स्वास्थ्य

3 महीने में 50% मरीज T-सेल थेरेपी से हुए ठीक

जब कैंसर के उपचार की बात आती है तब तीन चीजें कॉमन होती हैं सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन. नयी रिसर्च, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की वजह से कैंसर के उपचार में चौथा नाम जुड़ा टारगेटेड थेरपी का.

इस थेरेपी में ऐसी दवाइयां दी जाती हैं जो शरीर में प्रवेश कर कैंसर कोशिकाओं को खोज कर मार डालती हैं. पूरे विश्व में कैंसर की इन दवाइयों को प्रिस्क्राइब किया जाता है.

कई तरह के कैंसर के उपचार में टारगेटेड थेरेपी को स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट माना जाता है. हालांकि टारगेटेड थेरेपी से आगे कैंसर के उपचार में इम्युनोथेरेपी अधिक कारगर बना.

इम्युनोथेरेपी यानी ऐसा ट्रीटमेंट जिसमें दवाइयों के जरिए रोगी के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाया जाता है. इम्यून सिस्टम ही ट्यूमर को समाप्त कर देता है.

इम्युनोथेरेपी की दवाओं को ‘इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर्स’ बोला जाता है और कई तरह के कैंसर मेलानोमा, फेफड़े का कैंसर, किडनी, ब्लाडर का कैंसर और लिंफोमा ठीक करने के लिए किया जाता है.

कैंसर के उपचार में एक और थेरेपी जुड़ गई है CAR टी-सेल थेरेपी. एक ऐसी थेरेपी जिसमें एडवांस्ड स्टेज के कैंसर ल्यूकीमिया और लिंफोमा को पूरी तरह समाप्त करने की क्षमता है.

3 महीने में 50% रोगी T-सेल थेरेपी से ठीक हुए

अमेरिका में 6 CAR टी-सेल थेरेपी को फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एप्रूव किया है. ये सभी टी-सेल थेरेपी लिंफोमा, ल्यूकीमिया और मल्टीपल माइलोमा जैसे ब्लड कैंसर के उपचार में काम करती है.

भारत में भी इस कैंसर थेरेपी को विकसित किया गया है जिसे NEXCAR 19 थेरेपी कहते हैं. इस थेरेपी को IIT बॉम्बे और मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (TMH) के जानकारों ने तैयार किया.

अब तक राष्ट्र के 45 अस्पतालों के 98 रोगियों को NEXCAR 19 थेरेपी दी गई है. खास बात यह है कि 3 महीनों के अंदर ही आधे रोगी ठीक हो गए.

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के ओंकोलॉजिस्ट डाक्टर हंसमुख जैन के अनुसार, कैंसर के 30% रोगी ऐसे होते हैं जिन पर किसी उपचार का असर नहीं पड़ता. उन पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट और कीमोथेरेपी का कोई असर नहीं होता.

जबकि 60 -70% रोगियों पर CAR T सेल थेरेपी का पॉजिटिव असर पड़ता है.

लैब में टी सेल को मॉडिफाई किया जाता है

जब हम CAR T-सेल कहते हैं तो CAR का मतलब है ‘सिमरिक एंटीजन रिसेप्टर्स’ जब टी-सेल हमारे इम्यून सिस्टम के लिए जवाबदेह होते हैं. ये टी-सेल्स शरीर में एब्नॉर्मल या इन्फेक्शन फैलाने वाले सेल्स को मारते हैं.

नोएडा स्थित सेंटर फोर हेल्थ इनोवेशन एंड पॉलिसी (CHIP) के फाउंडर डाक्टर रवि मेहरोत्रा कहते हैं कि हर रोगी के लिए CAR टी सेल थेरेपी को कस्टमाइज किया जाता है.

मरीज के शरीर से टी सेल्स लिए जाते हैं और इन्हें लैब में मॉडिफाई किया जाता है. इन्हें इस तरह बनाया जाता है कि अपने सर्फेस पर प्रोटीन बना सकें जिसे ‘सिमरिक एंटीजन रिसेप्टर्स’ कहते हैं.

