लाइफ स्टाइल

आइये जानते हैं, बरसाने की लट्ठमार होली से जुड़ी ये रोचक बातें

होली का त्यौहार मुख्य रूप से रंगों का त्यौहार है इस दिन हिन्दू धर्म के लोग एक जुट होकर खुशियां मनाते हैं और एक दूसरे को प्यार के रंगों में सराबोर करके अपनी ख़ुशी जाहिर करते हैं लेकिन हिंदुस्तान में एक ऐसी भी स्थान है जहां खुशियों के नाम पर महिलाएं होली के त्यौहार में परुषों पर लाठी बरसाती हैं और इस रस्म का सभी पूरा आनंद उठाते हैं जी हां हम बात कर रहे हैं बरसाने की लठमार होली के बारे में लट्ठमार होली हिंदू त्योहार का एक क्षेत्रीय उत्सव है यह यूपी राज्य के मथुरा के निकटवर्ती शहरों बरसाना और नंदगाँव में असली होली से कुछ दिन पहले होता है, इस दृश्य का आनंद उठाने हर वर्ष हजारों हिंदू और पर्यटक उस जगह पर जुटते हैं और इस उत्सव का भरपूर मज़ा उठाते हैं

जैसा कि लट्ठमार नाम से ही पता चलता है कि इस नाम का अर्थ है “लट्ठ की होली”, इस होली की रस्म को शहर के लिए मुख्य आकर्षण के रूप में देखा जाता है यह उत्सव बरसाना के राधा रानी मंदिर में होता है, कथित तौर पर देवी राधा को समर्पित होली का एकमात्र मंदिर है लठमार होली उत्सव एक हफ्ते से अधिक समय तक चलता है, जहां प्रतिभागी नृत्य करते हैं, गाते हैं और कुछ थंडाई पीते हुए रंग में डूब जाते हैं आइए जानें इस लठमार होली के पीछे की पूरी परंपरा और इससे जुडी कुछ ख़ास बातों के बारे में

कहां मनाई जाती है

बरसाना और नंदगाँव शहर में लठमार होली मनाई जाती है बरसाना में राधा रानी मंदिर परिसर उत्सव का स्थल बन जाता है पहले दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना में होली खेलने आते हैं दूसरे दिन बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं इस त्योहार को एक मशहूर हिंदू कथा का मनोरंजन बोला जाता है, जिसके अनुसार, ईश्वर कृष्ण  ने अपने प्रिय राधा की नगरी बरसाना का दौरा किया यदि पौराणिक कथाओं को माना जाए, तो कृष्ण ने राधा और उनके दोस्तों को छेड़ा, जिन्होंने बदले में उनकी राय पर क्राइम किया और उन्हें बरसाना से बाहर निकाल दिया गया

क्या है इसकी कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक वृंदावन में ईश्वर कृष्ण अपनी पत्नी राधा और अन्य गोपियों के साथ रंगों के इस त्योहार को खेलते थे मथुरा से 42 किलोमीटर दूर एक गाँव राधा की जन्मस्थली बरसाना में श्री कृष्ण की विशेष रुचि थी और वो वृन्दावन से बरसाना, होली कार्यक्रम के लिए आते थे तभी से चली आ रही प्रथा के मुताबिक कृष्ण की भूमि नंदगाँव के पुरुष आज भी बरसाना की स्त्रियों के साथ होली खेलने आते हैं और श्री राधिकाजी के मंदिर पर अपना झंडा बुलंद करते हैं लेकिन, आज के दौर में रंगों के बजाय वृन्दावन के मर्दों को गोपियों द्वारा लाठी से अभिवादन किया जाता है इसलिए, होली को यहां एक नया नाम मिलता है-लठमार होली

क्या है महत्त्व

लट्ठमार होली में, महिलाएं एक लट्ठ ले जाती हैं और इसका इस्तेमाल उन मर्दों को मारने के लिए करती हैं, जो उन पर रंग डालने की प्रयास करते हैं होली के असली दिन से कुछ दिन पहले होने वाली इस घटना को देखने के लिए बहुत से लोग इकट्ठा होते हैं यहाँ महिलाएँ कुछ लोक गीत गाते हुए मर्दों को पीटने की प्रयास करती हैं और राधा और कृष्ण को याद करती हैं! इस दिन पुरुष ख़ुशी -ख़ुशी लाठियों का वार सहन करते हैं और ये मर्दों पर स्त्रियों की जीत के प्रतीक की तरह काम करता है मान्यताओं के मुताबिक नंदगाँव के पुरुष हर वर्ष बरसाना शहर आते हैं और उनका अभिवादन  वहां की स्त्रियों की लाठी से किया जाता है महिलाएं मर्दों पर लाठी मारती हैं, जो जितना हो सके स्वयं को बचाने की प्रयास करते हैं इसके लिए वो एक ढाल का इस्तेमाल भी करते हैं

पुरुष करते हैं स्त्रियों का रूप धारण

बरसाने की लठमार होली के सौरान बदकिस्मत मर्दों पर उत्साही स्त्रियों द्वारा कब्जा कर लिया जाता है,तब मर्दों को स्त्रियों के कपड़े पहनने पड़ते हैं और सार्वजनिक रूप से नृत्य करना पड़ता है यह उत्सव बरसाना में राधा रानी मंदिर के विशाल परिसर में होता है, जिसे राष्ट्र का एकमात्र मंदिर बोला जाता है जो राधा जी को समर्पित है लठमार होली उत्सव एक हफ्ते से अधिक समय तक चलता है, जहाँ कई पुरुष प्रतिभागी नृत्य करते हैं, गाते हैं और अपने आप को रंग में डुबोते हैं, साथ ही साथ ठंडाई नाम के पेय का सेवन भी बहुतायत में किया जाता है ठंडाई को होली के त्योहार का पर्यायवाची पेय माना जाता है

इस प्रकार लट्ठमार होली बरसाने में बड़ी ही धूम-धाम से कई दिनों तक मनाई जाती है और वहां के क्षेत्रीय लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग इस होली का मज़ा उठाने आते हैं आप भी होली में कहीं घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो इस स्थान की होली का मज़ा जरूर उठाएं

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button