अंतर्राष्ट्रीय

अफगानिस्तान पर अब पाकिस्तान के घरेलू निर्माण पर है तालिबान का शासन

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के लिए सबसे अधिक बदनाम राष्ट्र यानी पाक ने अपनी कार्रवाई की है. हिंदुस्तान के विरुद्ध नहीं, जिसे वो अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता है. बल्कि एक ‘भाईचारे वाले देश’ या कथित तौर पर अपने  ‘अविभाज्य भाई’ अफगानिस्तान के खिलाफ! अफगानिस्तान पर अब पाक के घरेलू निर्माण ‘तालिबान’ का शासन है, जिसे काबुल पर कब्जा करने के लिए इस्लामाबाद द्वारा वंशावली रूप से बीजित, पोषित और मुक्त किया गया था.

अफगान तालिबान का पाक कनेक्शन

अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा आरंभ में क्वेटा में रुके थे और फिर 2001 में पहली तालिबान गवर्नमेंट गिरने के बाद वहीं लौट आए. आंतरिक मामलों के ताकतवर मंत्री, सिराजुद्दीन हक्कानी, पाक के उत्तरी वजीरिस्तान के मिरामशाह में पले-बढ़े, और बाद में खैबर पख्तूनख्वा में दारुल उलूम हक्कानिया मदरसा में पढ़े. वस्तुतः, तीसरे-इन-कमांड और रक्षा मंत्री, मुल्ला याक़ूब ने कराची के मदरसों में शोध किया. पीएम हसन अखुंद भी क्वेटा शूरा का हिस्सा थे. मूल रूप से अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान के नेतृत्व परिषद के लगभग सभी मौजूदा सदस्यों के पास गवर्नमेंट में नेतृत्व की किरदार निभाने से पहले एक मजबूत पाक संबंध और संवारना है, जिसे व्यापक रूप से पाक राज्य की प्रॉक्सी के रूप में देखा जाता है. यह एक आसान धारणा थी. तालिबान को अपने दूसरे आगमन (पहले कार्यकाल 1996-2001 के बाद) में जल्द ही किसी के प्रतिनिधि होने का दिखावा छोड़कर, अपने आप में आना था.

क्या पाक की नीति का विपरीत असर हुआ?

कथित रूप से उदार तालिबान गवर्नमेंट के साथ पाक की ‘रणनीतिक गहराई’ की ऐतिहासिक रूप से कल्पना की गई धारणाएं जल्द ही ध्वस्त हो गईं, और संप्रभु प्राथमिकताओं का अपरिहार्य विवाद प्रारम्भ हो गया. तालिबान ने अपने आंतरिक मामलों में पाकिस्तानियों को बड़ी किरदार देने से इनकार कर दिया. जल्द ही, पाकिस्तानियों की ऐतिहासिक साजिशों से अचेतन रूप से बनी बेचैनी सामने आ गई. तालिबान ने गृह युद्ध के दौरान सामरिक रूप से पाकिस्तानी समर्थन का इस्तेमाल किया था, लेकिन जब उन्होंने आधिकारिक तौर पर सत्ता संभाली तो उन्होंने दूसरी किरदार निभाना स्वीकार नहीं किया. 2021 तक, तालिबान को उस पेटेंट ‘डबल गेम’ का एहसास हो गया था जो पाकिस्तानियों ने नियमित रूप से खेला था (साथ ही इसने ‘रणनीतिक गहराई’ के एजेंडे को बमुश्किल छुपाया था). इसके अलावा, पाक अपनी गंभीर सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए अफगानिस्तान को वित्तीय या भौतिक रूप से समर्थन देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि इस्लामाबाद स्वयं ही आर्थिक सहायता और खैरात पर जीवित है.

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