प्यार में धोखा खाने वालों को रुला देगी यह कहानी
प्यार, मोहब्बत और विश्वासघात शब्द सुनते-सुनते आप थक गए होंगे। आज हम बात करेंगे कि क्या कानून में प्यार और मोहब्बत में विश्वासघात खाए लड़के और लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न कानून हैं? क्या पुलिस दोनों मामलों में भिन्न-भिन्न ढंग से जांच करती है? प्यार में असफल होने पर यदि कोई लड़की या स्त्री जान दे तो पुलिस तुरंत ही मुद्दा दर्ज कर जांच प्रारम्भ कर देती है, लेकिन यदि यही मुद्दा विपरीत यानी किसी स्त्री या लड़की की वजह से कोई पुरुष या लड़का खुदकुशी कर लेता है तो एफआईआर दर्ज करने में पुलिस को समय क्यों लगता है?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक ऐसा निर्णय दिया है, जिसके बाद इस मामले को लेकर राष्ट्र में एक बार फिर से बहस छिड़ सकती है। दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने खुदकुशी के लिए उकसाने के एक मुद्दे में दो व्यक्तियों की अग्रिम जमानत मंजूर करते हुए बोला कि यदि कोई पुरुष प्रेम में विफलता के कारण आत्महत्या कर लेता है तो उसकी स्त्री साथी को खुदकुशी के लिए उकसाने का उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
HC ने अपने तर्क में क्या कहा
हाईकोर्ट ने तर्क देते हुए बोला कि कमजोर मानसिकता वाले आदमी द्वारा लिए गए गलत निर्णय के लिए किसी अन्य को गुनेहगार नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने अपने निर्णय में बोला कि यदि कोई प्रेम में विफल होने के बाद खुदकुशी करता है, कोई विद्यार्थी खराब प्रदर्शन के कारण खुदकुशी कर लेत है तो परीक्षक को आत्महत्या के लिए उकसाने का उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने उदाहरण देते हुए प्यार में विश्वासघात खाए आदमी को लेकर यह बात कही और फिर इस मुकदमा में नामजद दोनों आरोपियों को अग्रिम जमानत मंजूर कर लिया।
प्यार करने पर जांच का तरीका भिन्न-भिन्न क्यों?
दरअसल, वर्ष 2023 में दिल्ली में आत्महत्या के लिए उकसाने के इल्जाम में दो लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया था। मृतक के पिता ने मुद्दा दर्ज कराते हुए पुलिस को कम्पलेन दी थी कि एक स्त्री और उनके बेटे के बीच प्रेम संबंध थे। जबकि, दूसरा आरोपी उन दोनों (महिला और खुदकशी करने वाला शख्स) का साझा मित्र था। मृतक के पिता ने पुलिस को कम्पलेन में इल्जाम लगाया गया था कि दोनों ने आत्महत्या के लिए मेरे बेटे को उकसाया और बोला कि उनके बीच शारीरिक संबंध हैं।
शिकायत में बोला गया है कि लड़के को स्त्री की बात सुनकर सदमा लगा और वह खुदकुशी कर लिया। खुदकुशी से पहले लड़के ने सुसाइड नोट लिखा, ‘उक्त स्त्री के साथ मेरा प्रेम संबंध चल रहा था। लेकिन, एक दिन दोनों ने कहा कि उनके बीच शारीरिक संबंध भी है। यह बात सुनकर मुझको गहरा मानसिक आघात लगा और मैं इस वजह से खुदकुशी कर रहा हूं। मेरी मृत्यु का उत्तरदायी उक्त स्त्री और उसका दोस्त है।’
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
दिल्ली के पूर्व जॉइंट पुलिस कमिश्नर एसबीएस त्यागी साथ वार्ता में कहते हैं, ‘कानून और सामाज में स्त्रियों का जगह हमेशा से ही समाज में कमजोर वर्ग यानी वीकर सेक्शन में रहा है। आज ही नहीं पूर्व से ही मर्दों की तुलना में स्त्रियों को कमजोर माना जाता आ रहा है। वहीं, दूसरी तरफ समाज में मानसिकता है कि पुरुष प्रधान समाज है। इसको लेकर स्त्रियों पर भी मानसिक दवाब रहता है। स्त्री यदि खुदकुशी करती हैं तो कहीं न कहीं एक प्रेम प्रसंग से जुड़ा मुद्दा होता है या फिर कहीं न कहीं उसके साथ एक्सप्लोइटेशन का मुद्दा होता है।’
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अब दोनों शख्स को अग्रीम जमानत दे दी है।
त्यागी आगे कहते हैं, ‘चाहे वह विवाह का झांसा दिया हो या फिर किसी अन्य वजहों से उसका उत्पीड़न कर रहा हो। अक्सर स्त्रियों के साथ संबंध बनाकर पुरुष बाद में अपने संबंध से मुकर जाते हैं। इससे स्त्री को तुरंत ही मानसिक आघात लगता है और वह खुदकुशी जैसा कदम उठा लेती है। लेकिन, मर्दों के साथ ऐसा नहीं होता है। मर्दों को लेकर न्यायालय के निर्णय सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर दिए जाते हैं।’
सामाजिक संगठनों का क्या बोलना है?
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता बरखा त्रेहन कहती हैं, ‘देखिए मेरा यह मानना है कि महिलाएं भी मर्दों को एक्सप्लोइट करती हैं। न्यायालय का भी निर्णय ज्यादातर मामलों में स्त्रियों के पक्ष में ही आता है। लेकिन, ऐसा नहीं है कि लड़कियों या स्त्रियों की गलती नहीं होती। उदाहरण के तौर पर 498ए के अनुसार दर्ज मामलों में पुलिस बिना जांच किए ही पूरे परिवार यहां तक की आस-पड़ोस के लोगों को भी अरैस्ट कर लेती है। ये तब होता है जब पुलिस के पास किसी तरह का कोई साक्ष्य नहीं होता है। केवल लड़की के बयान या सुसाइड नोट के आधार पर आप लड़कों वालों को अंदर कर देते हैं। लेकिन, जहां लड़का अपने सुसाइड नोट में अपने साथ हुए उत्पीड़न का जिक्र करता है और सुसाइड नोट भी लिखकर चला जाता है। वहां, आप उसे छोड़ देते हैं? मर्दों की मानसिक स्थिति खराब हो जाए या मेंटल इलनेस हो जाए तो आपके जांच का ढंग बदल जाते हैं और स्त्रियों के मुकदमा में आपका यह तरीका भी अलग हो जाता है।
त्रेहन आगे कहती हैं, ‘देखिए आम आदमी खासकर पुरुष आज के दौर में कितना दवाब में काम करता है यह किसी से छिपी नहीं है। उसको फैमिली का प्रेशर है, बॉस का प्रेशर है, मां का प्रेशर, पिता का प्रेशर, पत्नी का प्रेशर है, दोस्त का प्रेशर है। इसके साथ ही न जाने वह कितना दवाब झेल रहा है। लेकिन, यदि घटनाएं होती हैं तो लड़कों की सुनवाई कहां होती है? स्त्रियों के लिए तो आपने कई आयोग बना रखा है। वहीं, पुरुष यदि एफआईआर लिखाना भी चाहे तो कहां लिखाएगा? न्यायालय जाएगा तो वहां भी उसकी सुनवाई नहीं होगी? बेचारा पुरुष जाए तो जाए कहां। इसलिए मैं राष्ट्र में एक पुरुष आयोग के गठन की मांग कर रही हूं, जहां मर्दों के विरुद्ध घरेलू अत्याचार सहित अन्य कई तरह के उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई हो।’