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शीतला सप्तमी कल, जानें शुभ मुहूर्त

Sheetala Ashtami 2024, Sheetala Saptami: इस बार सोमवार को सप्तमी है और मंगलवार को अष्टमी. हर वर्ष चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी होली के आठ दिन बाद शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन माता शीतला की पूजा-आराधना का विधान है. शीतला अष्टमी को बसौड़ा या बसोड़ा भी बोला जाता है. माता शीतला के भक्तों के लिए यह पर्व बहुत ही खास होता है. मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा करने से रोंगों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख शांति बनी रहती है.

सप्तमी-अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त?

सप्तमी तिथि शुरू – मार्च 31, 2024 को 09:30 पी एम बजे
सप्तमी तिथि खत्म – अप्रैल 01, 2024 को 09:09 पी एम बजे
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त – 05:57 ए एम से 06:24 पी एम
अवधि – 12 घण्टे 27 मिनट्स
अष्टमी तिथि शुरू – अप्रैल 01, 2024 को 09:09 पी एम बजे
अष्टमी तिथि खत्म – अप्रैल 02, 2024 को 08:08 पी एम बजे
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 05:56 ए एम से 06:24 पी एम
अवधि – 12 घण्टे 28 मिनट्स

‘मंगलवार का संयोग:

ज्योतिष के जानकार पं मोहन कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि इस बार शीतलाष्टमी मेला में विशेष संयोग बन रहा है. हर वर्ष चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन मां की विशेष पूजा की जाती है. इसके अतिरिक्त हर मंगलवार को भी मां के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटती है. खास यह कि इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन मंगलवार है. आशा है कि भक्तो की अपार भीड़ उमड़ेगी.

बसिऔड़ा मनाने की अनोखी परंपरा:

मघड़ा के पैक्स अध्यक्ष कुमार विश्वास बताते हैं कि अतिप्राचीन काल से चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन मघड़ा तथा इसके आसपास के गांवों में बसिऔड़ा मनाने की अनोखी परंपरा चली आ रही है. इन गांवों के लोग सोमवार की शाम में खाना बनाने के बाद अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं. मंगलवार यानी अष्टमी के दिन किसी घर में चूल्हे नहीं चलते हैं. रात में बनाये गये खाने को लोग बसिऔड़ा के रूप में ग्रहण करते हैं.

अष्टमी के दिन प्रतिमा हुई थी स्थापित:

मान्यता है कि गांव के एक ब्राह्मण को माता ने रात में स्वप्न दी थी कि उनकी मूर्ति नदी के किनारे जमीन के अंदर है. उसे गांव के किसी जगह पर स्थापित कर पूजा-अर्चना करें. इसके बाद ब्राह्मण ने नदी के किनारे स्थित एक कुएं की खुदाई कर मां शीतला की प्रतिमा को निकाला तथा उसे गांव के तालाब के बगल में स्थापित कर दिया. जिस दिन मां की प्रतिमा कुएं से निकाली गयी थी, उस दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी थी तथा अष्टमी के दिन प्रतिमा की स्थापना हुई थी. उसी समय से मघड़ा में मेले की आरंभ हुई, जो अबतक जारी है. जिस कुएं से मां की प्रतिमा निकली थी, उसे मिट्ठी कुआं के नाम से जाना जाता है.

ठंडे पकवानों का भोग:

मां को मीठे चावलों का भोग लगाया जायेगा.पावापुरी के पुजारी अंजनी पाण्डेय बताते हैं कि शीतलाष्टमी पर्व के मौके पर ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा है. आचार्य पुरुषोत्तम पांडेय और पं अजीत कुमार पांडेय कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में जितने भी पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं, उनका संबंध ऋतु, स्वास्थ्य, सद्भाव और भाईचारे से है. होली के बाद मौसम का मिजाज बदलने लगता है और गर्मी बढ़ने लगी है. बसिऔड़ा मूलतः इसी अवधारणा से जुड़ा पर्व है. इस दिन ठंडे पकवान खाए जाते हैं. क्षेत्र में इसी दिन से छाछ, दही का सेवन प्रारम्भ हो जाता है ताकि गर्मी के मौसम और लू से बचाव हो सके. शीतला माता के पूजन के बाद उनके जल से आंखें धोई जाती है. यह हमारी संस्कृति में नेत्र सुरक्षा और खासतौर से गर्मियों में आंखों का ध्यान रखने की हिदायत का भी संकेत कहीं न कहीं देता है.

मां शीतला पूजा-विधि:

बसिऔड़ा के दिन सुबह एक थाली में राबड़ी, रोटी, चावल, दही, चीनी, मूंग की दाल, चुटकी भर हल्दी, जल, रोली, मोली, चावल, दीपक, धूपबत्ती और दक्षिणा आदि सामग्री से मां शीतला का पूजन करना चाहिए. पूजन किया हुआ जल सबको आंखों से लगाना चाहिए . पुजारी संतोष पांडेय ने बोला कि इस तरह से पूजा करने से सुख, समृद्धि एवं धन, वैभव और ऐश्वर्य की बृद्धि होती है.

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