अंतर्राष्ट्रीय

शी जिनपिंग की सनक ने दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था वाले देश का किया बुरा हाल

राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सनक ने दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्र चीन का बुरा हाल कर दिया है एक समय अपनी आर्थिक तरक्की की रफ्तार के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध चीन इस समय बमुश्किल गुजारा कर पा रहा है और जिस धीमी गति से उसकी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है वह कछुआ चाल यदि जारी रही तो जल्द ही चीन दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था का तमगा खो सकता है चीन में इस समय कितनी निराशा है इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि वहां के हुक्मरान अब तरक्की के बहुत बड़े लक्ष्य तय करने की बजाय इस बात पर बल दे रहे हैं कि गुजारा चलाने लायक स्थितियां बनी रहें

हम आपको बता दें कि आर्थिक मंदी और कमजोर पड़ती व्यवसायी धारणा से जूझ रहे चीन ने इस वर्ष पांच फीसदी की हल्की आर्थिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया है पिछले वर्ष चीन ने 5.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की थी इसके साथ ही चीन ने बढ़ती बेरोजगारी पर चिंताओं के बीच 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा भी किया है चीन के पीएम ली कियांग ने राष्ट्र की रबर-स्टैम्प संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस पार्टी (एनपीसी) के उद्घाटन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में आशा जताई कि इस वर्ष शहरी क्षेत्रों में 1.2 करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा होंगी कहा जा रहा है कि चीन में इस वर्ष शहरी बेरोजगारी रेट लगभग 5.5 फीसदी रहने का अनुमान है हम आपको बता दें कि करीब हफ्ते भर चलने वाले एनपीसी के वार्षिक सत्र में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अतिरिक्त राष्ट्र भर से 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया इस दौरान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण पहलों पर विचार-विमर्श किया गया कहा जा रहा है कि चीन ने 2024 के लिए एक एक्टिव राजकोषीय नीति और एक विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति जारी रखने की बात कही है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले घाटे को तीन फीसदी पर रखा जाएगा चीनी पीएम ली कियांग ने अपनी 39 पेज की कार्य रिपोर्ट में बोला है कि इस बार सरकारी घाटा 2023 के बजट आंकड़े से 180 अरब युआन (26 अरब अमेरिकी डॉलर) बढ़ जाएगा

देखा जाये तो चीन इस समय सबसे गहरी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है इसलिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि वह ऐसी नीतियां बनाएं जिससे अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा जा सके लेकिन यहां प्रश्न यह है कि चीन आखिर उबरेगा कैसे? अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उसके माल की गुणवत्ता पर लगातार प्रश्न उठ रहे हैं और उन्हें लौटाया जा रहा है या पुराने ऑर्डर रद्द किये जा रहे हैं चीनी कंपनियों को नये ऑर्डर नहीं मिलने से उत्पादन ठप है और बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है चीन में विदेशी निवेशक आने से कतरा रहे हैं या अपना कारोबार समेट रहे हैं क्योंकि तानाशाह जैसे शासन में काम करना कठिन होता जा रहा है यही नहीं चीनी युवा भी अपने भविष्य को लेकर इतने आशंकित पहले कभी नहीं दिखे जितने अब दिख रहे हैं दरअसल चीन में मजदूरी और उत्पादन लागत बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चीन प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है इसके अलावा, चीन का रियल एस्टेट उद्योग जिस तरह भरभरा कर गिर रहा है और क्षेत्रीय सरकारों को सामान्य खर्च चलाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है उससे शी जिनपिंग की नीतियों और उनकी उन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर भी प्रश्न उठ रहे हैं जिन पर अरबों $ खर्च हो रहा है मगर हासिल कुछ नहीं हो रहा है

बहरहाल, देखा जाये तो जिस तरह पाक ने आतंकवाद को ही सारी फंडिंग करके अपनी अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया है उसी तरह चीन ने भी अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते ऐसी परियोजनाएं बनाईं जिन पर अरबों $ बेमतलब में खर्च हो रहा है इसके अतिरिक्त चीन दूसरे राष्ट्रों में जासूसी के लिए अरबों $ खर्च कर रहा हे, नये जमाने के युद्ध के लिए कोविड-19 जैसे वायरस बनाने में अरबों $ खर्च कर रहा है, हिंदुस्तान को घेरने के लिए उसके पड़ोसी राष्ट्रों को अपने ऋण के जाल में फंसाने के लिए हजारों-लाखों $ पे $ उधार दे रहा है इस सबसे चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा हानि हो रहा है लेकिन शी जिनपिंग सुधरने को तैयार नहीं हैं चीन को धन जुटाने के लिए एक ट्रिलियन युआन मूल्य के विशेष प्रयोजन बांड जारी करने पड़ रहे हैं जो दर्शाता है कि चीनी अर्थव्यवस्था कितने दबाव से गुजर रही है

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