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मुक्त व्यापार को लेकर बढ़ा दबाव का सिलसिला

देविंदर शर्मामुक्त व्यापार कभी भी निष्पक्ष नहीं रहा. पहले की ‘फेयर एंड लवली’ क्रीम, जिसे अब ‘ग्लो एंड लवली’ नाम दिया गया है, की तरह फ्री ट्रेड पूरे विश्व के बड़े कारोबारों को सरलता से आकर्षित कर सकता है ताकि ग्लोबल साउथ के राष्ट्रों यानी गरीब और विकासशील राष्ट्रों को इसकी विशाल आर्थिक क्षमता पर विश्वास हो सके. विवादास्पद ‘फेयर एंड लवली’ क्रीम ने भी त्वचा को कथित गोरा करने वाले कॉस्मेटिक उत्पाद के साथ ऐसा ही किया. ‘गोरे’ को सुंदर और ‘सांवले’ को बदसूरत समझना सांवली त्वचा वाले लोगों का उपहास करने जैसा था और अंततः कंपनी को जनता के दबाव के आगे झुकना पड़ा.

मुक्त व्यापार को लेकर दबाव का सिलसिला बढ़ता जा रहा है. इस वर्ष की आरंभ में यूरोप में विशाल किसान आंदोलन हुए. 27 यूरोपीय राष्ट्रों में से 24 किसी न किसी स्तर पर विरोधों का सामना कर रहे हैं. इन आंदोलनों में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (एफटीए) को ‘उखाड़ फेंकने’ का आह्वान कर रहे थे जिसकी वजह से यूरोप में भोजन और फल-सब्जियां सस्ते हो गये और घरेलू किसानों की आजीविका सुरक्षित करना कठिन हो रहा था.

फ्रांस अकेले अपनी फल और सब्जी की आवश्यकता का 71 प्रतिशत आयात करता है. हिंदुस्तान में, किसान आंदोलन 2.0 मुख्य रूप से कृषि उपज के लिए कानूनन बाध्यकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहा है, और इसकी अन्य मांगों में हिंदुस्तान को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से हटने के लिए बोलना भी शामिल है.

इस लेख में अमेरिका द्वारा हाल ही में अपनाए गये उस कड़े कदम का विश्लेषण करने का कोशिश किया जायेगा जो विकासशील राष्ट्रों में बाजार की पकड़ और अधिक मजबूत करने को लेकर है. अमेरिका की तो हमेशा से विकासशील राष्ट्रों के बाजार में पहुंच बनाने की तीव्र ख़्वाहिश रही है. जिसमें ध्यान का केंद्र स्वाभाविक तौर पर हिंदुस्तान का विशाल बाजार रहा है.

अमेरिकी वित्त समिति की हालिया सुनवाई में, सीनेटरों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) कैथरीन टाई ने कहा-‘हम कड़ी मेहनत करने वाले अमेरिकी परिवारों और समुदायों, विशेष रूप से हमारे ग्रामीण समुदायों के लिए बाजार खोल रहे हैं. वार्ता के माध्यम से, हमारे प्रशासन ने पिछले तीन सालों में नए कृषि बाजारों तक 21 बिलियन अमेरिकी $ से अधिक की पहुंच सुनिश्चित की है,’ और आगे कहा, ‘इसमें वृद्धिमान बाजार, हिंदुस्तान के साथ 12 टैरिफ श्रेणियां शामिल हैं जो अमेरिकी निर्यातकों के लिए तरक्की का मौका हैं.

हालांकि मेहनतकश अमेरिकी परिवारों और ग्रामीण समुदायों की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की रुचि समझी जा सकती है लेकिन भूमंडलीकरण के अनुसार हर राष्ट्र को उन दसियों हजारों किसानों की आजीविका की भी रक्षा करनी चाहिए जो दुनिया के किसी और हिस्से में सस्ते आयातों के चलते तबाह हो जाते हैं. यह न भूलें कि भोजन का आयात करना बेरोजगारी का आयात करने के समान है.

मुझे याद है कि मैंने जर्मन किसानों से भी कमोबेश इसी तरह का प्रश्न पूछा था, जो दक्षिणी जर्मनी के लैंड्सफुहल में एक फार्म हाउस में डिनर के दौरान जीएटीटी निर्यातकों के एक छोटे समूह से मिलने आए थे (मेरी पुस्तक: गैट टू डब्ल्यूटीओ : निराशा के बीज 1995. कोणार्क पब्लिशर्स, नयी दिल्ली). यह 1990 के दशक के मध्य में किसी समय का वाकया है. ‘मानता हूं कि आप सरप्लस खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं जिसके लिए आप दक्षिण में एक स्थाई बाजार की तलाश कर रहे हैं. लेकिन शायद आपको इस बात का अहसास नहीं है कि आप यहां जो सरप्लस अनाज पैदा करेंगे, वह हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रों में लाखों छोटे और सीमांत किसानों को उनके खेतों से दूर कर देगा. उन व्यापार वार्ताकारों के उलट, जो नष्ट हो रही कृषि आजीविका के बारे में दूर-दूर तक चिंतित हुए बिना, आजकल व्यापार वार्ता की प्रतिनिधित्व करते हैं, मुझे वहां किसानों से जो उत्तर मिला, वह अत्यधिक समर्थन प्रदान करने वाला था. भारतीय किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए उन्होंने साफ रूप से बोला था कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनका अधिशेष खाद्यान्न हिंदुस्तान में आजीविका को नष्ट कर देगा. जर्मनवासी किसान भारतीय किसानों की पीड़ा को समझ सकते थे और इसलिए चाहते थे कि सुधारात्मक कदम उठाए जाएं.

