Museum Day 2024 : क्यों बेहद खास होते हैं म्यूजियम…
Museum Day: म्यूजियम की इस अनोखी दुनिया में एक खास नाम मैडम तुसाद म्यूजियम का है। इस म्यूजियम में दुनिया की महान शख़्सियतों के मोम से बने पुतले लगे हैं, जो हू-ब-हू इनसान की तरह दिखते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे कभी भी बोल पड़ेंगे। पुतले के साथ यदि वास्तविक आदमी खड़ा हो, तो एक बार के लिए आपकी आंखें भी विश्वासघात खा जायेंगी। लंदन में स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम 400 से अधिक मोम की मूर्तियां लगी हैं तथा इसकी शाखा कई अन्य राष्ट्रों में भी स्थित है। इसकी एक शाखा हिंदुस्तान के नई दिल्ली में भी है।
म्यूजियम में आनेवाली पीढ़ी के लिए ऐतिहासिक यादें संजो कर रखी जाती हैं, जो उन्हें कई तरह के संदेश देती हैं। इसमें लोग पूर्वजों की पांडुलिपियां, रत्न, पेंटिंग, रॉकआर्ट, किताबें आदि रखी जाती हैं, लेकिन मैडम तुसाद म्यूजियम की बात ही कुछ और है। यहां उन लोगों के मोम से बने पुतले लगे हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में महान हैं। इस म्यूजियम का ऐसा क्रेज है कि अब यहां किसी आदमी का पुतला लगना उसके ग्लोबल होने की निशानी बन चुका है।
इंसानी कारीगरी का अद्भुत नमूना
आपको जानकर आश्चर्य हो रहा होगा कि मोम की बनी मूर्तियां आखिर आदमी जैसी जीवंत कैसे हो सकती हैं। दरअसल, यह मनुष्य की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जिसे देख कर बड़े-बड़े लोग दंग रह जाते हैं। यहां पुतले बनाने के दौरान छोटी-से-छोटी बारिकियों का ध्यान रखा जाता है। दुनिया की शायद ही कोई शख़्सियत हो, जिनकी ख़्वाहिश मैडम तुसाद का हिस्सा बनने की न हो। मैडम तुसाद की मैनेंजमेंट टीम किसी भी आदमी के पुतले लगाने से पहले उसकी पॉपुलरिटी का इंटरनल सर्वे भी करती है। फिर संबंधित आदमी को प्रस्ताव आवेदन भी भेजा जाता है और उनकी अनुमति के बाद पुतले लगाये जाते हैं।
ऐसे बनती हैं मोम की जीवंत मूर्तियां
इन मूर्तियों को ढालने की प्रक्रिया में 150 किलोग्राम मिट्टी का इस्तेमाल सांचे के लिए होता है। मैडम तुसाद से जुड़े मशहूर कारीगर उनके सैकड़ों माप लेते हैं, जिनकी मूर्ति बननी होती है या फिर वे लोग संबंधित शख़्सियत के लाइब्रेरी शॉट का शोध करते हैं। मूर्ति की आंखे बनाने में कारीगरों को लगभग 10 घंटे लगते हैं, इस दौरान आंखों की पुतलियों तक के रंग को मैच किया जाता है। उस आदमी की हेयरस्टाइल की नकल करने और सिर पर एक-एक बाल लगाने में कारीगरों को लगभग छह सप्ताह तक लग जाते हैं। एक पुतले को गढ़ने, ढालने और पूरी तरह तैयार करने में लगभग चार महीने लग जाते हैं। इन पुतलों को बनाने में करीब 20 रंगों का इस्तेमाल किये जाते हैं, ताकि पुतले की त्वचा का रंग असल शख़्सियत से मिलता जुलता हो। चेहरे की हर सिलवट, हर तिल, डिंपल, झुर्री को ज्यों का त्यों उतारा जाता है। तब जाकर मोम की जीवंत मूर्तियां बन पाती हैं।
दुनिया के कई राष्ट्रों में इसकी शाखा
