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झारखंड में इंडिया ने हासिल की फतह,बढ़ गई सोरेन के नाम की चमक

 

 

रांची. झारखंड में एनडीए बनाम इण्डिया की पहली लड़ाई में इण्डिया ने जीत हासिल की है और इसके साथ ही राज्य के राजनीतिक स्कोर बोर्ड पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम की चमक और बढ़ गई है. राज्य की डुमरी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में इण्डिया की ओर से उतरी झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेबी देवी की जीत के साथ उन्हें हौसले की एक नयी संजीवनी मिली है.

विपक्ष के हमलों, न्यायालय में चल रहे मुकदमों, कई मुद्दों पर केंद्र गवर्नमेंट के साथ विवाद और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई की वजह से बार-बार मुश्किलों में घिरते रहे सोरेन अब नए उत्साह से लबरेज हैं. हालांकि उन्हें इस बात की संभावना है कि जिस तरह उनके इर्द-गिर्द प्रवर्तन निदेशालय और CBI की घेराबंदी बढ़ रही है, उसमें उनके कारावास जाने की नौबत आ सकती है, लेकिन इसके पहले वह राजनीतिक मोर्चे पर स्वयं का इकबाल इतना बुलंद कर लेना चाहते हैं कि विरोधी दलों को इसका कोई लाभ न मिले.

जिस समय डुमरी विधानसभा उपचुनाव का नतीजा सामने आया, उस समय सोरेन चाईबासा के गुवा में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, “जब से हमारी गवर्नमेंट बनी है, हमारे विरुद्ध साजिशें रची जा रही हैं. कानूनी संस्थाओं का दुरुपयोग कर मुझे कारावास भेजने की प्रयास की जा रही है. लेकिन जब तक वे मुझे कारावास भेजेंगे, तब तक झारखंड को मजबूत कर दूंगा.

सोरेन जानते हैं कि जब तक जनता किसी पॉलिटिशियन को सिर-आंखों पर रखती है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कारावास के अंदर है या बाहर है. यह राजनीतिक सबक दरअसल उन्हें अपने पिता शिबू सोरेन से विरासत में मिला है, जो करप्शन से लेकर मर्डर जैसे आरोपों को लेकर कई बार कारावास गए, लेकिन इससे उनका और उनकी पार्टी झामुमो की राजनीतिक स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ा. बल्कि हर कारावास यात्रा के बाद शिबू सोरेन का नायकत्व और बढ़ता गया. बीजेपी के नेता जब-जब यह उनपर यह कहते हुए धावा करते हैं कि हेमंत सोरेन कारावास जाने को तैयार रहें, तब-तब उसके उत्तर में वह जनसभाओं में सीना ठोक कर कहते हैं- कोई झारखंडी कभी कारावास जाने से डरा है क्या?

सनद रहे कि सोरेन इन दिनों फिर एक बार प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर हैं. पिछले वर्ष खनन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय उनसे लगभग दस घंटे की पूछताछ कर चुकी है. प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी चार्जशीट में उन्हें गैरकानूनी माइनिंग के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग करने वाले आरोपियों का संरक्षक कहा है. अब प्रवर्तन निदेशालय राज्य के जमीन घोटाले में चल रही कार्रवाई के सिलसिले में उनसे पूछताछ करना चाहती है. प्रवर्तन निदेशालय हेमंत सोरेन के अगस्त से लेकर अब तक तीन बार समन भेज चुकी है, लेकिन सोरेन प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष हाजिर होने के बजाय उसकी कार्रवाई को सियासी पूर्वाग्रह से प्रेरित बताते हुए उसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय चले गए हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें 9 सितंबर को हाजिर होने का समन भेजा था, लेकिन वे इसे नकारकर राष्ट्रपति द्वारा जी-20 सम्मेलन के उपलक्ष्य में दिए गए भोज में सम्मिलित होने चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली चले गए.

हेमंत सोरेन के समर्थक उनके लिए एक नारा लगाते हैं- हेमंत है तो हौसला है ! यह कहने-मानने में शायद ही किसी को गुरेज हो कि डुमरी विधानसभा उपचुनाव सीट पर इण्डिया और एनडीए के बीच हुई सीधी लड़ाई में इण्डिया को मिली जीत से “हेमंत की हिम्मत” में और बढ़ोत्तरी हो गया है.

