अंतर्राष्ट्रीय

भारत के थार रेगिस्तान में भारी बदवाल

जलवायु बदलाव का असर किस कदर हमारे ग्रह को प्रभावित कर रहा है इसका उदाहरण एक नए शोध में सामने आया है. मौसम में हो रहे परिवर्तन साफ नजर आ रहे हैं और इसका ताजा उदाहरण हाल ही में रेगिस्तानी शहर दुबई में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ है. जलवायु बदलाव की वजह से हो रहे परिवर्तन आगे भी देखने को मिलेंग. इन परिवर्तनों का असर इतना व्यापक होगा कि हिंदुस्तान के थार रेगिस्तान में भारी बदवाल देखने को मिल सकता है.  थार मरुस्थल सदी के अंत तक हरा-भरा क्षेत्र बन सकता है. एक शोध में यह बात सामने आई है. शोध में शामिल शोधकर्मियों के मुताबिक तापमान बढ़ने के साथ ही पूरे विश्व के कई रेगिस्तानों का और विस्तार होने का अनुमान है वहीं थार रेगिस्तान में इससे उलट रुख देखने को मिल सकता है और यहां हरियाली नजर आएगी.

बारिश में वृद्धि का अनुमान 

अर्थ फ्यूचर जर्नल में प्रकाशित हुए अध्ययन के मुताबिक, सहारा रेगिस्तान का आकार 2050 तक 6,000 वर्ग किलोमीटर बढ़ सकता है. वहीं, थार रेगिस्तान में औसत वर्षा में 1901 और 2015 के बीच 10-50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ग्रीनहाउस गैस के असर को देखते हुए आने वाले सालों में यहां बारिश में 50 से 200 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है. साथ ही शोध इस धारणा की पुष्टि भी करता है कि भारतीय मानसून के पूर्व की ओर खिसकने से पश्चिम और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सूखा पड़ा और धीरे-धीरे यह क्षेत्र रेगिस्तान में बदल गए, जबकि हजारों साल पूर्व यहां क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता उपस्थित थी और तब यहां भरपूर मानसूनी बारिश होती थी.

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चिंता का विषय

शोधकर्ताओं का दावा है कि यदि भारतीय मानसून के पश्चिम की ओर लौटने की प्रवृत्ति जारी रही, तो पूरा थार रेगिस्तान आर्द्र मानसूनी जलवायु क्षेत्र में बदल जाएगा. हिंदुस्तान के लिए यह निश्चित रूप से राहत की बात होगी, क्योंकि इससे राष्ट्र की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा. वर्षा में बढ़ोतरी से खाद्य उत्पादकता में पर्याप्त सुधार की आशा है, जो क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है. हालांकि, यह अंतरराष्ट्रीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चिंता का विषय भी है. क्योंकि थार रेगिस्तान के हरे-भरे क्षेत्र में बदलने से पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन पर व्यापक असर हो सकते हैं.

धूल के स्तर में कमी

अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर माइकल बी मैकलेराय के मुताबिक नवीनतम निष्कर्षों से पता चलता है कि मानव गतिविधियों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि से धूल के स्तर में कमी आई है. इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का पीछा करते हैं इन क्षेत्रों में हवाएं उसी प्रकार से बहने की आसार है. जैसे वो प्री-वीर्मिंग से पहले चलती थी. यही कारण है कि पूरे विश्व में उत्सर्जन शमन के साथ-साथ शोधकर्ताओं ने धूल के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए क्षेत्रीय सरकारों द्वारा मरुस्थलीकरण विरोधी अभियानों को अपनाने का आह्वान किया है.

 

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