गंभीर मानसिक बीमारी के लिए फायदेमंद है यह खास डाइट
लेकिन अब स्टैनफोर्ड मेडिसिन के डॉक्टरों द्वारा की गई एक शुरुआती स्टडी में पाया गया है कि कीटोजेनिक डाइट (Ketogenic Diet) दवाओं के साथ-साथ इन रोंगों से जूझ रहे लोगों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायता कर सकती है। ये रिसर्च “साइकियाट्री रिसर्च” जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं में से एक चिकित्सक शेबानी सेठी का बोलना है कि ये नतीजे काफी उत्साहजनक हैं। इससे मानसिक रोंगों के उपचार के नए रास्ते खुल सकते हैं। शेबानी सेठी ने कहा कि उन्हें सबसे पहले इस डाइट और मानसिक रोग के कनेक्शन का पता तब चला जब वह एक मोटापा क्लिनिक में काम कर रही थीं। वहां उन्होंने एक ऐसे स्किजोफ्रेनिया के रोगी को देखा जिसकी दवाईयों पर भी कोई असर नहीं हो रहा था। लेकिन कीटोजेनिक डाइट (Ketogenic Diet) लेने के बाद उसकी मानसिक परेशानियां कम हो गईं।
इसके बाद उन्होंने इस बारे में और रिसर्च करना प्रारम्भ किया। हालांकि स्किजोफ्रेनिया के उपचार में कीटोजेनिक डाइट (Ketogenic Diet) के इस्तेमाल पर बहुत कम रिसर्च उपस्थित थे। लेकिन मिर्गी के दौरे कम करने में इस डाइट के काफी लाभ बताए गए थे।
शेठी कहती हैं कि मिर्गी के उपचार में कीटोजेनिक डाइट (Ketogenic Diet) दिमाग की कोशिकाओं की उत्तेजना को कम करके काम करती है। इसलिए उन्होंने सोचा कि इस डाइट को मानसिक रोंगों में भी आजमाया जा सकता है।
अपने चार महीने के शुरुआती शोध में डॉ सेठी की टीम ने 21 ऐसे वयस्क रोगियों को शामिल किया गया जिन्हें स्किजोफ्रेनिया या बाइपोलर डिसऑर्डर था, वो एंटी-सायकोटिक दवाएं ले रहे थे और उनका मेटाबॉलिज्म असामान्य था। उदाहरण के तौर पर उनका वजन बढ़ गया था, शरीर में शुगर का लेवल ठीक नहीं था, ट्राइग्लिसराइड्स का लेवल ऊंचा था।
इन रोगियों को एक खास डाइट दी गई जिसमें 10% कैलोरी कार्ब्स से, 30% प्रोटीन से और 60% फैट से आती थी। उन्हें कैलोरी गिनने की आवश्यकता नहीं थी। शेठी ने कहा कि इस डाइट में मुख्य रूप से साबुत, बिना प्रोसेस्ड फूड जैसे प्रोटीन और हरी सब्जियों को शामिल किया गया था, और फैट को कम करने की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने रोगियों को कीटो-फ्रेंडली खाने के ढंग भी बताए। साथ ही उन्हें कीटो कुकबुक और एक हेल्थ कोच की राय भी दी गई।
रिसर्च टीम हर सप्ताह रोगियों के खून में कीटोन लेवल चेक करके उनकी डाइट को फॉलो करने का पता लगाती रही। (कीटोन वो एसिड होते हैं जो शरीर तब बनाता है जब वो एनर्जी के लिए ग्लूकोज की बजाय फैट का इस्तेमाल करता है।) ट्रायल के अंत तक 14 रोगी पूरी तरह से डाइट को फॉलो कर रहे है.