गर्मी हो या सर्दी, बुंदेलखंड में यह ड्रिंक है सबका फेवरेट
गर्मी का मौसम और आप बुंदेलखंडी हो या कभी बुंदेलखंड आएं हो तो यहां के देसी सेरेलक यानी सत्तू के बारे में जरूर सुना होगा। जो गेहूं चना को भूनकर तैयार किया जाता है। इसे खाने से प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की कमी पूरी होती है। साथ ही शरीर के अंदर ताजगी बनी रहती है। बुंदेलखंड में इसे गर्मी के मौसम में सुबह-सुबह नाश्ते के समय खाया जाता है। जिससे दिन भर एनर्जी मिलती रहती है और गर्मी से भी बचाव होता है।
नाश्ते में सुबह से सत्तू खाते हैं लोग
दरअसल, सागर सहित बुंदेलखंड में सूरज खूब तप रहा है। दोपहर में हीट वेव चल रही है। लू के थपेड़ों से लोग बीमार पड़ रहे हैं। जिस वजह से उनके स्वास्थ्य पर असर तो पड़ रही रहा है, साथ ही आर्थिक कठिनाई भी झेलने पड़ रही है। इसलिए मौसम के हिसाब से लोगों को सावधान रहना चाहिए। बीमार ना पड़े, इसलिए धूप में निकलने से तो बचाना ही है। साथ ही आप कुछ घरेलू नुस्खे भी अपना कर लू और हीट वेव से बच सकते हैं। बुंदेलखंड में सर्दी से गर्मी के मौसम तक सत्तू खाने की परंपरा चली आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सत्तू को लेकर वही भरोसा बना हुआ है।
ऐसे तैयार होता है सत्तू
बता दें कि सत्तू को बनाने के लिए चना, गेहूं, जवा और जीरे को भूना जाता है। फिर इनको एक निश्चित मात्रा में मिक्स करते हैं। चक्की से या हाथ की चकिया से इसको पिसवाते हैं। जैसे ही यह पीस जाता है फिर इसमें शक्कर या गुड़ को पानी के साथ मिलाकर खाते हैं। सत्तू बनाने वाले राजू गुप्ता बताते हैं कि यदि आप 1 किलो चना ले रहे हैं तो 1 किलो गेहूं भी लेना पड़ेगा। वहीं इसमें 250 ग्राम जवा और 25 ग्राम जीरे को लिया जाता है। तब जाकर सत्तू तैयार होता है।
होम्योपैथी के चिकित्सक सुशील सागर बताते हैं की सत्तू बहुत लाभ वाला होता है। गर्मी के दिनों में लगभग सभी घरों में इसे बनाया जाता है या फिर खरीद कर लाते हैं। इसका इस्तेमाल करते हैं। इसमें जो भी प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं, वह पूरी तरह से सही होते हैं। यही वजह है कि जब कोई कुपोषित बच्चा एनआईसी केंद्र में भर्ती किया जाता है। तो अनाज को भूनकर पाउडर फार्म में तैयार होने वाले सत्तू को कुपोषित बच्चों को भी घोल बनाकर पिलाया जाता है, जिससे उन्हें पोषक तत्व मिलते हैं। उसे शीघ्र एनआईसी केंद्र से घर जाने में सहायता मिलती है