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झारखंड विधानसभा को करीब साढ़े तीन साल बाद मिलेगा नेता प्रतिपक्ष

आखिरकार करीब साढ़े तीन वर्ष बाद झारखंड विधानसभा को नेता प्रतिपक्ष मिलने की राह साफ हो गई है विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीजेपी ने अमर कुमार बाउरी को पार्टी विधायक दल का नया नेता चुन लिया है अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी औपचारिक रूप से स्पीकर को इसकी सूचना देंगे इसके बाद उन्हें नेता प्रतिपक्ष घोषित किया जाएगा

इसके पहले 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को पार्टी विधायक दल का नेता चुना था, लेकिन स्पीकर ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता नहीं दी थी चुनाव नतीजों के कुछ ही दिनों बाद बाबूलाल मरांडी के विरुद्ध स्पीकर की ट्रिब्यूनल में दल-बदल की कम्पलेन दर्ज कराई गई थी

दरअसल, बाबूलाल मरांडी ने 2019 का चुनाव बीजेपी की बजाय अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से लड़ा था और जीतकर विधानसभा पहुंचे थे चुनाव नतीजों के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में करा दिया था इसे लेकर उनके विरुद्ध स्पीकर ट्रिब्यूनल में दल-बदल की शिकायतें दर्ज कराई गई थीं

स्पीकर ट्रिब्यूनल ने इन शिकायतों पर सुनवाई भी पूरी कर ली, लेकिन अब तक इस पर निर्णय नहीं दिया नतीजतन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उनकी मान्यता का समस्या करीब साढ़े तीन वर्ष से लंबित चला आ रहा था अब जबकि बीजेपी ने विधायक दल का नया नेता चुन लिया है, नेता प्रतिपक्ष की घोषणा की औपचारिकता जल्द पूरी हो जाने की आशा है

भाजपा विधायक दल के नए नेता के चुनाव के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तीन माह पहले पर्यवेक्षकों की एक टीम भेजकर पार्टी विधायकों के बीच गुप्त रूप से रायशुमारी कराई थी पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय नेतृत्व ने बाउरी के नाम पर मुहर लगाई है इसके साथ ही इस पद के दावेदार माने जा रहे जयप्रकाश भाई पटेल को पार्टी ने सचेतक नियुक्त किया है

अमर कुमार बाउरी अभी बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं वह पहली बार साल 2014 में बोकारो जिले के चंदनकियारी क्षेत्र से झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए थे और तत्कालीन रघुवर दास के नेतृत्व वाली राज्य गवर्नमेंट में खेल एवं युवा मामलों के मंत्री बनाए गए थे

वर्ष 2019 में वह दूसरी बार विधायक चुने गए राज्य में पिछले साढ़े तीन वर्ष से नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त रहने की वजह से सूचना आयोग, स्त्री आयोग सहित एक दर्जन से भी अधिक कानूनी संस्थाओं में जरूरी पदों पर नियुक्तियां लंबित हैं इन पदों पर नियुक्तियों का फैसला विशेष चयन समितियों के जरिए किया जाता है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष का शामिल रहना जरूरी रहता है

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