दिल्ली में असमंजस और ‘बिहार मॉडल’ पर मंथन
नई दिल्ली। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल न्यायिक हिरासत में हैं। तिहाड़ कारावास भेजे जाने से पहले शराब घोटाले मुद्दे में उन्होंने न्यायालय में बोला कि आम आदमी पार्टी के संचार प्रभारी विजय नायर उन्हें नहीं बल्कि अपने कैबिनेट सहयोगियों आतिशी मार्लेना और सौरभ भारद्वाज को रिपोर्ट करते थे। इसके साथ ही केजरीवाल ने यह भी बोला कि विजय नायर के साथ उनकी वार्ता सीमित थी। अब सियासी गलियारों में इसे केजरीवाल का दांव बताया जा रहा है, क्योंकि बताया जा रहा है कि केजरीवाल के इस दांव से इन दोनों का पत्ता मुख्यमंत्री पद को लेकर कट गया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में दिल्ली में बिहार मॉडल लागू हो सकता है।
आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर क्या था वह बिहार मॉडल जिसे अरविंद केजरीवाल दिल्ली में लागू कर सकते हैं? दरअसल, बिहार की राजनीति में दो मॉडल की काफी चर्चा होती रही है। एक लालू प्रसाद यादव का राबड़ी देवी मॉडल और दूसरा सीएम नीतीश कुमार का जीतन राम मांझी मॉडल। मुश्किल समय में दुविधापूर्ण स्थिति आने पर जहां लालू प्रसाद यादव ने कोई दूसरी बात नहीं सोची और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का सीएम बना दिया था। वहीं, दूसरी ओर नीतीश कुमार ने स्वयं ही अपना विश्वस्त मानकर जीतन राम मांझी को बिहार की कमान सौंप दी थी। बिहार के ये दोनों ही मॉडल सत्ता की राजनीति में हमेशा राजनीति की चर्चा में रहते हैं।
बिहार में लालू यादव का राबड़ी देवी मॉडल
बता दें कि, बिहार में तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने कारावास जाने से पहले पत्नी राबड़ी देवी को प्रदेश का सीएम बनाया था। राबड़ी देवी ने 25 जुलाई 1997 को बिहार की पहली स्त्री सीएम के तौर पर शपथ ली थी। तब लालू प्रसाद यादव को चारा भ्रष्टाचार से संबंधित करप्शन के आरोपों में उनके विरुद्ध जारी गिरफ्तारी वारंट के बाद त्याग-पत्र देने के लिए विवश होना पड़ा था। इसके बाद लालू यादव ने किसी अन्य सहयोगी पर विश्वास न कर राबड़ी देवी को ही सीएम पद सौंपा था। राबड़ी देवी साल 2005 तक राज्य पर शासन करती रहीं और बिहार का शासन अपरोक्ष रूप से लालू प्रसाद यादव के हाथों में ही रही।
अरविंद केजरीवाल के सामने दुविधा की स्थितिद
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के समक्ष बिहार के दो मॉडल ने दुविधा पैदा कर दी है। एक है बिहार का जीतन राम मांझी मॉडल और दूसरा राबड़ी देवी मॉडल। इनमें चुनाव करना केजरीवाल के लिए मुश्किल होता जा रहा है। जब बिहार में राबड़ी देवी मॉडल लागू हुआ था तब के दौर में बिहार में जो हालात थी वर्तमान में दिल्ली में और अरविंद केजरीवाल की स्थिति से लगभग मिलती जुलती थी। अब बोला जा रहा है कि केजरीवाल इस मॉडल पर आगे बढ़ सकते हैं और पत्नी सुनीता केजरीवाल को प्रदेश की कमान सौंप सकते हैं। हालांकि, बता दें कि कालांतर में मांझी मॉडल में नीतीश कुमार स्वयं को ठगा हुआ बताते रहे हैं।
नीतीश कुमार ने मांझी को बनाया था सीएम
दरअसल साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू की करारी शिकस्त हुई तो नीतीश कुमार ने सीएम पद से त्याग-पत्र दे दिया और जदयू के वरिष्ठ नेता और अपने विश्वस्त जीतन राम मांझी को बिहार का सीएम बनाया। लेकिन, बाद के दौर में उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा क्योंकि मांझी पर इल्जाम लगने लगा कि वह नीतीश कुमार की बात भी सुनते नहीं थे। जल्द ही जब जीतन राम मांझी ने अपने तेवर दिखाये तो नीतीश कुमार को भी अपना निर्णय बदलना पड़ा और मांझी की स्थान फिर स्वयं मुख्यमंत्री बने। इस दौरान मांझी को हटाने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। बता दें कि जीतन राम मांझी ने 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक बिहार के 23वें सीएम के रूप में कार्य किया था।
मांझी मॉडल पर ऐतबार नहीं करेंगे केजरीवाल!
ऐसे में अरविंद केजरीवाल के समक्ष अतिशी मार्लेना और सौरभ भारद्वाज नाम के दो चेहरे थे जो की मांझी मॉडल पर लागू हो सकते थे। लेकिन, जिस तरह से केजरीवाल ने शराब घोटाले के संबंध में आतिशी और सौरभ भारद्वाज का भी नाम ले लिया इससे यही लगता है कि केजरीवाल कुछ और प्लानिंग पर काम कर रहे हैं। राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि जिस तरह से आम आदमी पार्टी में शांति भूषण, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं को अरविंद केजरीवाल ने किनारे कर दिया और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, ऐसे में केजरीवाल अतिशी या सौरभ पर भरोसा करेंगे, यह मानना थोड़ा मुश्किल है।
केजरिवाल के सामने लालू का राबड़ी देवी मॉडल
वहीं, केजरीवाल के समक्ष दूसरा मॉडल राबड़ी देवी का है जिसके अनुसार वह अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को सत्ता सौंप सकते हैं। लेकिन, केजरीवाल के लिए पत्नी सुनीता केजरीवाल को सत्ता सौंपना भी कम मुश्किल नहीं है। अरविंद केजरीवाल यदि अपनी पत्नी को सत्ता सौंपते हैं तो उन पर भी परिवारवाद का इल्जाम लगेगा जो अरविंद केजरीवाल स्वयं नहीं चाहेंगे। इतना ही नहीं राजनीति बदलने का जो भरोसा दिलाकर वह दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे उसे भी बट्टा लगने नहीं देना चाहेंगे। लेकिन, यहां यह भी बात सामने है कि वह कई बार अपनी ही कही बातों से पलट भी गए हैं, ऐसे में वह आने वाले समय में कुछ भी बड़ा निर्णय कर सकते हैं।
अब क्या कर सकते हैं अरविंद केजरीवाल?
हालांकि, राजनीति के जानकार यह भी बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल आने वाले दो-तीन महीनों तक कोई बड़ा निर्णय नहीं करेंगे और वेट एंड वॉच की रणनीति अपना सकते हैं। ऐसा इसलिए कि वह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि दिल्ली के एलजी स्वयं अपनी ओर से राष्ट्रपति शासन जैसा कोई निर्णय लें जिससे उनके लिए जनता के बीच सहानुभूति हो। वहीं, यदि उपराज्यपाल कोई निर्णय नहीं लेते हैं तो अरविंद केजरीवाल पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना सकते हैं, लेकिन यह जुलाई या अगस्त में हो सकता है। इसके पीछे की वजह यह है कि ऐसा होता है तो अगले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सुनीता केजरीवाल बिना चुनाव लड़े ही मुख्यमंत्री बनी रह सकती हैं।