Sarcoidosis: Eyebrow का ट्रीटमेंट बना सकता है फेफड़ों का दुश्मन
माइक्रोब्लेडिंग करवाने के बाद दो स्त्रियों को जानलेवा फेफड़ों की रोग से जूझना पड़ा। यह रोग सिस्टमिक सारकॉइडोसिस है, जो एक ऑटोइम्यून रोग है और इससे फेफड़ों में गांठ बन सकती हैं, जिससे सांस लेना कठिन हो जाता है। स्लोवेनिया के डॉक्टरों द्वारा यह पहला मुद्दा सामने आया है, जहां किसी कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट के बाद रोगियों में यह खतरनाक रोग विकसित हुई है। इस घटना के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉक्टरों ने कॉस्मेटिक क्लीनिकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठाया है और ग्राहकों को संभावित जोखिमों के बारे में बेहतर जानकारी देने की मांग की है।
33 वर्षीय दोनों महिलाएं अपनी आइब्रो में नारंगी-लाल रंग के धब्बे देखने के बाद चिकित्सक के पास गई। पहली स्त्री ने करीब एक वर्ष पहले माइक्रोब्लेडिंग करवाई थी। माइक्रोब्लेडिंग एक टैटू तकनीक है जिससे आइब्रो घनी दिखाई देती हैं। यह एक सेमी-परमानेंट प्रक्रिया है। वहीं, दूसरी स्त्री ने छह वर्ष पहले माइक्रोब्लेडिंग करवाई थी, लेकिन ये धब्बे छह वर्ष बाद ही दिखाई दिए। छह बायोप्सी के बाद, यह पाया गया कि दोनों महिलाएं सारकॉइडोसिस से पीड़ित थीं। सीने के एक्स-रे और स्कैन से भी उनके फेफड़ों और लिम्फ नोड्स में इस रोग की पुष्टि हुई।
सारकॉइडोसिस क्या है?
सारकॉइडोसिस एक ऐसी रोग है जो शरीर के विभिन्न अंगों में ग्रेन्युलोमा (सूजन वाले टिशू के पैच) का निर्माण करती है। कुछ मामलों में, यह सिर्फ़ स्किन तक सीमित रहता है और इसे कटनीस सारकॉइडोसिस के रूप में जाना जाता है। ज्यादातर मामलों में, यह लिम्फ नोड्स और फेफड़ों तक फैल सकता है और इसे सिस्टमिक सारकॉइडोसिस के रूप में जाना जाता है। यह रोग दिल, दिमाग और किडनी को भी प्रभावित कर सकती है और खतरनाक हो सकती है। हालांकि इसके कारण अज्ञात हैं, जानकारों का बोलना है कि कीटनाशक, जलन पैदा करने वाले पदार्थ और फंगस इसे ट्रिगर कर सकते हैं।
क्या कहते हैं शोधकर्ता?
शोधकर्ताओं का बोलना है कि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि ज्यादातर लोग जेनेटिक रूप से इस रोग के प्रति सेंसिटिव हो सकते हैं। जब ऐसा होता है, तो इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है और स्वयं पर ही धावा करना प्रारम्भ कर देती है। हालांकि इसका कोई उपचार नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को दवाओं से कंट्रोल किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने जर्नल ऑफ मेडिकल मुकदमा रिपोर्ट में इसी के बारे में लिखा और चेतावनी दी कि दोनों मामलों में माइक्रोब्लेडिंग ही इस रोग का कारण हो सकता है। डॉक्टरों का यह भी बोलना है कि उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही भी इस रोग को ट्रिगर कर सकती है।
इलाज के बारे में शोधकर्ताओं का बोलना है कि पहली स्त्री को पहले दो वर्षों में स्टेरॉयड दिए गए। इस अवधि में, उसकी स्किन के घाव साफ हो गए और फेफड़ों की सूजन कम हो गई। दूसरी स्त्री का भी स्टेरॉयड से उपचार किया गया और इलाज के पहले वर्ष में उसे भी काफी हद तक आराम मिला।
सारकॉइडोसिस के लक्षण
– स्किन के चकत्ते
– खांसी
– लाल, भयावह आंखें
– सांस फूलना
– हाथ, पैर और चेहरे में सुन्नता
– सूजन ग्रंथियां
– हड्डियों और मसल्स में दर्द
– डॉक्टरों का बोलना है कि रोगियों को सुस्ती महसूस होने की आसार है और बुखार और रात को पसीना आने के कारण उनका वजन भी कम हो सकता है।