एक बड़ा कारक रहा है. वायरल हेपेटाइटिस जैसे संक्रमण के कारण लिवर में सूजन हो जाती है. इस तरह की स्थितियों में लिवर का सामान्य कार्य प्रभावित हो जाता है, जिसके जानलेवा दुष्प्रभाव हो सकते हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वर्ष 2022 में हेपेटाइटिस-बी संक्रमण के कारण पूरे विश्व में अनुमानित 1.1 मिलियन (11 लाख) से अधिक मौतें हुईं, जिनमें से ज्यादातर सिरोसिस और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (प्राथमिक लिवर कैंसर) से संबंधित थीं.

फैटी लिवर का बढ़ता जोखिम

आंकड़े बताते हैं, हिंदुस्तान सहित कई विकसित और विकासशील राष्ट्रों में फैटी लिवर की परेशानी भी बढ़ती जा रही है. ये रोग उन लोगों में भी देखी जा रही है जो शराब नहीं पीते हैं. इसे नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर (एनएएफएलडी) बोला जाता है. डॉक्टर्स का बोलना है, लिवर में फैट बनने की परेशानी का उपचार संभव है पर कुछ स्थितियों में इसके कारण लिवर का सामान्य कामकाज बाधित हो सकता है. फैटी लिवर की यदि उपचार न किया जाए तो इसके कारण गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का भी खतरा देखा जाता रहा है.

 

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