डुमरी की यह सीट हेमंत सोरेन की गवर्नमेंट में मंत्री रहे जगरनाथ महतो के मृत्यु से खाली हुई थी. हेमंत सोरेन ने उपचुनाव का घोषणा होने के पहले ही बड़ा दांव चलते हुए दिवंगत जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को बगैर विधायक बने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया और उन्हें डुमरी सीट पर पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया. जब तक उपचुनाव का घोषणा होता, इसके पहले ही उन्होंने डुमरी सीट पर जबरदस्त फील्डिंग प्रारम्भ कर दी. उस क्षेत्र के लिए एकमुश्त कई कल्याणकारी और विकास योजनाओं का न केवल घोषणा किया, बल्कि उनका शिलान्यास-उद्घाटन भी कर दिया. चुनाव के पहले बेबी देवी को मंत्री पद की शपथ दिलाना भी उनकी राजनीतिक रणनीति का ही हिस्सा था. चुनाव अभियान के दौरान भी हेमंत सोरेन ने क्षेत्र में करीब एक दर्जन सभाएं और रोड शो किए.

दूसरी तरफ एनडीए ने उपचुनाव का घोषणा होने के बाद अपने प्रत्याशी का घोषणा किया. इस सीट पर 2019 के विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी की यशोदा देवी दूसरे नंबर पर रही थीं. उस समय बीजेपी ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था और वह तीसरे जगह पर था. इस बार आजसू पार्टी और बीजेपी एनडीए गठबंधन की छतरी के नीचे आई. आजसू की यशोदा देवी एनडीए की प्रत्याशी घोषित हुईं. 2019 में आजसू पार्टी और बीजेपी प्रत्याशी दोनों के सम्मिलित वोटों की संख्या करीब 72 हजार थी, जबकि चुनाव जीतने वाले झामुमो के जगरनाथ महतो को करीब 71 हजार वोट मिले थे. एनडीए यह मानकर चल रहा था कि इस बार आजसू-भाजपा की एका का रिज़ल्ट यह होगा कि बीजेपी के वोट आजसू प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर हो जाएंगे और इस आधार पर उनकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी.

हेमंत सोरेन ने एनडीए की यह रणनीति असफल कर दी. दरअसल, उन्होंने अपनी पार्टी की प्रत्याशी बेबी देवी की जीत सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक यानी मुसलमान वोटरों को बहुत कायदे के साथ साध लिया. 2019 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी ने 24 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे. इस बार भी ओवैसी ने अपना प्रत्याशी उतारा, लेकिन हेमंत सोरेन की सधी हुई रणनीति की बदौलत मुस्लिमों के 90 प्रतिशत वोट उनके प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर हुए. ओवैसी के कैंडिडेट को इस बार मात्र3472 वोट मिले, जो 2019 की तुलना मिले वोटों की तुलना में करीब 20 हजार कम हैं.

बहरहाल, इस जीत के बाद हेमंत सोरेन के राजनीतिक तेवर और आक्रामक हो गए हैं. सच तो यह है कि 2019 में चुनाव जीतकर सीएम बनने के बाद अनेक झंझावतों के बावजूद वे विरोधियों के ऊपर लगातार स्कोर करते रहे. राज्य में 2019 के बाद छह विधानसभा सीटों दुमका, मधुपुर, मांडर, रामगढ़, बेरमो और डुमरी पर भिन्न-भिन्न वजहों से चुनाव की नौबत आई और इनमें से पांच सीटों पर हेमंत सोरेन की प्रतिनिधित्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने जीत हासिल की है.

जाहिर है, 2024 में संभावित चुनावों के पहले सोरेन ने अपने राजनीतिक किले की मजबूत घेराबंदी कर ली है. यह तय है कि लोकसभा हो या विधानसभा, आनें वाले चुनावों में एनडीए को झारखंड में हेमंत सोरेन की प्रतिनिधित्व वाले इण्डिया गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलेगी.

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