मैंने सोचा कि अमेरिका को भी उस असर का आकलन करना चाहिये जो बादाम, अखरोट और सेब समेत अन्य चीजों पर प्रतिरोधात्मक आयात शुल्क वापस लेने के बाद हिंदुस्तान पर पड़ेगा. चलो यहां सेब की बात करते हैं. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 20 प्रतिशत आयात शुल्क वृद्धि वापस लेने के बाद जब पहली खेप हिंदुस्तान के लिए रवाना हुई तो सिएटल बंदरगाह पर उत्सव मनाया गया. जाहिर है, हिंदुस्तान वाशिंगटन के सेब के लिए 120 मिलियन $ का बाजार प्रदान करता है, जिससे अमेरिका में 68,000 सेब उत्पादक किसानों को फायदा होगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, नवंबर 2023 में आयात शुल्क आंशिक रूप से वापस लेने के एक महीने के भीतर 19.5 मिलियन $ मूल्य के वाशिंगटन सेब हिंदुस्तान भेजे गए.

जैसा कि आशा थी, यूएस कांग्रेस पार्टी की सुनवाई में एक सीनेटर को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि भारतीय गेहूं सब्सिडी कीमतों को बिगाड़ रही है और इससे अमेरिकी किसानों को हानि हो रहा है. एक अन्य सीनेटर ने चावल सब्सिडी के बारे में बात की. उन्होंने बोला कि यदि चावल सब्सिडी डब्ल्यूटीओ के मापदंडों के भीतर होती, तो इससे अमेरिकी धान किसानों के लिए 850 मिलियन $ के व्यापार के अवसर खुल जाते. यदि आपका अंदाजा ठीक है, तो ये सीनेटर हिंदुस्तान में एमएसपी प्रबंध पर प्रश्न उठा रहे हैं जिसके अनुसार खासकर पंजाब और हरियाणा में गेहूं और चावल उत्पादक किसान, उच्च सुनिश्चित कीमतों से लाभान्वित होते हैं. अमेरिका ने बार-बार बोला है कि हिंदुस्तान किसानों को उत्पाद-विशेष के लिए समर्थन की 10 फीसदी की सीमा से अधिक एमएसपी भुगतान करके डब्ल्यूटीओ की शर्तों का उल्लंघन करता है.

आश्चर्यजनक तौर पर, ये आक्षेप बार-बार उस राष्ट्र द्वारा लगाये जाते हैं जो पूरे विश्व के कपास उत्पादकों को नुकसान पहुंचाने के लिए अपने राष्ट्र के कपास उत्पादकों को दी जाने वाली भारी-भरकम सब्सिडी को बंद करने में विफल रहा हो. जरा तुलना ही करें तो, नयी दिल्ली स्थित डब्ल्यूटीओ शोध केंद्र के अनुसार, अमेरिका अपने 8,100 कपास उत्पादकों को प्रति किसान 117,494 $ की घरेलू सहायता प्रदान करता है. इसके विपरीत, 9 मिलियन से अधिक संख्या वाले भारतीय कपास उत्पादकों को प्रति किसान हल्की 27 $ मिलते हैं. अमेरिका द्वारा अपने किसानों को प्रदान की जाने वाली कपास सब्सिडी का विवादास्पद मामला पश्चिमी अफ्रीका के राष्ट्रों और हिंदुस्तान में लाखों कृषकों की आजीविका को समाप्त करने के लिए जाना जाता है, वर्ष 2003 में असफल कैनकन डब्ल्यूटीओ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में एक प्रमुख मामले के रूप में सामने आने के समय से अनसुलझा बना हुआ है.

मुझे यह भी अजीब लगता है कि जब अमेरिकी सीनेटर उस हालात में हिंदुस्तान के झींगा उद्योग में बाल मजदूरी पर प्रश्न उठाते हैं जब अमेरिकी कृषि क्षेत्र सैकड़ों की तादाद में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नियुक्त करने के लिए जाना जाता है, और कुछ तो 10-12 साल की नाजुक उम्र में वाणिज्यिक फार्म्स में श्रम करते हैं. प्रत्येक आदमी की तरह, मैं भी संसार में कहीं भी खेती के काम में बालश्रम का विरोधी हूं. लेकिन जब खेती के कार्य में बाल मजदूरों को लगाने की बात आती है तो अमेरिका भी इससे अछूता नहीं. यह निष्पक्ष स्थिति नहीं जो स्वतंत्र व्यापार सुनिश्चित करती हो. फ्री ट्रेड का अपने आप में यह मतलब नहीं कि यह ‘फेयर और लवली’ है.

 

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