आखिर ये कंदमूल है क्या और कहां मिलता है, आइए जानें
चित्रकूट। चित्रकूट की प्रसिद्धि ईश्वर श्री राम के कारण है। तुलसीदास जी के रामचरित मानस में चित्रकूट का उल्लेख आता है। जिक्र है ईश्वर राम वनवास के दौरान यहां सबसे लंबे समय तक रहे थे। ये भी लगातार जिक्र मिलता है कि वनवास के दौरान ईश्वर राम ने कंदमूल खाए थे। लेकिन कभी आपने ये जानने की प्रयास की कि आखिर ये कंदमूल है क्या और कहां मिलता है।
धर्म नगरी चित्रकूट प्रभु श्री राम की तपोस्थली रही है। यहां प्रभु श्री राम ने माता जानकी, भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास काल के साढ़े ग्यारह साल बिताए थे। उस दौरान ईश्वर श्री राम जंगल पर निर्भर थे। बोला जाता है वनवास काल के दौरान राम ने कंदमूल खाकर ये समय काटा। कंदमूल आखिर है क्या। कई स्थानों पर इसे राम फल के नाम से भी जाना जाता है।
कंदमूल में राक्षसों का वध करने की शक्ति
चित्रकूट के महंत दिव्य जीवन दास बताते हैं वनवास काल के दौरान चित्रकूट में श्री राम कंदमूल फल का सेवन करते थे और उसी के माध्यम से उनकी दिनचर्या चलती थी। उन्होंने कहा ऋषि मुनि तपस्या के दौरान इसी फल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे। इसलिए प्रभु श्री राम ने भी ऋषि मुनियों की तरह इस फल को ग्रहण किया। उनका मानना था ऋषियों के इस प्रसाद का सेवन करने से उन्हें शक्ति प्राप्त होगी। वह शक्ति राक्षसों का वध कर करने में फायदा दायक होगी।
कंदमूल खाने से शीघ्र नहीं लगती भूख
कथाओं के अनुसार, 14 साल तक ईश्वर राम, सीता, और भाई लक्ष्मण ने कंदमूल खाकर अपना जीवन व्यतीत किया था। इसे खाने के बाद शीघ्र भूख नहीं लगती थी। कंदमूल खाने से पेट लंबे समय तक भरा रहता था और ऊर्जा मिलती थी। श्री राम ने यह फल ऋषि मुनियों का प्रसाद समझकर ग्रहण किया था ताकि उनको राक्षसों का वध करने की शक्ति आ सके।
10 रुपए का एक फल
चित्रकूट में इस कंदमूल यानि रामफल का महत्व आज भी है। चित्रकूट के परिक्रमा मार्ग में आज भी ये फल भरपूर देखे जाते हैं। चित्रकूट के संतों का मानना है इसे खाने के बाद आपके मन को शांति मिलती है। कंदमूल बेच रहे घनश्याम ने कहा यह फल ईश्वर श्री राम का प्रसाद है। क्योंकि वनवास काल के दौरान ईश्वर राम ने इसे 14 साल खाया था। इसे चित्रकूट आने वाले भक्त जरूर लेकर खाते हैं। यह फल हम लोग नासिक से चित्रकूट लाते हैं और 10 रूपए पीस बेचते हैं।