रूस के लोगों को पुतिन का ये रवैया आया पसंद
23 अक्टूबर 2002 को कुछ हमलावर मॉस्को के एक थियेटर में घुस गए. उन्होंने वहां लोगों को बंधक बना लिया. इसके साथ ही मांग रखी कि यदि रूस चेचन्या से अपनी फौज हटाने को राजी नहीं होता तो वो सारे बंधकों को मार देंगे. रूस ने उत्तर में बोला कि यदि हमलावर बंधकों को जाने दें तो उनकी जीवन बख्श दी जाएगी. हमलावर नहीं माने. तीन दिन बाद 26 अक्टूबर को रूसी सिक्योरिटी फोर्सेज ने बिल्डिंग के अंदर जहरीली गैस छोड़ दी. फिर अंदर दाखिल होते हुए पांचों हमलावरों को मृत्यु के घाट उतार दिया. 750 बंधक रिहा कराए गए और 118 मारे भी गए. ये पुतिन का आंतकवादियों को सीधा संदेश था कि रूस किसी भी मूल्य पर स्वयं को ब्लैकमेल नहीं होने देगा. चाहे फिर इसके लिए उसे अपने लोगों की जान ही क्यों न देनी पड़े. रूस के लोगों को पुतिन का ये रवैया पसंद आया.
रूसी गवर्नमेंट ने इस ऑपरेशनको अपनी सफलता बताया. बंधकों के मारे जाने पर बस खेद भर जताया. मुद्दे को रफा दफा करने की भी कई कोशिशें अमल में लाई गई. मरने वाले लोगों की मृत्यु की वजह में जहरीली गैस को नहीं गिना गया और बोला गया कि भूख प्यास से मरे. इस वाक्ये के बाद पुतिन का सिक्का जम गया. उन्होंने अपने इस कदम का बचाव किया. बोला कि ये महत्वपूर्ण था. उन्होंने बोला कि बहुत सारे लोगों को बचाने के लिए कुछ लोगों की जान का रिस्क लेना पड़ा. ब्रिटेन और अमेरिका ने भी रूस की पीठ थपथपाई. उस दौर में एक वर्ष पहले ही अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का धावा झेला था.