लैब में तैयार होते लाखों मॉलिक्यूल्स

ये रिसेप्टर्स यानी प्रोटीन मॉलिक्यूल्स जेनेटिकली मोडिफाइड होते हैं. लैब में ये टी सेल्स लाखों की संख्या में तैयार किए जाते हैं.

जब शरीर में वापस ये टी-सेल्स डाले जाते हैं तो वहां भी इनकी संख्या बढ़ती रहती है. ये CAR टी सेल्स कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें समाप्त कर देते हैं.

 

भारत में इस थेरेपी की आरंभ ImmunoACT ने की जो कि एक स्टार्टअप है. इसे आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर राहुल पुरवार ने प्रारम्भ किया.

राहुल पुरवार और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टरों को ही NEXCAR 19 थेरेपी विकसित करने का क्रेडिट जाता है. हिंदुस्तान में कैंसर के किसी भी उपचार पर लाखों रुपए खर्च होते हैं. कीमोथेरेपी के कई सेशंस में लाखों रुपए लगते हैं.

NEXCAR 19 कैंसर थेरेपी भी महंगी है. अमेरिका में जहां इस थेरेपी से कैंसर के उपचार में तीन से साढ़े तीन करोड़ खर्च होते हैं वहीं हिंदुस्तान में 40-45 लाख रुपए खर्च होते हैं. नवंबर 2023 से ही NEXCAR 19 थेरेपी रोगियों को दी जा रही है.

डॉ रवि मेहरोत्रा कहते हैं कि अमेरिका के मुकाबले CAR T सेल्स थेरेपी पर 10-20% ही खर्च होते हैं. हालांकि इस थेरेपी से सभी तरह के कैंसर का उपचार नहीं किया जा सकता. अभी इस पर काफी रिसर्च किया जाना बाकी है.

यह थेरेपी ट्रेडिशनल किसी भी थेरेपी से अलग है. दूसरी थेरेपी या ट्रीटमेंट में बाहर से मेडिसिन या रेडिएशन दिया जाता है लेकिन CART थेरेपी में शरीर की ही कोशिकाएं होती हैं.

डॉ मेहरोत्रा कहते हैं कि CAR T-सेल थेरेपी का सबसे गंभीर साइड इफेक्ट साइकोकीन रिलीज सिंड्रोम (CRS) है. इसके कई साइड इफेक्ट्स होते हैं. यह थेरेपी रेयर ही जानलेवा होती है.

हालांकि ऐसे रोगी जिनमें कैंसर कोशिकाएं अधिक होती हैं उनमें CAR T-सेल की वजह से गंभीर स्थिति हो सकती है.

CAR T-सेल थेरेपी का असर ब्रेन पर भी पड़ता है. कंफ्यूजन, दौरे पड़ना, जुबान लड़खड़ाना जैसा असर होता है. इस स्थित को ‘इम्यून इफेक्टर सेल एसोसिएटेड न्यूरोटॉक्सिसिटी सिंड्रोम’ ICANS कहते हैं.

CAR T-सेल थेरेपी के साइड इफेक्ट से बचाने के लिए चिकित्सक सपोर्टिव थेरेपी भी देते हैं. रोगी को स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं.

क्या यह थेरेपी हिंदुस्तान में रोगियों के लिए वरदान बन सकती है?

इस प्रश्न पर डाक्टर मेहरोत्रा कहते हैं कि इस थेरेपी का राष्ट्र में भविष्य बेहतर है. हिंदुस्तान में हर वर्ष कैंसर के लाखों मुकदमा आते हैं. 2022 में कैंसर के 14,61,427 मुकदमा आए. चीन और अमेरिका के बाद हिंदुस्तान में दुनिया के सबसे अधिक कैंसर रोगी हैं.

महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स, ओवरी और कोर्पस यूट्रस के कैंसर अधिक हैं जबकि मर्दों में फेफड़े, मुंह और जीफ के कैंसर के मुद्दे सबसे अधिक होते हैं. कैंसर का ट्रेडिशनल उपचारसिर्फ़ खर्चीला है बल्कि भयावह साइड इफेक्टस होते हैं. ऐसे में CAR T सेल थेरेपी कैंसर रोगियों के लिए वरदान बन सकती है.

 

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