अगर आप भी हैं डोसा लवर तो यह चौक आपके लिए है खास
साउथ भारतीय डिश में डोसा बहुत कॉमन है और इसे हर उम्र के लोग खाना पसंद करते हैं। डोसा अमूमन राष्ट्र के हर हिस्से में आपको खाने के लिए मिल जाएगा। डोसा बनाने में एक ही प्रकार की सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन बनाने का तरीका भिन्न-भिन्न होने के चलते टेस्ट भी अलग ही हो जाता है।
दक्षिण हिंदुस्तान के राज्यों में डोसा में खट्टेपन की मात्रा अधिक रहती है, लेकिन नॉर्थ इण्डिया में बनने वाले डोसा में खट्टे का कम प्रयोग किया जाता है। कैमूर में यदि आपको साउथ भारतीय फूड में डोसा का मजा लेना है तो आपको भभुआ के एकता चौक पर गांधी स्मारक के पीछे वाली गली में आना होगा। यहां सुनील कुमार पिछले 4 सालों से लोगों को दो तरह का डोसा खिलाते हैं। जिसमें मुख्य रूप से मसाला और पनीर डोसा शामिल है।
दो तरह का डोसा बनाकर लोगों को खिलाते हैं सुनील
दुकानदार सुनील ने कहा कि पिछले चार सालों से साउथ भारतीय डोसा के नाम से स्टॉल चला रहे हैं। डोसा बनाने का प्रशिक्षण कहीं से नहीं लिया है बल्कि देखकर ही सीखा है। यहां आने वाले ग्राहकों को दो तरह का पनीर और मसाला डोसा बनाकर खिलाते हैं।
पनीर डोसा बनाने के लिए अरवा चावल का आटा और उड़द दाल पीसकर इसका घोल तैयार करते हैं। इसके बाद रिफाइन देकर तवा पर घोल को फैलाते हैं। जब खास्ता हो जाता है तो ऊपर से टमाटर, लाल मिर्च और धनिया के मिश्रण से तैयार मसाला डालते हैं। साथ ही आलू और कदीमा से बनाया हुआ मसाला भी मिलाते हैं।
इसके बाद इसके ऊपर गाजर, मूली, प्याज और धनिया पत्ता को बारीक कटिंग कर डालने बाद अंत में बारीक कटा हुआ पनीर डालकर कुछ देर पकाने के बाद उसे परोसा जाता है। साथ में नारियल की चटनी और सांभर देते हैं। इसका स्वाद ऐसा है कि जो एक बार खा लेता है तो बार-बार खाने के लिए आते हैं।
5 से 6 हजार तक प्रतिदिन डोसा हो जाती है बिक्री
सुनील ने कहा कि मसाला डोसा लोगों को 50 रुपए में तो पनीर वाला डोसा 60 रुपए में लोगों को परोसते हैं। प्रतिदिन दोपहर 2 बजे दुकान खोल लेते हैं और रात को 9 बजे तक चलते रहता है। लोग सबसे अधिक पनीर डोसा ही पसंद करते हैं और इसको खाने के लिए शाम को भीड़ लग जाती है। रोजाना 100 प्लेट से अधिक की बिक्री हो जाती है। दो प्रकार के डोसा की बिक्री कर प्रतिदिन 5 से 6 हजार की बिक्री कर लेते है