जानिए, प्लेन में मिला इस घिनौने कॉकरोच की दिलचस्प कहानी…
कॉकरोच का कहर अंतर्राष्ट्रीय परेशानी बन चुका है। फिल्मों में हिरोइनों को डराने वाला यह जीव हवाई जहाज के किचन में भी जा पहुंचा है। बीते दिनों 16 सेकेंड का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें बड़े-बड़े कॉकरोच प्लेन के किचन में चहलकदमी करते नजर आए।
असल में, इंडिगो से यात्रा कर रहे एक यात्री ने सोशल मीडिया पर यह वीडियो शेयर किया जिसमें फ्लाइट के फूड एरिया में कॉकरोच का झूंड रेंगता दिखाई दिया। वीडियो शेयर होते ही बवाल मच गया और विमान कंपनी को सफाई देनी पड़ी।
कॉकरोच तो हर स्थान हो सकता है। जरा अपने घर के किसी कोने में झांक कर देखिए कहीं न कहीं जरूर दिख जाएगा। हो सकता है कि कॉकरोच की पूरी फौज किसी कोने में छुपी हो। वैसे आज ‘फुरसत का रविवार’ है। हर घर में सफाई अभियान चलता है तो चलिए आज कॉकरोच से छुटकारा पाने के नुस्खे पर बात करते हैं। इन्हें जरूर ट्राई करें।
घिनौने कॉकरोच की दिलचस्प कहानी
कॉकरोच को “तिलचट्टा’ भी कहते है, लेकिन इस कीट ने अपनी पहचान कॉकरोच के नाम से बनाई है। तिलचट्टा बना है ‘तेल+चाट+आ’ से, यानी ऑयल चाटने वाला जीव। रसोई में मंडराने की वजह से इसका यह नाम पड़ा होगा। कॉकरोच तो स्पेनिश शब्द ‘कुकाराचा’ से बना है। वहां कुका का अर्थ छोटा कीड़ा होता है। लेकिन ये छोटा सा दिखने वाला कीड़ा ‘एटम बम’ विस्फोट में भी अपनी जान बचाने की कुबत रखता है।
कॉकरोच 320 मिलियन वर्ष पहले बोर्नियो की गुफाओं में रखी काली मिर्च की टोकरियों में इसका बसेरा हुआ करता था। दंग करने वाली बात तो ये है कि कीट कंट्रोल इंड्रस्टी को खड़ा करने और इसे सफल बनाने का क्रेडिट कॉकरोच को ही जाता है।
जर्मन कॉकरोचों ने बोर्नियो गुफाओं में एक जैविक ‘कौशल सेट’ विकसित करने में हजारों वर्ष बिताए, और इसका फल 1600 के दशक में मिला। बोर्नियो के उत्पादकों ने मसाला व्यापारियों द्वारा लेने के लिए सूखी काली मिर्च को उन गुफाओं में संग्रहीत किया। बाद में इन मसालों को निर्यात किया गया जिसके साथ ‘ब्लैटेला जर्मनिका’ जिसे जर्मन कॉकरोच भी कहते हैं, उसने पूरे विश्व में यात्रा कर अपने वंश बढ़ाता चला गया।
कॉकरोच टाइफाइड का शिकार बना सकते
कॉकरोच को देखकर न केवल घिन आती है बल्कि ये एक ऐसा जीव है जो अपने साथ कई रोंगों को भी लेकर आता है। जगह-जगह कॉकरोच का बसेरा है। डिब्बों के नीचे, सिंक के पास और किचन में ये सबसे अधिक नजर आते हैं। इतना ही नहीं यदि एक बार कॉकरोच घर में आ जाएं तो आपके घर में ये पूरी बस्ती ही बसा लेते हैं।
कॉकरोचों की संख्या पर कंट्रोल करना महत्वपूर्ण है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान की एक रिसर्च में दावा किया गया है कि कॉकरोच सालमोनेला पैराटाइफी बैक्टीरिया के कैरियर होते हैं। जो टाइफाइड रोग का कारण है। किचन में कॉकरोच रहते हैं तो ये टाइफाइड का शिकार बना सकते हैं।
कॉकरोच के शरीर में 13 दिल होते हैं?
