देश में समलैंगिक विवाह की इजाजत ना देना है असंवैधानिक :जापान हाई कोर्ट
Japan News: जापान के उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए बोला कि राष्ट्र में समलैंगिक शादी की इजाजत ना देना गैरकानूनी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तरी जापान में साप्पोरो उच्च न्यायालय ने गवर्नमेंट को हानि के वादी के दावे को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। साप्पोरो न्यायालय के आदेश से पहले टोक्यो की न्यायालय भी ऐसा ही आदेश सुना चुकी है, जिसके बाद समलैंगिंक शादी को लीगल करने की मांग ने और भी बल पकड़ लिया है।
अलग-अलग मामलों में टोक्यो और साप्पोरो न्यायालय ने आदेश में बोला कि बैन के कारण नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। भले ही न्यायालय ने यह आदेश दिया हो लेकिन फिर भी एक्टिविस्ट्स चाहते हैं कि गवर्नमेंट समलैंगिंक शादी को मान्यता देने के लिए कानून बनाए। मौजूदा जी 7 राष्ट्रों में केवल जापान ही ऐसा राष्ट्र है जो पूरी तरह समलैंगिंक जोड़ों को मान्यता नहीं देता और ना ही उन्हें कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। लेकिन एशिया में केवल ताइवान ही ऐसा है, जहां समलैंगिक शादी को मान्यता मिली हुई है।
हालांकि जापान में कुछ म्युनिसिपालिटी और जनपद ऐसे हैं, जो समलैंगिक सर्टिफिकेट जारी करते हैं, जिनसे ऐसे जोड़ों को लाभ मिलता है लेकिन उनके पास कानूनी मान्यता देने का अधिकार नहीं है। बीते कुछ सालों से जापान के पीएम फुमियो किशिदा गवर्नमेंट पर मुद्दे को लेकर काफी दवाब है क्योंकि जनसमर्थन तेजी से बढ़ा है। पोल दिखाते हैं कि करीब 70 फीसदी लोग समलैंगिक यूनियन्स को सपोर्ट करते हैं।
हालांकि पीएम किशिदा को सुधार लाने के लिए अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। समलैंगिक शादी को लेकर परिवर्तन या योजना का उनकी गवर्नमेंट की ओर से कोई घोषणा नहीं हुआ है। लेकिन गवर्नमेंट ने लैंगिकता के आधार पर भेदभाव को क्राइम घोषित करने वाला एक कानून पारित किया है, जिसके बाद शादी समानता को मान्यता देने में देरी करने के लिए एलजीबीटी+ कार्यकर्ताओं ने इसकी जमकर निंदा की।
गुरुवार को, साप्पोरो न्यायालय ने बोला कि जनता के समर्थन को देखते हुए काफी आशा थी कि संसद किसी समय पर समलैंगिक शादी को कानूनी अमलीजामा पहनाएगी। न्यायालय ने यह भी पाया कि वन जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के अनुसार रहना आदमी का अधिकार है। 2019 के बाद से समलैंगिक शादी को चुनौती देने वाले कम से कम आधा दर्जन कानूनी मुद्दे चल चुके हैं। वर्ष 2021 में साप्पोरो न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए बोला था कि यह बैन गैरकानूनी है।