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Atigand Yog : इन जातकों की किस्मत बदल देता है अतिगंड योग

Atigand Yog: मूलत: अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं. तिथि लग्न और नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है. अतिगण्ड योग वैदिक ज्योतिष के 27 योगों में से छठा योग है. इसे बहुत ही अशुभ योग माना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला जातक या तो टॉप पर रहता है या फिर बिल्कुल बर्बाद जीवन होता है.

क्या होता है अतिगंड योग?

अतिगंड योग एक अशुभ समय है. अतिगण्ड की पहली 6 घटी को सभी अच्छे कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाले जातक का जीवन कष्टकारी होता है. गंभीर मामलों में कभी-कभी इसके परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों की मौत भी हो सकती है. अतिगंडा योग का स्वामी चंद्रमा ग्रह है.

मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत और सिंह लग्न के शुरू की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है. अर्थात मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत बोला जाता है. मीन की अंतिम आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की अंतिम आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की अंतिम आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है. इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के शुरुआत में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है. यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके तरीका करना चाहिए.

अतिगंड योग का असर क्या है?

यदि कोई आदमी अतिगंड योग के भीतर जन्मा है, तो उसे जीवन में बहुत सारी बाधाओं और समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, भले ही वह एक अमीर खानदान से संबंध रखता हो. ऐसा जातक अपने माता-पिता और करीबी प्रियजनों को बहुत अधिक मानसिक तनाव और चिंताएं देगा. ऐसे जातक बहुत शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं और अक्सर स्वयं को झगड़ों और झगड़ों में उलझा हुआ पाते हैं. उन्हें कभी भी मानसिक शांति का अनुभव नहीं होता. ऐसा आदमी स्वभाव से क्रिमिनल या धोखेबाज भी हो सकता है. वह अहंकारी, अल्पायु, भाग्यहीन, पाखंडी, रोगी, मातृहंता भी हो सकता है. अतिगण्ड में जन्म लेने वालों का यदि जन्म गण्ड नक्षत्र में हो तो ऐसा आदमी कुलहन्ता होता है और इस योग से बालारिष्ट योग बनता है. अतिगण्ड में जब गण्डान्त योग बनता है उस समय जिस आदमी का जन्म होता है वह आदमी मर्डर करने वाला भी हो सकता है.

ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है. आश्लेषा के आखिरी 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं. यदि पति से बड़ा भाई न हो तो यह गुनाह नहीं लगता है. मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को गुनाह लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का हानि होता है. चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है.

अतिगंड या गंडात योग गुनाह के तरीका : गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो. इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर तरीका करें. गंडांत योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय बोला गया है. इस योग में संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए. पराशर मुनि के मुताबिक तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से गुनाह मिटता है. संतान का जन्म यदि गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के आखिरी भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से गुनाह कटता है.

ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है. मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति मुश्किल मानते हुए 3 गायों का दान कहा गया है. रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के गुनाह या किसी अन्य दुष्ट गुनाह में भी एक गाय का दान कहा गया है.

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