कॉकरोच का खून सफेद रंग का होता है क्योंकि खून में हीमोग्लोबिन की कमी होती है। कुछ लोगों में भ्रम है कि कॉकरोच के शरीर में 13 दिल होते हैं। ये बात एकदम सच है कि कॉकरोच के पास एक ही दिल और उसके 13 चैंबर्स होते हैं। यदि किसी कारण से एक चैंबर चोटिल भी हो जाता है तो कॉकरोच की जान नहीं जाती। जबकि आदमी के दिल में चार चैंबर्स होते हैं।
कुछ वर्ष पहले आईआईटी खड़गपुर के बायोमेडिकल एक्सपर्ट की टीम ने कॉकरोच से ही आइडिया लेकर एक आर्टिफिशल मल्टी-चैम्बर हार्ट विकसित किया था। आर्टिफिशियल हार्ट बनाने वाले सुजॉय गुहा ने कहा था कि उन्हें कॉकरोच के हार्ट से ही यह डिवाइस बनाने की प्रेरणा मिली क्योंकि उसके शरीर में ‘फेल-सेफ मैकेनिज्म’ होता है। उनका मानना था कि यदि इस तरह की डिवाइस सफल रहती है तो दिल के रोगी को हार्ट ट्रांसप्लांट कराने की आवश्यकता कम होगी।
कॉकरोच मिल्क, चौक गए ना
मार्केट में अब कॉकरोच का मिल्क भी आ गया है। जो सुपरफूड की कैटेगरी में हो सकता है। रिसर्चर का मानना है कि ये ‘इंसेक्ट मिल्क’ जिसमें कॉकरोच मिल्क बिग डेयरी अल्टरनेटिव हो सकता है। 2016 में पैसिफिक बीटल कॉकरोच नाम से एक रिपोर्ट भी तैयार की गई। ये दूध पैसिफिक बीटल कॉकरोच से मिलता है। इस कॉकरोच के शरीर में एक ऐसा दूध बनता है जो प्रोटीन से भरपूर है। इस दूध को कॉकरोच अपने एम्ब्रियोज को पिलाते हैं। रिसर्च के अनुसार कॉकरोच के मिल्क में रियल क्रिस्टल पाए जाते हैं। इसमें एमिनो एसिड भी पाया जाता है। इसका फ्लेवर अच्छा नहीं होता है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ क्रिस्टलोग्राफी की रिसर्च के अनुसार कॉकरोच के दूध में गाय और भैंस के दूध से तीन गुना अधिक एनर्जी होती है।
वाशिंगटन पोस्ट को दिए साक्षात्कार में बेंगलुरु के बायोकेमिस्ट सुब्रमण्यम स्वामी ने बोला था कि इस दूध को कोई पसंद नहीं करने वाला। लेकिन हम इस दूध को तैयार कर रहे हैं क्योंकि इसके लाभ कमाल के हैं। कॉकरोच मिल्क बनाना सरल नहीं है। 1000 कॉकरोच से 100 ग्राम दूध बनता है।
कॉकरोच से जुड़ा एक और दिलचस्प किस्सा
बद्रीनाथ धाम में कॉकरोच को भोग लगाते हैं। बद्रीनाथ धाम में उपस्थित दो सौ वर्ष पुराने अमल दस्तूर के मुताबिक, कॉकरोचों की पूजा करने के बाद एक किलो पका चावल भोग लगाते हैं। कॉकरोच को यहां के लोग ‘सांगला’ कहते हैं। ये गरुड़ शिला की तलहटी के पास एक गुफा में रहते हैं। मंदिर की प्रबंध देख रहे लोगों का मानना है कि कॉकरोचों को भोग लगाने की पंरपरा आदि शंकराचार्य ने प्रारम्भ की। मंदिर बोर्ड इस बात का ख्याल रखता हैं कि यहां आने वाले तीर्थ यात्री कही गलती से कॉकरोच को मार न दें। अमल दस्तूर में बद्रीनाथ मंदिर से जुड़े नियमों के डॉक्यूमेंट्स हैं। यानी ऐसी हर प्रक्रिया जिस पर मंदिर में निश्चित रूप से अमल करना महत्वपूर्ण है। क्षेत्रीय लोग अमल दस्तूर को ‘डट्टापट्टा’ कहते हैं।
बड़े और हट्टे कट्टे कॉकरोच के पर भी निकल आते हैं और उड़ सकता है। कॉकरोच ही एक ऐसा जीव जो बद्रीनाथ में पूजा जाता है लेकिन कहने के लिए दरिद्रता की निशानी भी माना जाता है। जिस घर में कॉकरोच हो उस घर में बरकत नहीं होती। शायद कॉकरोच के साथ आने वाली रोंगों को लेकर दरिद्रता का दाग उनके दामन पर लगा हो। खैर घर साफ रखें और कॉकरोच का दाग घर और किचन में लगने दें।