क्या आपने कभी सुना है कि एक ही म्यूजियम दुनिया के भिन्न-भिन्न राष्ट्रों में बनी हो। दरअसल, पूरी दुनिया से इस म्यूजियम के विजिटर्स की संख्या इतनी अधिक हो गयी कि लंदन स्थित म्यूजियम को देखने के लिए कई दिन पहले से लाइन लगाने पड़ने लगे थे। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए दिल्ली समेत दुनिया के कई प्रमुख शहरों में इसकी शाखा खोली गयी। अभी यह म्यूजियम दक्षिण अमेरिका के लॉन्स एंजिल्स, लॉस वेगास, वॉशिंगटन डीसी और न्यूयार्क में स्थित है। वहीं यूरोप में लंदन के अतिरिक्त एमस्टर्डम, बर्लिन, वियना और ब्लैकपूल तथा एशिया में बैंकॉक, हॉन्गकॉन्ग और शंघाई में इसकी शाखा है।
बने हैं कई भारतीय शख़्सियतों के पुतले
मैडम तुसाद म्यूजियम की शोभा बढ़ाने में कई भारतीय शख़्सियतों की भी किरदार है। सबसे पहले इस म्यूजियम में स्थान बनायी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसके बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सचिन तेंदुलकर की मूर्तियां यहां लगी। फिर फिल्मस्टार अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, ऐश्वर्या राय, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर, सलमान खान, कैटरीना कैफ, माधुरी दीक्षित आदि इस म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही हैं। मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री की ओर से मैडम तुसाद म्यूजियम में सबसे पहले सुपर स्टार अमिताभ बच्चन पहुंचे। उनका पुतला वर्ष 2000 में लंदन के म्यूजियम में लगा। सचिन तेंदुलकर इस संग्रहालय में मोम के सांचे में समा जानेवाले खेल की दुनिया के पहली भारतीय शख़्सियत हैं। राष्ट्र के मौजूदा पीएम मोदी के मोम की मूर्ति को भी मैडम तुसाद म्यूजियम में स्थान दी गयी है।
मैडम तुसाद म्यूजियम की स्थापना
वर्ष 1835 में मैडम तुसाद म्यूजियम की नीव ‘मैडम मेरी तुसाद’ द्वारा रखी गयी थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैडम मेरी तुसाद पहले लंदन में बेकर स्ट्रीट बाजार में सड़क के किनारे मोम की मूर्तियों की प्रदर्शनी लगायी थी। इसी प्रदर्शनी ने आगे चल कर एक म्यूजियम का रूप धारण कर लिया। दरअसल, मोम के पुतले बनाने की कला मैडम मेरी ने स्विटजरलैंड के चिकित्सक फिलिप कर्टियस से सीखी थी। चिकित्सक फिलिप मोम के अंगों को चिकित्सा जगत में इस्तेमाल करने के लिए बनाते थे। 1761 में फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर में जन्मी मैडम मेरी तुसाद की मां चिकित्सक फिलिप के यहां जॉब करती थीं और यहीं से मैरी को मोम के पुतले बनाना सीखा। पहली बार मैडम मेरी तुसाद ने 1777 में महान विचारक वॉल्टेयर के मोम का पुतला बनाया। उन्होंने प्रसिद्ध ज्यां जेक्स, रूसो और बेंजामिन फ्रैंकलिन के मोम के पुतले भी बनाये, ये सभी वर्ष 1789 की क्रांति से पहले बने थे।
जेल जाने की वजह से मिला मौका
मैडम मेरी तुसाद को शाही परिवार का हमदर्द माना जाता था, उपद्रव के दौरान उन्हें अरैस्ट कर लिया गया था। साल 1789 में हुए फ्रांसिसी क्रांति में मैडम मेरी को कारावास जाना पड़ा, इस दौरान उन्होंने नेपोलियन बोनापार्ट की पत्नी के साथ कारावास का कमरा शेयर किया। 1794 में जब वे कारावास से बाहर आयीं, तो वे लंदन में फंसी रह गयीं और इस दौरान उन्होंने फ्रांसिस तुसाद से विवाह की। वहीं मैडम मेरी ने फ्रांसिसी क्रांति से जुड़े लोगों के मोम की मूर्तियां बनायीं। इन्हीं कलाकृतियों के संग्रह की वजह से इस म्यूजियम की नींव पड़ी।