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आइए जानते हैं, कामदा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, भोग, मंत्र, कथा और व्रत पारण का समय

इस वर्ष 18 अप्रैल के दिन कामदा एकादशी पड़ रही है. कामदा एकादशी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, जो प्रभु श्री हरी विष्णु को समर्पित है. इस दिन पूरे विधि-विधान से ईश्वर विष्णु की आराधना की जाएगी. प्रभु को खुश करने के लिए यह दिन जरूरी माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत रखने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं.

कामदा एकादशी शुभ मुहूर्त  
एकादशी तिथि प्रारम्भ- अप्रैल 18, 2024 को 05:31 पी एम बजे 
एकादशी तिथि समाप्त- अप्रैल 19, 2024 को 08:04 पी एम बजे
20 अप्रैल को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 05:50 ए एम से 08:26 ए एम 
पारण तिथि के दिन द्वादशी खत्म होने का समय- 10:41 पी एम

कामदा एकादशी पूजा-विधि 
स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें
भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें
प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
अब प्रभु को पीला चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें
मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें
संभव हो तो व्रत रखें और व्रत लेने का संकल्प करें
कामदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें
पूरी श्रद्धा के साथ ईश्वर श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें
प्रभु को तुलसी दल सहित भोग लगाएं
अंत में क्षमा प्रार्थना करें

भोगईश्वर श्री हरी विष्णु की कृपा पाने के लिए इस दिन गुड़ और चने की दाल, केला या पंचामृत का भोग लगा सकते हैं. भोग में तुलसी दल डालना न भूलें.

मंत्र– ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, ॐ विष्णवे नम:

कामदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में भोगीपुर नाम का नगर हुआ करता था. वहां पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे. इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे. उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था. एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गाना गा रहा था. उसे पत्नी ललिता की याद आ गई. इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे. इसे कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी. राजा ने क्रोध में आकर ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया. ललित सहस्त्रों साल तक राक्षस योनि में घूमता रहा. उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही. अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती थी.

कुछ समय पश्चात घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का तरीका पूछने लगी. ऋषि को उन पर दया आ गई. उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की ‘कामदा एकादशी’ व्रत करने का आदेश दिया. उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने जगह पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक ‘कामदा एकादशी’ का व्रत किया. एकादशी व्रत के असर से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए.

विष्णु जी की आरती 
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे.
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे.
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का. स्वामी दुःख विनसे मन का.
सुख संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे.
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी. स्वामी शरण गहूं मैं किसकी.
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे.
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी.
स्वामी तुम अन्तर्यामी. पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे.
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता. स्वामी तुम पालनकर्ता.
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे.
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति. स्वामी सबके प्राणपति.
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे.
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे. स्वामी तुम ठाकुर मेरे.
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे.
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा. स्वामी पाप हरो देवा.
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे.
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे. स्वामी जो कोई नर गावे.
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे.

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