अंतर्राष्ट्रीय

गेहूं खरीद को लेकर पाकिस्तान के पंजाब में किसानों का विरोध हुआ तेज

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सीएम मरियम नवाज के नेतृत्व वाली गवर्नमेंट के साथ-साथ पीएम शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय गवर्नमेंट को किसानों की एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. गवर्नमेंट की गेहूं खरीद नीति के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन तेज होता जा रहा है जिसे सियासी दलों का भी समर्थन मिल रहा है.

किसान समेत राष्ट्र के कृषि क्षेत्र का अगुवाई करने वाली पार्टी पाक किसान इत्तेहाद (पीकेआई) ने अनाज खरीदने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहने और प्रांतीय खरीद कोटा घटाने के निर्णय को पलटने के लिए गवर्नमेंट की निंदा की है.

इस मामले पर पीकेआई और प्रांतीय एवं संघीय गवर्नमेंट के बीच एक महीने से अधिक समय से विचार चल रहा है. लेकिन बड़ी संख्या में किसानों का गवर्नमेंट विरोधी अभियान प्रारम्भ नहीं हुआ था.

किसानों का बोलना है कि उन्होंने गवर्नमेंट की आवश्यकता पूरी करने के लिए गेहूं की फसल बोई, यह जानते हुए कि उनके तैयार गेहूं के दानों को खरीदा जाएगा.

किसानों का बोलना है कि उनके गेहूं की फसल तैयार है, इसलिए गवर्नमेंट उसे खरीदना नहीं चाहती. बारिश हो जाने से फसल खेतों में सड़ रही है.

दूसरी ओर, पंजाब गवर्नमेंट के पास किसानों की मांगों का कोई उत्तर नहीं है. ऐसा लगता है कि उसने प्रदर्शनकारियों को मुख्य सड़कों और राजमार्गों को अवरुद्ध करने से रोकने के लिए पुलिस और दंगा-रोधी दस्तों की भारी टुकड़ियों को तैनात कर विरोध प्रदर्शन का मुकाबला करने का विकल्प चुना है.

सरकार का बोलना है कि उसके पास पहले से ही कम से कम 23 लाख टन गेहूं का स्टोरेज है, जिससे पता चलता है कि वह इस सीजन में 40 लाख टन गेहूं नहीं खरीद सकती और इसका गुनाह कार्यवाहक गवर्नमेंट पर मढ़ रही है.

पंजाब प्रांत के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “कार्यवाहक गवर्नमेंट ने लगभग 30 लाख टन गेहूं का आयात किया है, जो प्रांत की आवश्यकता से अधिक है. इससे बहुत बड़ा कैरीओवर स्टॉक हो गया और क्षमता बहुत कम रह गई. यही कारण है कि पंजाब गवर्नमेंट ने खरीद लक्ष्य को आधा करने का निर्णय किया.

उन्होंने कहा, “कार्यवाहक गवर्नमेंट ने एक मोबाइल एप्लिकेशन भी पेश किया, जो खाद्य विभाग को गेहूं बेचने के लिए आवेदन करने की एक नयी प्रक्रिया है. यह इस तथ्य को सरलता से नजरअंदाज कर देता है कि ग्रामीण जनसंख्या के अधिकतर किसान को इसके बारे में पता ही नहीं.

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