झारखण्ड

हाईकोर्ट में ने ग्राउंड वाटर लेवल बनाए रखने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग को बताया जरूरी

झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में नदियों और जल स्रोतों के कब्ज़ा तथा साफ-सफाई को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान माैखिक रूप से बोला कि भूमिगत जल स्तर को बनाये रखने में वाटर हार्वेस्टिंग महत्वपूर्ण है सरकारी भवन, प्राइवेट बिल्डिंग, अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग लगाना सुनिश्चित किया जाये ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट देने के पूर्व यह देखा जाये कि वहां वाटर हार्वेस्टिंग बनाया गया है

वाटर हार्वेस्टिंग न बानाने वालों भवनों पर होगी कार्रावाई

रांची नगर निगम को खंडपीठ ने निर्देश दिया कि वह सर्वे कराये तथा यह देखे कि भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग बनाया गया है या नहीं नहीं बनाने पर कार्रवाई की जाये इसे हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए इसके लिए रांची नगर निगम बड़े पैमाने पर लगातार प्रचार-प्रसार अभियान भी चलाये सभी जगहों पर वाटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहित करने को लेकर होर्डिंग्स लगाया जाये समाचार पत्रों, एफएम रेडियो आदि के माध्यम से प्रचार अभियान चला कर लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए खंडपीठ ने राज्य गवर्नमेंट को निर्देश दिया कि वह राजधानी के बाहर यह देखे कि बननेवाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग भी महत्वपूर्ण हो, ताकि भूमिगत जल स्तर को बनाये रखा जा सके

6 मई को होगी अगली सुनवाई

मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने छह मई की तिथि निर्धारित की इससे पूर्व रांची नगर निगम की ओर से अधिवक्ता एलसीएन शाहदेव ने पैरवी की उन्होंने खंडपीठ को कहा कि नगर निगम ने भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग के लिए नियम बनाया है 300 स्क्वायर मीटर या उससे अधिक क्षेत्रफल के भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग लगाना जरूरी है इसका पालन नहीं करनेवाले भवन मालिकों और अपार्टमेंट के निवासियों से डेढ़ गुना अतिरिक्त होल्डिंग टैक्स जुर्माने के रूप में तब तक वसूला जाता है, जब तक कि वाटर हार्वेस्टिंग बना नहीं लिया जाता है

इन लोगों ने रखा पक्ष

केंद्र गवर्नमेंट की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने पैरवी की, जबकि राज्य गवर्नमेंट की ओर से अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश ने पक्ष रखा गौरतलब है कि नदियों और जलस्रोतों के कब्ज़ा और साफ-सफाई के मुद्दे को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए साल 2011 में उसे जनहित याचिका में परिवर्तित कर दिया था पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कांके डैम और गेतल सूद डैम से जलकुंभी हटाने का निर्देश दिया था

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