लाइफ स्टाइल

1950 की तुलना में भारत में प्रजनन दर काफी घट गई : रिपोर्ट

पिछले एक दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन से संबंधित समस्याएं काफी तेजी से बढ़ती देखी जा रही हैं. हिंदुस्तान में भी इसका जोखिम बढ़ा है. इसी को लेकर द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन में जानकारों ने चिंता जताते हुए सभी लोगों को अलर्ट किया है. शोध की रिपोर्ट में बोला गया है कि वर्ष 1950 की तुलना में हिंदुस्तान में प्रजनन रेट काफी घट गई है, इतना ही नहीं अगले दो दशकों में इसमें और भी कमी आने की संभावना जताई जा रही है. लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी के साथ कई प्रकार के पर्यावरणीय कारकों को वैज्ञानिकों ने इसके लिए उत्तरदायी माना है.

वैश्विक अध्ययन की इस रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्तान में प्रजनन रेट 1950 में लगभग 6.2 थी जो वर्ष 2021 में घटकर 2 से कम हो गई है. वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि जिस तरह की ये गिरावट जारी है ऐसे में ये रेट वर्ष 2050 तक और घटकर 1.29 और वर्ष 2100 तक 1.04 रह जाने की संभावना है. ये संख्याएं अंतरराष्ट्रीय रुझानों के अनुरूप पाई गईं, जहां कुल प्रजनन रेट (टीएफआर) 1950 में प्रति स्त्री 4.8 बच्चों से अधिक थी जोकि 2021 में गिरकर 2.2 बच्चे प्रति स्त्री रह गई है.

स्वास्थ्य जानकारों का बोलना है कि प्रजनन संबंधी कई प्रकार की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. यदि इसमें सुधार न किया गया तो आने वाले सालों में जोखिमों के और भी बढ़ने की संभावना है.

आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2021 में पूरे विश्व में 12.9 करोड़ जीवित बच्चे पैदा हुए. ये संख्या वर्ष 1950 में लगभग 9.3 करोड़ जन्मे बच्चों से अधिक थी. पर वर्ष 2016 में 14.2 करोड़ जन्मे बच्चों की तुलना अगले पांच वर्ष में गिरावट देखी गई.

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) 2021 प्रजनन एंड फोरकास्टिंग कोलैबोरेटर्स के शोधकर्ताओं ने बोला भले ही दुनिया के अधिकतर हिस्से कम प्रजनन क्षमता की चुनौतियों से जूझ रहे है, फिर भी 21वीं सदी के दौरान कई कम आय वाले राष्ट्रों में इसका जोखिम कम देखा गया है.

वैज्ञानिकों ने बताया, कई जोखिम कारक हैं जो स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता का प्रभावित करते हुए देखे जा रहे हैं. बिगड़ता जलवायु बदलाव और खान-पान में आए परिवर्तन के कारण सबसे अधिक चुनौतियां देखी जा रही हैं.

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन (यूडब्ल्यू) ने इस शोध में पाया कि गर्भावस्था तो बड़ी चुनौती बनती ही जा रही है साथ ही साथ नकारात्मक स्थितियों के कारण बाल मौत रेट और विकासात्मक समस्याओं का भी जोखिम हो सकता है. पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इण्डिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा कहती हैं,  ये चुनौतियां हिंदुस्तान के लिए अभी भी कुछ दशक दूर हैं, लेकिन हमें भविष्य के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ अभी से कार्रवाई प्रारम्भ करने की आवश्यकता है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button