औरंगजेब ने इस मंदिर में रगड़ी थी दाड़ी, जानें यहाँ की वर्षों पुरानी मान्यता
देशभर में होली को लेकर खास भिन्न-भिन्न परंपराएं हैं लेकिन होली पर मेवाड़ के इस खास स्थान बादशाह अपनी नाक रगड़ता है हम बात कर रहे हैं नाथद्वारा के श्री नाथ जी मन्दिर की। नाथद्वारा में हर वर्ष धुलंडी पर ‘बादशाह की सवारी’ निकलती है। यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले की बादशाह गली से निकलती है। यह एक प्राचीन परंपरा है, जो औरंगजेब के समय से चलती हुई आ रही है।
मुगल पोशाक धारण कर औरंगजेब का रूप धरता है व्यक्ति
एक आदमी को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल डालकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है। इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है। यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाजार से आगे निकलती है, सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के रेट से बनी सीढियां साफ करता है। मंदिर में उपस्थित लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते हैं और रसिया गान प्रारम्भ होता है।
क्या है इसके पीछे की कहानी
क्षेत्रवासियों का बोलना औरंगजेब मंदिरों में ईश्वर की मूर्तियों को खंडित करता हुआ मेवाड़ पहुंचा था। जब वह श्रीनाथजी के विग्रह को खंडित करने की मंशा से मंदिर में गया तो मंदिर में प्रवेश करते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई। उस समय उसकी बेगम ने ईश्वर श्रीनाथजी से प्रार्थना कर माफी मांगी, तब उसकी आंखें ठीक हो गईं।
बादशाह को अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढ़ियों पर गिरी गुलाल को साफ करने के लिए बेगम ने कहा। तब बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल के बाहर की 9 सीढ़ियों को उल्टे उतरते हुए साफ किया और तभी से इस घटना को एक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है। उसके बाद औरंगजेब की मां ने एक बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया, जिसे आज भी श्रीनाथजी की दाढ़ी में लगा देख सकते हैं।