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30 मार्च को देवी-देवताओं की होली, जानिए पूजा विधि

सनातन धर्म में रंग पंचमी का त्योहार होली के पांचवें दिन यानि चैत्र कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है. इस वर्ष रंग पंचमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जाएगा. जैसे कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दिवाली होती है उसी प्रकार रंग पंचमी का त्योहार देवी-देवताओं की होली होती है. रंग पंचमी पूरे राष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. इसे कृष्ण पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि यह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष के पांचवें दिन मनाया जाता है. इसके अतिरिक्त रंगपंचमी को श्रीपंचमी और देव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है.

रंगपंचमी की पूजाविधि

इस दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और घर के पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर में एक लकड़ी के पाटे पर पीले रंग का साफ़ कपड़ा बिछाकर उस पर राधा-कृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें. पास में जल से भरा कलश और पूजा की थाली रख लें. कलश पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और इसके ऊपर मौली बांधें. इसके बाद तस्वीर पर जल के छींटे लगाकर कुमकुम से तिलक लगाकर चावल चढ़ाएं  राधा-कृष्ण को ताज़े और सुगंधित फूलों की पहनाएं. राधा-कृष्ण के सामने सही घी का दीपक जलाएं. अब ईश्वर पर फूल, अबीर, गुलाल चढ़ाते रहें और स्वयं के मस्तक पर भी गुलाल का तिलक लगा लें. हो सके तो थोड़ा गुलाल आसमान में भी उड़ाएं. गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं. आसन पर बैठकर ॐ श्रीं श्रीये नमः मंत्र का जाप कम से कम 1 माला (108 बार) कमलगट्टे की माला से करें. कलश में रखे जल को घर के हर कोने में छिड़कें. ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी.  अंत में ईश्वर राधा-कृष्ण की आरती करें और खीर का का प्रसाद परिवार के लोगों में बांट दें. ऐसा करने से राधा-कृष्ण की कृपा से आपकी हर कामना पूरी होगी.

रंग पंचमी का महत्व

 

रंगपंचमी के दिन वातावरण में हर तरफ अबीर और गुलाल उड़ता नजर आता है. मान्यता है कि इस दिन वातावरण में उड़ने वाला गुलाल आदमी के सात्विक गुणों को बढ़ाता है. साथ ही तामसिक और राजसिक गुण नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इस दिन शरीर पर रंग लगाने की बजाय वातावरण में रंग फैलाया जाता है. यह त्योहार आपसी प्रेम और सौहार्द को दर्शाता है. शास्त्रों के मुताबिक इस पर्व को बुरी शक्तियों पर विजय का दिन भी बोला जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस गुलाल से देवी देवता प्रसन्न होते हैं और जब वो गुलाल वापस नीचे आकर गिरता है, तो उससे पूरा वातावरण सही हो जाता है. हर तरफ की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों का नाश होता है और चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है,देवी-देवताओं की कृपा मिलती है.

रंग पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, होलाष्टक के दिन ईश्वर शिव ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था, जिससे पूरी सृष्टि में शोक व्याप्त हो गया. लेकिन देवी रति और देवताओं की प्रार्थना पर ईश्वर शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया. इसके बाद सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गए और रंगोत्सव मनाने लगे,वह दिन चैत्र कृष्ण पंचमी का था. तभी से रंगपंचमी का त्योहार इस तिथि को मनाया जाने लगा.

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